आगामी आपातकाल में जीवित रहने के लिए पहले से की जानेवाली व्यवस्था

विश्‍वयुद्ध, भूकंप, विकराल बाढ आदि के रूप में महाभीषण आपातकाल तो अभी आना शेष है । यह महाभीषण आपातकाल निश्‍चित आएगा, यह बात अनेक नाडीभविष्यकारों और द्रष्टा साधु-संतों ने बहुत पहले ही बता दी है । उन संकटों की आहट अब सुनाई देने लगी है ।

आगामी भीषण आपातकाल में स्वास्थ्य रक्षा हेतु उपयुक्त औषधीय वनस्पतियों का रोपण अभी से करें !

संकटकाल में औषधीय वनस्पतियों का उपयोग कर, हमें स्वास्थ्यरक्षा करनी पडेगी । उचित समय पर उचित औषधीय वनस्पतियां उपलब्ध होने हेतु वे हमारे आसपास होनी चाहिए । इसके लिए अभी से ऐसी वनस्पतियों का रोपण करना समय की मांग है ।

चातुर्मास्य (चातुर्मास)

आषाढ शुक्ल पक्ष एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तक अथवा आषाढ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चार माह के काल को ‘चातुर्मास’ कहते हैं । अनेक स्त्रियां चातुर्मास में एक या दो अनाजों पर ही निर्वाह करती हैं । उनमें से कुछ पंचामृत का त्याग करती हैं, तो कुछ एकभुक्त रहती हैं ।

गुरुपूर्णिमा का महत्त्व

गुरुपूर्णिमा पर अन्य किसी भी दिन की तुलना में गुरुतत्त्व (ईश्‍वरीय तत्त्व) १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत रहता है । इसलिए गुरुपूर्णिमा के आयोजन हेतु अथक परिश्रम (सेवा) व त्याग (सत् हेतु अर्पण) का व्यक्ति को अन्य दिनों की तुलना में १ सहस्र गुना अधिक लाभ होता है ।

संकटकालीन स्थिति में (कोरोना की पृष्ठभूमि पर) धर्मशास्त्र के अनुसार गुरुपूर्णिमा मनाने की पद्धति !

इस वर्ष कोरोना संकट की पृष्ठभूमि पर हमने घर पर रहकर ही भक्तिभाव से श्री गुरुदेवजी के छायाचित्र का पूजन अथवा मानसपूजन किया, तब भी हमें गुरुतत्त्व का एक सहस्र गुना लाभ मिलेगा ।

अर्पणदाताओं, गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में धर्मकार्य हेतु धन अर्पित कर गुरुतत्त्व का लाभ उठाएं !

गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में गुरुकार्य हेतु अर्थात धर्मकार्य हेतु अर्पण दें ! – आजकल धर्मग्लानि का समय होने से धर्मप्रसार का कार्य करना, सर्वश्रेष्ठ अर्पण है । इसलिए धर्मप्रसार का कार्य करनेवाले संत, संस्था एवं संगठनों के कार्य हेतु धन का दान देना, काल के अनुसार आवश्यक है । सनातन संस्था निःस्वार्थभाव से विगत अनेक वर्षों से यह कार्य कर रही है । इसलिए अर्पणदाताआें द्वारा सनातन संस्था को दिए जानेवाले अर्पण का उपयोग निश्‍चित रूप से धर्मकार्य हेतु ही होनेवाला है ।

घोर आपातकाल में नई-नई आध्यात्मिक उपचार-पद्धतियों का शोध कर मानवजाति के कल्याण हेतु परिश्रम करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

सामान्य लोगों में अपने आस-पास अथवा हमारे जीवन में होनेवाली गतिविधियों के संदर्भ में जानने की जिज्ञासा होती है । आगे की साधनायात्रा में साधक के मन में मैं कहां से आया, मेरा लक्ष्य क्या है, मुझे कहां जाना है ? आदि प्रश्‍न उठते रहते हैं ।

उच्च कोटि की जिज्ञासा के कारण सूक्ष्म जगत से संबंधित अमूल्य ज्ञान का कोष मानवजाति को उपलब्ध करानेवाले ज्ञानगुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

प्राणशक्ति (जीवनी शक्ति) बहुत अल्प होने पर भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी अपने आसपास होनेवाली प्रत्येक घटना का निरीक्षण करते रहते हैं और उनके विषय में तुरंत लिखकर रखते हैं । ऐसे प्रत्येक निरीक्षण के विषय में वे साधकों से बात कर उससे संबंधित छोटी-छोटी बातें समझ लेते हैं ।

सर्वज्ञ होते हुए भी जिज्ञासा से प्रत्येक कृत्य के पीछे का शास्त्र समझनेवाले गुरुदेवजी !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में ३० अप्रैल २००८ को वेद, शास्त्र आदि अध्ययन करनेवालों के लिए ‘सनातन पुरोहित पाठशाला’ स्थापित की गई । ‘प्रत्येक धार्मिक विधि शास्त्र समझकर ‘साधना’ के रूप में करनी चाहिए’, इस संबंध में परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने यहां शिक्षा ग्रहण करनेवालों का मार्गदर्शन किया है ।

विविध संतों के मार्गदर्शन अनुसार प्रत्यक्ष आचरण कर अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

डहाणू के प.पू. अण्णा करंदीकरजी आयुर्वेदिक चिकित्सालय में रोगियों को देखने के लिए प्रतिमास ३ दिन दादर आते थे । तब प.पू. डॉक्टरजी के एक मित्र ने उन्हें प.पू. अण्णा करंदीकरजी की जानकारी दी ।