सप्तर्षि द्वारा नाडीवाचन में बताए अनुसार श्रीविष्णुस्वरूप ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी’, भूदेवीस्वरूप ‘श्रीसत्‌शक्ति् (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी’ और श्रीदेवीस्वरूप ‘श्रीचित्‌शक्ति् (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी’, इन (नए) नामों से उनके प्रचलित नामों की अपेक्षा अधिक चैतन्य प्रक्षेपित होना

नूतन आध्‍यात्मिक अनुसंधान करनेवाला महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय

‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा
‘यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर’ (यूएएस)उपकरण के माध्‍यम से किया परीक्षण

‘सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी ।’

     ‘ज्‍येष्‍ठ कृष्‍ण पक्ष सप्‍तमी, (१३.५.२०२०) को परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी का ७८ वां जन्‍मदिन था । उस दिन सायं. ६.४१ बजे इरोड (तमिलनाडु) के पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्‌जी ने सप्‍तर्षि जीवनाडी-पट्टिका का वाचन किया । उसमें सप्‍तर्षि ने संदेश दिया – ‘१५.५.२०२० के शुभदिन पर ज्‍येष्‍ठ कृष्‍ण पक्ष नवमी है और इस दिन ईश्‍वरीय इच्‍छा से एक सुनहरे इतिहास का आरंभ होगा । जिस ‘सच्‍चिदानंद परब्रह्म’ स्‍वरूप ने इस पृथ्‍वी पर गुरुरूप में रहकर कार्य किया है, उस ईश्‍वर का अब मूल स्‍वरूप में नामकरण करने का समय आ गया है; इसलिए आज से संपूर्ण विश्‍व के साधक अपने लेखन में गुरुदेवजी का नाम इस प्रकार लिखें – ‘सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी ।’

बाएं से भूदेवीस्‍वरूप सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, ‘सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी और श्रीदेवीस्‍वरूप सद़्‍गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

 

     आज से सनातन के साधक भूदेवीस्‍वरूप सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को ‘श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी’ और श्रीदेवीस्‍वरूप सद़्‍गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को ‘श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी’, ऐसेे संबोधित करें ।’ तीनों गुरुआें के नामों से प्रक्षेपित स्‍पंदनों का वैज्ञानिक अध्‍ययन करने के लिए ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा ७.६.२०२० को एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर’ (यूएएस) नामक उपकरण का उपयोग किया गया । इस परीक्षण का स्‍वरूप, प्राप्‍त निरीक्षणों की प्रविष्‍टियां और उनका विवरण आगे दिया है ।

     पाठकों को सूचना : स्‍थान के अभाव में इस लेख में ‘यूएएस’ उपकरण का परिचय’, ‘उपकरण द्वारा किए जानेवाले परीक्षण के घटक और उनका विवरण’, घटक का प्रभामंडल नापना’, ‘परीक्षण की पद्धति’ और ‘परीक्षण में समानता लाने हेतु रखी गई सावधानी’ यह नियमित सूत्र सनातन संस्‍था के जालस्‍थल की लिंक goo.gl/B5g5YK पर दिए हैं । लिंक के कुछ अक्षर कैपिटल (Capital) हैं ।

१. परीक्षण का स्‍वरूप

     इस परीक्षण में निम्‍न घटकों की ‘यूएएस’ उपकरण द्वारा प्राप्‍त निरीक्षण की प्रविष्‍टियां की गईं । इन सभी प्रविष्‍टियों का तुलनात्‍मक अध्‍ययन किया गया ।

अ. परात्‍पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के छायाचित्र, उनका प्रचलित नाम और सप्‍तर्षि द्वारा नाडीपट्टिका के माध्‍यम से बताया नाम

आ. श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का छायाचित्र, उनका प्रचलित नाम और सप्‍तर्षि द्वारा नाडीपट्टिका के माध्‍यम से बताया नाम

इ. श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का छायाचित्र, उनका प्रचलित नाम और सप्‍तर्षि द्वारा नाडीपट्टिका के माध्‍यम से बताया नाम

     इस परीक्षण में तीनों गुरुआें के दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित  श्‍वेत-श्‍याम छायाचित्र, उनके प्रचलित नाम और सप्‍तर्षि द्वारा  नाडीपट्टिका के माध्‍यम से बताए उनके नामों की ‘ए ४’ आकार के कोरे कागजों पर संगणकीय प्रतियां (प्रिंट आऊट) निकालकर उनका निरीक्षण किया गया ।

२. निरीक्षण की प्रविष्‍टियां और उनका विवेचन

२ अ. नकारात्‍मक ऊर्जा संबंधी निरीक्षण की प्रविष्‍टियों का विवेचन : परीक्षण के घटकों में नकारात्‍मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।

२ आ. सकारात्‍मक ऊर्जा संबंधी निरीक्षण की प्रविष्‍टियों का विवेचन : सभी व्‍यक्‍ति, वास्‍तु अथवा वस्‍तुआें में सकारात्‍मक ऊर्जा होना आवश्‍यक नहीं है ।

२ आ १. तीनों गुरुआें के प्रचलित नामों की अपेक्षा सप्‍तर्षि द्वारा नाडीवाचन से बताए उनके नामों में सकारात्‍मक ऊर्जा अधिक होना


उपर्युक्‍त सारणी से कुछ सूत्र (तथ्‍य) ध्‍यान में आए हैं ।

१. तीनों गुरुआें के छायाचित्रों की अपेक्षा उनके प्रचलित नामों में सकारात्‍मक ऊर्जा अधिक है ।

२. तीनों गुरुआें के प्रचलित नामों की अपेक्षा सप्‍तर्षि द्वारा नाडीवाचन में बताए उनके (नए) नामों में सकारात्‍मक ऊर्जा अधिक है ।

२ इ. कुल प्रभामंडल के (टिप्‍पणी) संबंधी निरीक्षणों की प्रविष्‍टियों का विवेचन : सामान्‍य व्‍यक्‍ति अथवा वस्‍तु का कुल प्रभामंडल लगभग १ मीटर होता है ।

टिप्‍पणी  कुल प्रभामंडल (ऑरा) : व्‍यक्‍ति के संदर्भ में उसकी लार तथा वस्‍तु के संदर्भ में उस पर लगे धूलिकण अथवा उसका थोडे से भाग का ‘नमूने’ के रूप में उपयोग कर उस व्‍यक्‍ति अथवा वस्‍तु का ‘कुल प्रभामंडल’ नापते हैं ।

२ इ १. परीक्षण के घटकों का कुल प्रभामंडल

उपर्युक्‍त सारणी से कुछ सूत्र ध्‍यान में आए हैं ।

१. परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र की अपेक्षा उनके प्रचलित नाम का कुल प्रभामंडल अधिक है और उससे भी अधिक सप्‍तर्षि द्वारा नाडीवाचन में बताए उनके (नए) नाम का कुल प्रभामंडल है ।

२. श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी और श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के छायाचित्रों की अपेक्षा उनके प्रचलित नामों का कुल प्रभामंडल अल्‍प है ।

३. श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी और श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के प्रचलित नामों की अपेक्षा सप्‍तर्षि द्वारा नाडीवाचन में बताए हुए उनके (नए) नामों का कुल प्रभामंडल अधिक है ।

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय

     उपर्युक्‍त सभी सूत्रों के संदर्भ में अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण ‘सूत्र ३’ में दिया है ।

३. निरीक्षणों की प्रविष्‍टियों का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण

३ अ. तीनों गुरुआें के छायाचित्रों की अपेक्षा उनके प्रचलित नामों में सकारात्‍मक ऊर्जा अधिक होना : ‘शब्‍द, स्‍पर्श, रूप, रस, गंध और उनसे संबंधित शक्‍ति एकत्रित होती है’, यह अध्‍यात्‍म का सिद्धांत है । उसके अनुसार व्‍यक्‍ति के छायाचित्र अथवा उसके नाम में उसके स्‍पंदन होते हैं । व्‍यक्‍ति का छायाचित्र (रूप) तेजतत्त्व से, तथा उसका नाम (शब्‍द) आकाशतत्त्व से संबंधित है । तेजतत्त्व की अपेक्षा आकाशतत्त्व अधिक सूक्ष्म होने के कारण अधिक प्रभावी है । संतों में बहुत चैतन्‍य होने के कारण उनके छायाचित्र अथवा नाम में उनके चैतन्‍यमय स्‍पंदन होते हैं । तीनों गुरु अध्‍यात्‍म की अत्‍युच्‍च स्‍थिति में पहुंचे होने के कारण उनमें बहुत चैतन्‍य है । इसलिए उनके छायाचित्र और नाम से भी बहुत चैतन्‍य प्रक्षेपित होता है; परंतु उसकी मात्रा उनके छायाचित्रों की अपेक्षा उनके नाम में अधिक है ।

३ आ. तीनों गुरुआें के प्रचलित नामों की अपेक्षा सप्‍तर्षि द्वारा नाडीवाचन में बताए हुए उनके (नए) नामों में सकारात्‍मक ऊर्जा अधिक होना : ‘परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी श्रीविष्‍णु के अवतार हैं’, ऐसा सप्‍तर्षि ने नाडीपट्टिका के माध्‍यम से इससे पूर्व ही बताया है । परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ७८ वें जन्‍मदिन के निमित्त (१३.५.२०२० को) हुए नाडीवाचन से सप्‍तर्षि ने यह संदेश दिया – ‘श्रीविष्‍णु के (परात्‍पर गुरुदेवजी के) ‘श्रीजयंत’ अवतार में किया हुआ अवतारी कार्य आगे से उनके ‘आध्‍यात्मिक उत्तराधिकारिणी’ सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और सद़्‍गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी चलाएंगी । श्रीविष्‍णु की आज्ञा से श्री महालक्ष्मी ने ‘भूदेवी’ और ‘श्रीदेवी’ इन रूपों में पृथ्‍वी पर अवतार धारण किया है । ‘सत्-चित्-आनंद’ स्‍वरूप श्रीविष्‍णु का ‘सत्’ यह तत्त्व अर्थात भूदेवीस्‍वरूप सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी हैं और ‘चित्’ यह तत्त्व, श्रीदेवीस्‍वरूप सद़्‍गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी हैं । सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी को साधक सदा की भांति ‘परम पूज्‍य’ अथवा ‘प.पू. डॉक्‍टर’ ऐसा कहें; परंतु उनका नाम लिखते समय ‘सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी’ ऐसा ही लिखें । आगे से दोनों सद़्‍गुरुआें को क्रमश: ‘श्रीसत्‌शक्‍ति’ और ‘श्रीचित्‌शक्‍ति’ ऐसे ही संबोधित करें; क्‍योंकि इन नामों से दोनों को देवीतत्त्व मिलेगा, तथा उसका लाभ उनके नामों का उल्लेख करनेवालों को भी होगा ।’ तीनों गुरुआें के प्रचलित नामों की अपेक्षा सप्‍तर्षि नाडीवाचन में बताए गए उनके (नए) नामों में सकारात्‍मक ऊर्जा अधिक होने का यही कारण है ।

३ इ. श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के छायाचित्रों की अपेक्षा सप्‍तर्षि द्वारा नाडीवाचन में बताए हुए उनके (नए) नामों का कुल प्रभामंडल अधिक होना : यहां विशेष ध्‍यान में रखने का सूत्र यह है कि श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के छायाचित्रों की अपेक्षा उनके प्रचलित नामों का कुल प्रभामंडल अल्‍प है; परंतु सप्‍तर्षि द्वारा नाडीवाचन में बताए हुए उनके (नए) नामों का कुल प्रभामंडल अधिक है । इससे ‘सप्‍तर्षि द्वारा दोनों सद़्‍गुरुआें को क्रमश: ‘श्रीसत्‌शक्‍ति’ और ‘श्रीचित्‌शक्‍ति’ ऐसे ही संबोधित करने को कहना’, यह ‘तेजतत्त्व की अपेक्षा आकाशतत्त्व अधिक सूक्ष्म होने के कारण अधिक प्रभावी होता है’, अध्‍यात्‍म के इस सिद्धांत के आधार पर है, ऐसा ध्‍यान में आता है ।

     संक्षेप में, ‘सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी को साधक सदा की भांति ‘परम पूज्‍य’ अथवा ‘प.पू. डॉक्‍टर’ ऐसा कहें; परंतु उनका नाम लिखते समय ‘सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी’ ऐसा ही लिखें । आगे से दोनों सद़्‍गुरुआें को क्रमश: ‘श्रीसत्‌शक्‍ति’ और ‘श्रीचित्‌शक्‍ति’ ऐसे ही संबोधित करें; क्‍योंकि इन नामों से दोनों को देवीतत्त्व मिलेगा, तथा उसका लाभ उनके नामों का उल्लेख करनेवालों को भी होगा’, ऐसा सप्‍तर्षि ने बताया है, वह कितना सार्थ है, यह इस वैज्ञानिक परीक्षण से स्‍पष्‍ट हुआ ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (११.६.२०२०)

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