श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का परिचय

श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी

१. श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का जन्‍मदिनांक : आश्विन अमावस्‍या (३.१०.१९६७)

२. जन्‍मदिन : १७.९.२०२० को जन्‍मदिन है ।

३. संतपद एवं सद़्‍गुरुपद पर विराजमान : श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी १२.६.२०१३ को संतपद पर एवं २४.७.२०१६ को सद़्‍गुरुपद पर विराजमान हुईं ।

सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के जन्‍मदिन के उपलक्ष्य में उनके विषय में कुछ आलेख प्रस्‍तुत कर रहे हैं ।

     श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी पूर्णकालिक साधना करने से पूर्व एक अधिकोष में ‘मैनेजर’ के पद पर कार्यरत थीं । उनके पति पू. नीलेश सिंगबाळजी सनातन संस्‍था के ७२ वें संत हैं । उनका पुत्र सोहम सिंगबाळ रामनाथी आश्रम में सेवा करता है । वर्ष १९९६ में उन्‍होंने सनातन संस्‍था के मार्गदर्शन में साधना प्रारंभ की और वर्ष २००० में वे पूर्णकालिक साधना करने लगीं । वे सनातन संस्‍था की अखिल भारत धर्मप्रचारक के रूप में सेवा संभाल रही हैं तथा देश-विदेश के साधकों को व्‍यष्‍टि और समष्‍टि साधना के संबंध में मार्गदर्शन करती हैं । वे परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्‍यात्मिक उत्तराधिकारिणी हैं ।

     ‘श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी से संबंधित विस्‍तृत लेख आगे प्रकाशित होनेवाले संत संबंधी चरित्र में दिया जाएगा । – संकलनकर्ता

यह लेख पूर्व का है । इसलिए संत के तत्‍कालीन नाम का उल्लेख किया गया है । – संपादक

सद़्‍गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा कथित
श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की गुणविशेषताएं

श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

श्रीसत्‌शक्‍ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी के चैतन्‍य के कारण होनेवाले
सूक्ष्म आध्‍यात्मिक कार्य और उनमें विद्यमान देवताआें का अवतारत्‍व !

‘हम कितना भी चिंतन करें, तब भी सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी (सद़्‍गुरु बिंदाजी) के सूक्ष्म आध्‍यात्मिक कार्य की व्‍याप्‍ति नहीं निकाल पाएंगे ! उनका सूक्ष्म कार्य अपार है; क्‍योंकि वह मानव बुद्धि से परे है । कोई मनुष्‍यदेह वर्ष के बारह मास अविरत सेवा कर सकती है, यह अवधारणा ही मानव की बुद्धि से परे है । यह मनुष्‍य का कार्य नहीं है, अपितु एक अवतारी कार्य है । दैवी अवतार ही ऐसा कर सकते हैं; इसलिए ‘सद़्‍गुरु बिंदाजी सामान्‍य नहीं हैं, अपितु उनमें देवताआें का अवतारत्‍व है और निःसंदेह वही समष्‍टि का मार्गदर्शक बन रहा है । उनका सूक्ष्म कार्य कितना विशाल होगा, इसकी कल्‍पना न करना ही अच्‍छा है । मनुष्‍य के लिए इसका अनुमान लगाना भी कठिन है ।

     स्‍थूल से विचार करने पर छोटी-छोटी बातों से सद़्‍गुरु बिंदाजी का अवतारत्‍व सिद्ध होता है ।

     ‘सद़्‍गुरु बिंदाजी, आपके चैतन्‍यरूपी अवतारत्‍व के चरणों में हम साधकों का कोटि-कोटि नमस्‍कार !’

– श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

(२६.३.२०२०)

श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा साधकों को किया हुआ अमूल्‍य मार्गदर्शन

१. व्‍यष्‍टि साधना

अ . ईश्‍वर को प्राप्‍त करने पर शेष सभी साध्‍य हो ही जाता है ! : ‘पू. (श्रीमती) बिंदाताई सिंगबाळजी ने मुझे बताया, ‘‘निरंतर भावावस्‍था में रहना चाहिए । ईश्‍वर को प्राप्‍त करने पर शेष सबकुछ साध्‍य हो जाता है । कृतज्ञभाव बढाने से संघर्ष करने में शक्‍ति का व्‍यय नहीं होता, उसका उपयोग साधना की उन्‍नति के लिए होगा ।’’ – कु. दीपाली मतकर, रत्नागिरी, महाराष्‍ट्र.

आ.‘अपने श्‍वास पर भी जहां ईश्‍वर का अधिकार है, वहां अन्‍य बातों का कर्तापन हम कैसे ले सकते हैं ?’ – सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ (२५.८.२०१९)

इ. लगन का महत्त्व : ‘हमें कितना भी कष्‍ट हो; परंतु हमें करते रहना चाहिए । ईश्‍वर ही सब करनेवाले हैं । परिवर्तन का मार्ग बडा दिखाई देने पर भी परिवर्तन का वह क्षण शीघ्र ही आनेवाला है । इसमें मन की लगन का ही महत्त्व है ।’ – पू. (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ

२. समष्‍टि साधना

अ. सर्वत्र के साधको,  मन में भाव हो, तो हम भूतल पर कहीं भी हों, तब भी ईश्‍वर निश्‍चित ही हमें मार्गदर्शन करेंगे, यह दृढ श्रद्धा रखकर निश्‍चिंत रहें !

आ. एसएसआरएफ के साधकों की कार्यशाला में सम्‍मिलित एक साधिका के मन में चिंतायुक्‍त विचार आना कि ‘स्‍वदेश लौटने पर मुझे कौन मार्गदर्शन करेगा ?’ : ‘जनवरी २०१५ में रामनाथी आश्रम में एसएसआरएफ के साधकों की कार्यशाला संपन्‍न हुई । उस कार्यशाला में सम्‍मिलित साधकों को कार्यशाला के माध्‍यम से उत्तरदायी संतों से साधना के संदर्भ में अमूल्‍य मार्गदर्शन मिला तथा साधकों के भाव के कारण आश्रम के चैतन्‍य का अनुभव कर वे अधिकाधिक भगवान श्रीकृष्‍ण के आंतरिक सान्‍निध्‍य में रह पाए ।

     कार्यशाला में सम्‍मिलित एक साधिका को चिंता हो रही थी कि ‘स्‍वदेश लौटने पर साधना के प्रयास इसी प्रकार होने के लिए कौन मार्गदर्शन करेगा ?, यदि आगे मुझसे इसी प्रकार साधना के प्रयत्न नहीं हुए, तो ईश्‍वर के आंतरिक सान्‍निध्‍य में कैसे रह पाऊंगी ?’

इ. ईश्‍वर द्वारा हो रहे सूक्ष्म मार्गदर्शन का अनुभव करने के लिए साधकों को मन का भाव बढाना अनिवार्य ! : वास्‍तव में जिस साधक में भाव है, वह साधक भूतल पर कहीं भी हो, ईश्‍वर उसे मार्गदर्शन करते ही हैं  इसलिए साधक ऐसा विचार न करें कि जब हम उत्तरदायी साधकों से मिलेंगे, तब ही हमें मार्गदर्शन मिलेगा, अन्‍य समय हमें कोई दिशा देनेवाला नहीं होता ।’ उसके स्‍थान पर कृपालु ईश्‍वर पर श्रद्धा रखने से उन्‍हें ईश्‍वर के सूक्ष्म मार्गदर्शन का आनंद अनुभव होगा तथा वे अपनी शीघ्र आध्‍यात्मिक उन्‍नति कर पाएंगे ।’

र्इ. साधना एक प्रकार का शिवधनुष है : साधना एक प्रकार का शिवधनुष होता है । उसे उठाने की क्षमता हममें नहीं है । श्री गुरुदेव पर श्रद्धा रखने से, वे ही सब करवाते हैं ।

– (पू.) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (२५.२.२०१५)   

सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के पुत्र सोहम द्वारा बताए गए उनके गुण एवं विशेषताएं

१. माताजी की वाणी के चैतन्‍य से पडनेवाला प्रभाव

अ. कुछ शब्‍द बोलने पर भी अंतर्मन पर साधना के दृष्‍टिकोण अंकित होना : पूरे दिन में मां के साथ मेरी केवल १५ मिनट ही बातचीत हो पाती है और वह भी केवल आवश्‍यक बातों के लिए । उस समय वे आध्‍यात्मिक स्‍तर पर और तत्त्वनिष्‍ठ रहकर बात करती हैं । इसलिए अल्‍प बोलने पर भी मुझे साधना के दृष्‍टिकोण मिलते हैं तथा उनकी वाणी के चैतन्‍य से वे अंतर्मन पर अंकित हो जाते हैं ।

२. शून्‍य अहं होने के कारण स्‍वयं की चूकों के संबंध में सतर्कता से पूछना

     सद़्‍गुरु पद पर विराजमान होते हुए भी मुझसे कहती हैं, ‘‘मुझसे कुछ चूक हो रही हो तो बताओ । इस प्रसंग में ‘क्‍या मुझे कुछ और करना चाहिए था ? मैं यह उचित कर रही हूं न ?’, तत्त्वनिष्‍ठ रहकर मुझे इसका उत्तर दो ।’’ इससे मुझे उनके शून्‍य अहं, साधना की गंभीरता, सतर्कता और तत्त्वनिष्‍ठा आदि गुणों के दर्शन हुए । मैंने एक बार जिज्ञासावश उनसे पूछा, ‘‘सद़्‍गुरु पद पर रहते हुए चूक कैसे हो सकती है ?’’ तब उन्‍होंने उत्तर दिया, ‘‘सौ प्रतिशत होने तक सतर्क रहकर प्रयत्नरत रहना चाहिए ।’’

३. साधकों को व्‍यष्‍टि साधना करने को कहना, यह उन साधकों के लिए ईश्‍वर की कृपा ही होना

     एक बार वे बोलीं, ‘‘जिन साधकों से साधना में गंभीर चूकें होती हैं, तथा उन्‍हें व्‍यष्‍टि साधना करने के लिए कहा जाता है, उन साधकों पर यह ईश्‍वर की कृपा ही है । गुरुसेवा में निरंतर गंभीर चूकें करना, महापाप करने के समान है । ईश्‍वर उन्‍हें व्‍यष्‍टि साधना करने के लिए कहकर, उनकी हो रही अधोगति रोकते हैं । इनमें से कुछ साधक व्‍यष्‍टि साधना के प्रयास भावपूर्ण और लगन से करते हैं तथा कृतज्ञतापूर्वक कहते हैं कि ईश्‍वर ने मुझ पर कितनी कृपा की है ।’’

४. परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी का संपादन किया हुआ विश्‍वास !

     मां को निरंतर परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी को अपेक्षित परिपूर्ण सेवा करने की लगन रहती है । इसलिए वे अनेक सूत्र स्‍वयं ही पूर्ण करती हैं । परात्‍पर गुरुदेव डॉक्‍टरजी को विश्‍वास रहता है कि ‘सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदाजी द्वारा की गई सेवा परिपूर्ण ही होगी ।’

     ऐसी सद़्‍गुणी माताजी को उनके ५० वें जन्‍मदिन पर साष्‍टांग दंडवत करता हूं । मुझे यह सब सीखने का अमूल्‍य अवसर दिया और मुझसे यह लिखवाया, इसके लिए मैं गुरुदेवजी के चरणों में कृतज्ञता व्‍यक्‍त करता हूं ।

– श्री. सोहम सिंगबाळ, सनातन आश्रम, गोवा. (११.९.२०१७)