शास्त्र में संगीत की परिभाषा ‘गायन, वादन एवं नृत्य’ का एकत्रित संयोग ‘संगीत’ कहलाता है, ऐसी बताई गई है । भारतीय गायन, वाद्य और नृत्य कलाओं का शास्त्रीय आधार है । ‘शास्त्रीय दृष्टि से इन कलाओं का अध्ययन और शोधकार्य कर समाजमानस पर इन कलाओं का आध्यात्मिक महत्त्व पुनः अंकित करना’, यह कार्य महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ कर रहा है ।
१. संगीतयोग के संदर्भ में कार्य का आरंभ
वर्ष २००२ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने संगीत साधना के संदर्भ में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का मार्गदर्शन कर ‘संगीत के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की ओर आगे बढना’ अर्थात ‘संगीतयोग’ संकल्पना को मूर्त स्वरूप दिलाना आरंभ किया ।
२. संगीत के अंतर्गत आनेवाले गायन, वादन और
नृत्य, इन कलाओं के संदर्भ में किया गया आध्यात्मिक शोधकार्य
आयुर्वेद में ‘संगीत का उपयोग कर विविध बीमारियां ठीक करने के उदाहरण मिलते हैं । ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से भी ‘संगीत से मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टों पर होनेवाले परिणाम’ के संदर्भ में आध्यात्मिक शोधकार्य चल रहा है । इसके साथ ही व्यक्ति, पशु और वनस्पतियों पर होनेवाले संगीत के अन्य परिणामों का भी अध्ययन चल रहा है । यह अध्ययन सूक्ष्म ज्ञान (टिप्पणी १), साथ ही वैज्ञानिक उपकरण ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ (UAS) के द्वारा किया जा रहा है । गायन, वादन एवं नृत्य से संबंधित आध्यात्मिक शोधकार्य के अंतर्गत अभी तक १५० से भी अधिक प्रयोग किए गए हैं । इनमें से कुछ चुनिंदा उदाहरणों के संबंध में संक्षिप्त जानकारी आगे दी गई है ।
२ अ. गायनकला के संदर्भ में किया गया आध्यात्मिक शोधकार्य : गायन के कारण व्यक्ति, पशु, पक्षी और वनस्पतियों पर होनेवाले परिणामों के अध्ययन के कुछ निष्कर्ष आगे दिए गए हैं ।
२ अ १. गायन और गायन से संबंधित विविध पहलुओं का मनुष्य पर होनेवाला परिणाम
२ अ १ अ. मनुष्य पर विशिष्ट प्रकार के गायन का होनेवाला परिणाम
२ अ १ अ १. पाश्चात्य गायन : यह गायन सुनाने पर श्रोताओं में नकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ अ १ अ २. सुगम गायन : भक्तिप्रधान गायन से श्रोताओं में सकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ अ १ अ ३. भारतीय शास्त्रीय गायन : इसके कारण श्रोताओं में व्याप्त नकारात्मकता अल्प होकर सकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ अ १ आ. स्तोत्र, चार वेद, नामजप इत्यादि का मनुष्य पर होनेवाला परिणाम
२ अ १ आ १. विविध स्तोत्र और ४ वेद : श्रोताओं में व्याप्त नकारात्मकता अल्प हुई और सकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ अ १ आ २. नामजप
२ अ १ आ २ अ. तारक नामजप (टिप्पणी ३) : जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट नहीं हैं, उन्हें इस जप से (टिप्पणी ४) ध्यानावस्था का अनुभव हुआ । जिन साधकों को आध्यात्मिक कष्ट हैं, उन साधकों पर इन नामजपों से आध्यात्मिक लाभ होकर उनमें नकारात्मकता घटने और सकारात्मकता बढने में सहायता हुई ।
२ अ १ आ २ आ. मारक नामजप (टिप्पणी ३) : इस जप के कारण जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट हैं (टिप्पणी ४), उनमें नकारात्मकता घटने में सहायता हुई । जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट नहीं हैं, उन्हें ध्यानावस्था के साथ विविध अनुभूतियां हुईं ।
२ अ १ आ ३. विविध दैवीय नाद : श्रोताओं में अल्प अवधि में नकारात्मकता घटकर उनमें सकारात्मकता बढती है, साथ ही सुनते समय ध्यान का अनुभव हुआ ।
२ अ १ आ ४. ‘ॐ’कार : श्रोताओं की नकारात्मकता अल्पावधि में घटकर उनमें सकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ अ १ इ. भारतीय संगीत में विद्यमान विविध रागों का मनुष्य में विद्यमान बीमारियों पर होनेवाला परिणाम : इसमें निम्नांकित सूत्र ध्यान में आए –
२ अ १ इ १. अपाचन : वृंदावनी सारंग, शुद्ध सारंग एवं मालकंस रागों का गायन सुनने पर अपाचन अल्प हुआ ।
२ अ १ इ २. पित्त : मुलतानी, वृंदावनी सारंग और ललित रागों का गायन सुननेपर ‘पित्त’ की व्याधि पर उपचार हुए ।
२ अ १ इ ३. उच्च रक्तचाप : यमन, गोरख कल्याण और जोग रागों का गायन सुनने पर उच्च रक्तचाप की व्याधि पर उपचार हुए ।
२ अ १ इ ४. निद्रानाश : दरबारी कानडा, जोग एवं मालकंस रागों का गायन सुनने पर ‘निद्रानाश’ व्याधि पर उपचार हुए ।
२ अ १ इ ५. मनोविकार : पुरिया कल्याण, हंसध्वनि एवं देस रागों का गायन सुनने पर ‘मनोविकार’ की व्याधि पर उपचार हुए । २ अ १ ई. गायक के आध्यात्मिक स्तर का गायन सुननेवाले व्यक्तियों पर होनेवाला परिणाम : सामान्य आध्यात्मिक स्तरवाले (टिप्पणी ५) गायक की तुलना में ६० अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त गायक के गायन का परिणाम स्वयं उसपर और सुननेवालों पर अधिक सकारात्मक होता है, साथ ही सुननेवालों पर अधिक समय तक प्रभावी होना दिखाई दिया है ।
२ अ २. पशु पर गायन का होनेवाला परिणाम : २४ अप्रैल २०१३ से १५ जुलाई २०१५ की अवधि में सोलापुर (महाराष्ट्र) के ‘श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम’ ने राष्ट्रहित हेतु ‘साग्निचित अश्वमेध महासोमयाग’ का आयोजन किया था । इस यज्ञ के लिए एक ही प्रकार के २ घोडे लाए गए थे । उनमें से एक घोडा सभी मापदंडों में उचित होने से वह सभी विधियों के समय उपस्थित रहता था, तो दूसरा घोडा नहीं । यज्ञ के घोडे के कानों पर निरंतर १५ महीने तक इस अश्वमेध यज्ञ के मंत्रोच्चार पड रहे थे । जुलाई २०१५ में वैज्ञानिक उपकरण ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ के माध्यम से दोनों घोडों में विद्यमान सूक्ष्म ऊर्जा का अध्ययन किया गया । उसमें यज्ञ के घोडे का प्रभामंडल दूसरे घोडे के प्रभामंडल की तुलना में बहुत अधिक दिखाई दिया ।
२ अ ३. पक्षी पर गायन का होनेवाला परिणाम : ऑस्ट्रेलिया की एक सार्वजनिक वाटिका में स्थित गरुड को पॉप संगीत, हिन्दी फिल्मों के गीत और अंत में संत भक्तराज महाराजजी के भजन सुनाए गए । पहले दोनों प्रकार के संगीत के समय वह उस आवाज से दूर चला गया, तथा भजन चलाने पर वह उस आवाज के पास आकर शांति से भजन सुनने लगा । पॉप और हिन्दी फिल्मों के गीतों में रज-तम गुणों का अनुपात अधिक होने से पक्षियों को ऐसे तरंग ज्ञात होते हैं । इसके कारण वह दूर चला गया, तो भजनों में भगवान का गुणवर्णन होने से उनमें विद्यमान अच्छी (सकारात्मक) तरंगों के कारण वह पास आकर शांति से भजन सुनने लगा ।
२ अ ४. वनस्पतियों पर गायन का होनेवाला परिणाम : पाश्चात्य गायन के परिणाम का अध्ययन करने हेतु प्रयोग के परिसर में स्थित गुलाब के पौधे में नकारात्मकता बढी । साथ ही उस पौधे के पत्ते पूरी तरह पीले पड गए । प्रयोग पूरा होने के उपरांत उस पौधे को पूर्ववत होने में ३ महीने लगे । पाश्चात्य गीतों में नकारात्मकता का अनुपात अधिक होने से उस वनस्पति पर हुए इस दृश्य परिणाम का अनुभव हुआ ।
२ आ. वादनकला के संदर्भ में किया गया आध्यात्मिक शोध : श्रोताओं पर विविध वाद्यों के वादन से उत्पन्न नाद के होनेवाले परिणाम के अध्ययन में निम्नांकित सूत्र (तथ्य) ध्यान में आए –
२ आ १. पाश्चात्य वाद्यों के नाद का होनेवाला परिणाम : ‘ड्रम्स’, ‘क्लैरोनेट’, ‘इलेक्ट्रिक गिटार’, ‘मेटैलिक फ्लूट’, ‘पियानो’, ‘स्पैनिश गिटार’ जैसे पाश्चात्य वाद्य बजाने पर वादक, वाद्य और श्रोताओं में नकारात्मकता बढी दिखाई दी ।
२ आ २. भारतीय वाद्यों के नाद का होनेवाला परिणाम : तबला, सितार, बांसुरी, वीणा जैसे भारतीय वाद्य बजाने पर वादक, वाद्य और श्रोताओं में सकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ आ ३. पाश्चात्य वाद्यों पर भारतीय संगीत बजाने के कारण होनेवाला परिणाम : ‘स्पैनिश गिटार’ जैसे पाश्चात्य वाद्य पर संत भक्तराज महाराज द्वारा लिखित, संगीतबद्ध किए गए और गाए गए भजन की धुन बजाने पर वादक, वाद्य एवं श्रोताओं में सकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ आ ४. भारतीय वाद्यों के नाद का मनुष्य के शरीर में विद्यमान वात, पित्त एवं कफ, इन त्रिदोषों पर होनेवाला परिणाम : कुछ संगीत चिकित्सकों द्वारा बताए गए, साथ ही सूक्ष्म ज्ञान से प्राप्त किए ज्ञान के आधार पर वात, पित्त एवं कफ के लिए बताए गए सांगीतिक रागों को सितार पर बजाने से उक्त त्रिदोष से युक्त रोगियों पर चिकित्सकीय परिणाम दिखाई दिया ।
२ इ. नृत्यकला के संदर्भ में किया गया आध्यात्मिक शोध : श्रोताओं पर विविध प्रकार के नृत्यों के होनवाले परिणाम के अध्ययन में निम्नांकित सूत्र ध्यान में आए –
२ इ १. नर्तक और दर्शकों पर पाश्चात्य नृत्य का होनेवाला परिणाम : ‘वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक रिदमिक डांस’, ‘मेरींगे’, ‘फ्री स्टाइल डांस’, ‘बेली डांस’ इत्यादि प्रकार के नृत्य के समय नर्तक और दर्शकों की नकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ इ २. नर्तक और दर्शकों पर भारतीय नृत्य का होनेवाला परिणाम : कत्थक, भरतनाट्यम् इत्यादि नृत्यों के समय नर्तक और दर्शकों की सकारात्मकता बढी हुई दिखाई दी ।
२ इ ३. नर्तक और दर्शकों पर एक ही व्यक्ति द्वारा भारतीय शास्त्रीय नृत्य, पाश्चात्य नृत्य और ‘फ्यूजन नृत्य’ (पाश्चात्य संगीत पर भारतीय पद्धति से किया गया नृत्य) का होनेवाला परिणाम
अ. पाश्चात्य एवं भारतीय शास्त्रीय नृत्य का सूत्र क्र. ‘३ इ १’ एवं ‘३ इ २’ के अनुसार परिणाम दिखाई दिया ।
आ. ‘फ्यूजन’ पद्धति में पाश्चात्य संगीत की धुन पर नृत्य किया गया । इस नृत्य का परिणाम नकारात्मक था ।
– कु. तेजल पात्रीकर, संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (९.९.२०२०)
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के संगीतयोग के संदर्भ में कार्य के उद्देश्यअ. आध्यात्मिक शोधकार्य के माध्यम से विश्व को भारतीय संगीत की श्रेष्ठता का भान कराना आ. संगीत के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभों का अध्ययन करना इ. सात्त्विक संगीत की निर्मिति करना ई. ‘संगीत के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति’ विषय का सैद्धांतिक, साथ ही प्रायोगिक पद्धति से अध्ययन करना संगीतयोग के कार्य से संबंधित भविष्यकालीन योजनाएंअ. संगीतयोग से संबंधित ग्रंथों का प्रकाशन करना : ‘संगीत’ विषय पर विविध ग्रंथ प्रकाशित होने की प्रक्रिया में हैं । आ. संगीतयोग से संबंधित दृश्यश्रव्य-चक्रिकाओं की निर्मिति करना : ‘संगीत साधना’ विषय का दिशादर्शन करनेवाली विविध दृश्यश्रव्य-चक्रिकाएं भी होंगी । |
टिप्पणी १ – स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि से परे का ज्ञान, अर्थात सूक्ष्म ज्ञान ।
टिप्पणी २ – ‘यूएएस’ उपकरण द्वारा वस्तु, वास्तु, पशु अथवा व्यक्ति में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा, सकारात्मक ऊर्जा एवं कुल प्रभामंडल (ऑरा) मापा जाता है । सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तु में नकारात्मक ऊर्जा हो सकती है; परंतु सभी में सकारात्मक ऊर्जा नहीं होती । सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तु का कुल प्रभामंडल (ऑरा) लगभग १ मीटर होता है ।
टिप्पणी ३ – देवता के तारक और मारक, ये दो रूप होते हैं । भक्त को आशीर्वाद देनेवाला देवता का रूप, तारक रूप है, उदा. आशीर्वाद देने की मुद्रा में श्रीकृष्ण । देवता का असुरों का संहार करनेवाला रूप मारक रूप है, उदा. शिशुपाल पर सुदर्शन चक्र चलानेवाले श्रीकृष्ण । देवता के तारक अथवा मारक रूप से संबंधित नामजप को तारक अथवा मारक नामजप कहते हैं ।
टिप्पणी ४ – ‘आध्यात्मिक कष्ट’ क्या है ? : व्यक्ति का प्रारब्ध, उसके पूर्वजों की अतृप्ति के कारण उसे होनेवाले कष्ट (पितृदोष) इत्यादि आध्यात्मिक स्तर के कारणों से व्यक्ति को ‘आध्यात्मिक कष्ट’ होता है । ‘बिना किसी शारीरिक-मानसिक कारण के तीव्र सिरदर्द, बार-बार थकान, निद्रानाश, मन में अत्यधिक यौन विचार, तीव्र वैवाहिक कलह, व्यक्ति का विक्षिप्त आचरण’ आदि आध्यात्मिक कष्ट के लक्षण हो सकते हैं । ‘आध्यात्मिक कष्ट’, का अर्थ है व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे अधिक मात्रामें होना तीव्र कष्ट है । मध्यम आध्यात्मिक कष्ट का अर्थ है नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना; और मंद आध्यात्मिक कष्ट का अर्थ है नकारात्मक स्पंदन ३० प्रतिशत से अल्प होना ।
संगीत से संबंधित आध्यात्मिक शोध का अखिल मनुष्यजाति
को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से, उस शोध का विविध माध्यमों से प्रस्तुतीकरण करना
१. ‘स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाउंंडेशन’ (एसएसआरएफ) जालस्थल (वेबसाइट) के द्वारा प्रसिद्धि : ‘एसएसआरएफ’ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की प्रेरणा से स्थापित तथा ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका में पंजीकृत स्वयंसेवी संस्था है । ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से संगीत के संदर्भ में किया गया शोधकार्य ‘एसएसआरएफ’ जालस्थल पर विस्तार से दिया गया है । इस जालस्थल पर इस शोध की जानकारी भारतीय भाषाएं हिन्दी एवं तमिल सहित नेपाली, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, रशियन, स्लोवेनियन, रोमेनियन, विएत्नामिज, क्रोएशियन, स्पैनिश, पोर्तुगीज, सर्बियन, डच, चाइनीज, मैसिटोनियन, बल्गेरियन, मलेशियन, इंडोनेशियन और हंगेरियन, इन २० विदेशी भाषाओं में भी प्रकाशित की जाती है ।
२. दृश्यश्रव्य-चक्रिकाओं के माध्यम से प्रसार : विश्वविद्यालय के संगीत का शोधकार्य समाज तक पहुंचे; इसके लिए सरल भाषा में दृश्यश्रव्य-चक्रिकाएं बनाई जाती हैं और विविध जालस्थलों से उनका प्रसारण होता है ।
३. राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंधों का प्रस्तुतीकरण : विश्वविद्यालय के संगीत के संदर्भ में शोधकार्य पर आधारित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी तथा कु. तेजल पात्रीकर द्वारा लिखित शोधनिबंधों का अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में प्रस्तुतीकरण किया गया है ।
३ अ. संगीत एवं नृत्य के आध्यात्मिक पहलू (‘इंटरनेशनल कॉन्फरेंस ऑन ऐंशिएंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी – रिट्रोस्पेक्शन एंड ऐस्पिरेशंस’ (ASTRA 2017), पुणे, १८.१.२०१७)
३ आ. संस्कृत भाषा में जप और मंत्रों के संदर्भ में अलौकिक निरीक्षण एवं अनुभव (‘रिकंस्ट्रक्टिंग इंडियन फिलोसॉफिकल फ्रेमवर्क – क्वेस्ट फॉर डिकोडिंग मीनिंग’, पुणे, १८.१.२०१७)
३ इ. व्यक्ति और वातावरण पर संगीत एवं नृत्य के होनेवाले सूक्ष्म परिणाम का अध्ययन (२४ वीं अंतरराष्ट्रीय वेदांत परिषद, नई देहली, १०.१.२०२०)
संगीत के अध्ययन हेतु संगीत क्षेत्र के मान्यवरों से भेंट करना
संगीत के अध्ययन हेतु महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ, राजस्थान इत्यादि राज्यों के संगीत क्षेत्र में कार्यरत १५० से भी अधिक मान्यवर कलाकारों के साथ भेंट की गई है ।
१. संगीत क्षेत्र के मान्यवरों के साथ भेंटवार्ताएं करना
संगीत क्षेत्र के कलाकारों के साथ संगीत के संबंध में की गई भेंटवार्ताएं ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के जालस्थल (वेबसाइट) पर बहुत शीघ्र रखी जानेवाली हैं ।
२. संगीत क्षेत्र में कार्यरत संतों एवं मान्यवरों द्वारा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के संदर्भ में व्यक्त गौरवोद़्गार !
अ. ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा किया जा रहा संगीत के संदर्भ में शोधकार्य आज के समय की मांग ही है । इससे मनुष्यजाति को बहुत बडा लाभ मिलेगा ।’ – प.पू. देवबाबा, शक्तिदर्शन योगाश्रम, मंगळूरु, कर्नाटक. (२०.१०.२०१८)
आ. ‘कलाओं के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की ओर जाने का मार्गदर्शन हमारे पास नहीं है । ‘इसके लिए हमें क्या करना
पडेगा ?’, यह आप सुझाएं । आपने ऐसा कुछ तैयार कर हमें दिया, तो हम उसे अपने पाठ्यक्रम में अंतर्भूत करेंगे ।’ – डॉ. मांडवी सिंह (नृत्यांगना), कुलगुरु, इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ, छत्तीसगढ. (२.७.२०१९)
इ. ‘ये लोग भारतीय कला, परंपरा एवं साधना के लिए कार्य कर रहे हैं, उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएं !’ – पं. विकास कशाळकर (शास्त्रीय गायक), पुणे, महाराष्ट्र. (१०.८.२०१९)
ई. ‘आप कौन सा कार्य कर रहे हैं ?’, यह ज्ञात होने पर मैं बहुत आनंदित हुआ । आप जो कार्य कर रहे हैं, आज विश्व को उसकी अत्यंत आवश्यकता है । आज समाज बिखर गया है और समाज में ढिलाई आ गई है । इस पर उपाय के रूप में आपकी विचारधारा काम कर सकती है ।’ – पंडित उस्मान खान (सितारवादक), पुणे, महाराष्ट्र. (१६.९.२०१९)