संपूर्ण संसार में साम्यवादियों और जिहादियों की असहिष्णुता की
घटनाएं बढ रही हैं, तब भारत के कथित बुद्धिवादी मौन क्यों ?
वर्तमान में साम्यवादी (कम्युनिस्ट) और जिहादी उदारवादी (लिबरल) बनने का ढोंग कर रहे हैं । बहुरूपी धूर्त ये साम्यवादी और जिहादी संपूर्ण संसार में मानवाधिकार, महिलाआें के अधिकार, अल्पसंख्यकों के अधिकार, अभिव्यक्ति स्वतंत्रता और सहिष्णुता की वकालत करते हुए दिखाई देते हैं । सैद्धांतिक और व्यावहारिक स्तर पर देखें, तो इन दोनों विचारधाराआें से अधिक असहिष्णु और विरोधियों के प्रति निर्दयी दूसरा कोई नहीं होगा । इसके लिए किसी प्रकार के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि इन दोनों की मूल पुस्तकें पढना ही पर्याप्त है । इन दोनों विचारधाराआें की असहिष्णुता के अनेक उदाहरणों से इतिहास के पृष्ठ भरे पडे हैं । इस संबंध में कुछ नई घटनाएं देख सकते हैं ।
तुर्किस्तान में स्थित हागिया सोफिया संग्रहालय का रूपांतरण मस्जिद में करना
कुछ समय पूर्व ही तुर्किस्तान की राजधानी इस्तंबुल में राष्ट्रपति इर्दोगन ने हागिया सोफिया संग्रहालय का रूपांतरण मस्जिद में कर दिया है । हागिया सोफिया मूलतः एक चर्च है और यह भव्य भवन वर्ष ५३७ में रोमन सम्राट जस्टिनियन ने बनाया था । वर्ष १४५३ में तुर्की के सुलतान मोहम्मद द्वितीय ने इस्तांबुल पर कब्जा करके इस भवन का रूपांतरण मस्जिद में कर दिया । उसके पश्चात तुर्की के उदारवादी निर्माता कमाल अतातुर्क ने इस भवन को एक संग्रहालय में रूपांतरित कर उसे सर्वधर्म और संस्कृति के लिए खोल दिया । अब राष्ट्रपति इर्दोगन ने इस भवन को पुनः मस्जिद में रूपांतरित कर दिया है । इस निर्णय पर ‘किंग्ज कॉलेज लंदन’ की प्राध्यापिका जुडिथ हेरिन ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘इर्दोगन ने प्रतीकात्मक रूप में सहिष्णुता की धरोहर का अंत किया है ।’ इस्तांबुल में शतकों से ईसाई, मुसलमान और ज्यू (यहूदी) एकत्रित रहते आए हैं । हेरिन कहती हैं, ‘हागिया सोफिया संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित धरोहर भवन है । वह संपूर्ण संसार की धरोहर है । उसे केवल मुसलमानों को सौंपना एक प्रकार से सांस्कृतिक स्वच्छता करने के समान है ।’
चीन मेें उघुर मुसलमानों पर किए जा रहे अन्याय और अत्याचार
चीन में माओ ने ‘सांस्कृतिक स्वच्छता’ की थी । आज चीन के शी जिंगपिग सिंकियांग प्रांत में उघुर मुसलमानों की सफाई का अभियान योजनाबद्ध पद्धति से क्रियान्वित कर रहे हैं । उघुर मुसलमानों के अल्पसंख्यक अधिकारों का हनन किस प्रकार हो रहा है, यह बतानेवाले अनगिनत ब्यौरे उपलब्ध हैं । उघुर महिलाआें को गर्भ धारण न करने देना, ‘रोजा’ की अवधि में व्रत न करने देना तथा विरोध करनेवालों को लाखों की संख्या में सुधारगृहरूपी प्रताडना-छावनियों में रखना, ऐसा नित्य ही हो रहा है ।
पाकिस्तान मेें बनाया जा रहा हिन्दुआें का मंदिर तोडा जाना
कुछ दिनों पूर्व पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में हिन्दुआें के लिए मंदिर बनाने का प्रयत्न किया गया था । तब अनेक धर्मांधों ने इस मंदिर की दीवारें तोड दीं । वे बोले कि ‘पाकिस्तान एक इस्लामी देश है और यहां मंदिर बनाना उनके धर्म के विरुद्ध है ।’ कुछ समय पूर्व ही बलूचिस्तान मेें घर बनाते समय तथागत बुद्ध की एक प्राचीन मूर्ति मिली, तब लोगों ने उसे तोड दिया । इसी प्रकार चीन के साम्यवादी दल ने हांगकांग में नागरिक अधिकारों पर बोलनेवालों को कुचलकर रातोंरात कानून में किस प्रकार परिवर्तन किया, यह सबने देखा है । महत्त्वपूर्ण यह है कि इन घटनाआें पर भारत के बुद्धिवादी सामान्यतः ही शांत ही रहे हैं ।
साम्यवादी शी जिनपिंग की विस्तारवादी नीति पर विविध देशों का बलि चढना !
संसार के साम्यवादियों के आदर्श बने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वर्तमान में विस्तारवाद के घोडे पर सवार हैं । दूसरे देशों की भूमि हडपकर उसे चीन के कब्जे में लेना, बल का उपयोग कर अन्य देशों को धमकाना, चीन के साम्यवादी दल का नया धंधा हो गया है । भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान, ताईवान, हांगकांग आदि देश शी जिनपिंग और साम्यवादी दल की विस्तारवादी नीति पर एक के पश्चात एक बलि चढे हैं । चीन के साम्यवादी दल को अंतरराष्ट्रीय कानून, मर्यादा और देशों के मध्य परस्पर अनुबंध आदि की कोई चिंता नहीं है । चीन के साम्यवादी दल के समान इस्लामी जिहादी भी दूसरों का हित और अधिकार मानने को तैयार नहीं होते ।
साम्यवादी और जिहादियों का गठबंधन देश के लिए अत्यंत संकटदायी !
इन सबके कारण आश्चर्य यह होता है कि अमेरिका के ‘ब्लैक लाइफ मैटर्स’ से भारत के ‘सीएए’ के विरुद्ध (नागरिकता सुधार अधिनियम के विरोध में) आंदोलन तक साम्यवादी और जिहादी दोनों ही एकत्रित रूप से नागरिक अधिकार, मानवाधिकार, अभिव्यक्ति स्वतंत्रता और सहिष्णुता की बातें करते हुए दिखाई देते हैं । जो चीन उसके देश में फेसबुक, ट्वीटर और टिकटॉक आदि सामाजिक माध्यमों के उपयोग की अनुमति नहीं देता, वह भारत द्वारा टिकटॉक पर रोक लगाने पर बुद्धिमत्ता सिखाता है । इन्हीं दोनों विचारों के लोग भारत में ‘सीएए’ विरोधी आंदोलन में शाहीनबाग को एक नई क्रांति का उद़्घोष कह रहे हैं । इसके पश्चात इन्हीं लोगों ने इस आंदोलन को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के देहली दौरे के समय दंगे में रूपांतरित किया । होंठों पर स्वधर्म के श्रद्धास्रोत का नाम और हाथ में साम्यवाद का यह गठबंधन विचित्र तो है ही; परंतु अत्यंत संकटदायी भी है ।
लोकतंत्र के अधिकारों का उपयोग उसी की व्यवस्थाआें को नष्ट करना चाहनेवाले उदारमतवादी !
इन दोनों विचारधारा के लोगों ने जानबूझकर उदारता का बुरका ओढ रखा है । वे जानते हैं कि उदारवादी लोकतंत्र समाज में अधिकारों की चर्चा करना ‘फैशन’ है । इसलिए मूलतः हिंसक विचारधारा को प्रामाणिकता का प्रमाणपत्र मिलता है । ये उदारवादी लोकतंत्र में प्रदर्शन-आंदोलन के अधिकार का उपयोग कर देश में उग्र हिंसात्मक कार्रवाइयां करते रहते हैं । वास्तविकता यह है कि इस्लामिक कट्टरतावादी और साम्यवादी, इन दोनों को ही लोकतंत्र व्यवस्था और उनके मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं है । ये लोग लोकतंत्र के अधिकारों का उपयोग उसी लोकतंत्र की व्यवस्थाआें को नष्ट करने के लिए करते रहते हैं । ये अराजकतावादी कहने को बहुत थोडे होते हैं, तब भी बुद्धिजीवी, प्रसारमाध्यम और शिक्षा संस्थाआें में इनका अत्यधिक प्रभाव है । उसका उपयोग कर ये लोग लोकतंत्र समाज में असंतोष, क्रोध, निराशा, प्रतिहिंसा और सामाजिक वैमनस्य की भावना उत्पन्न कर रहे हैं । वर्तमान में कोरोना का प्रकोप चल रहा है । इस परिस्थिति में कट्टरपंथी धर्मांधों और साम्यवादियों को लगता है कि कोरोना के कारण उत्पन्न परिस्थिति का अनुचित लाभ उठाकर वे लोकतंत्र की व्यवस्थाआें को दुर्बल बना सकते हैं ।
तुर्किस्तान और चीन के आचरण पर भारत को परामर्श देनेवाले बुद्धिजीवियों का रहस्यमय मौन !
अमेरिकी विदेश व्यवहार मंत्री माइक पाम्पियो ने अपने यूरोप दौरे में स्पष्ट कहा था कि ‘कोरोना संकट का लाभ उठाकर चीन ने लद्दाख और दक्षिण चीन महासागर में अपना शक्तिप्रदर्शन आरंभ किया है ।’ तुर्किस्तान और चीन के इस आचरण पर भारत के बुद्धिजीवियों का रहस्यमय मौन आश्चर्यचकित करनेवाला है । जो लोग दिन-रात अयोध्या की रामजन्मभूमि पर चिकित्सालय, धर्मशाला ही नहीं, अपितु सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण का परामर्श दे रहे थे । ये लोग ही हागिया सोफिया के स्थान पर बलपूर्वक मस्जिद बनाने के निर्णय पर एकदम मौन हैं । भारत में नागरिक अधिकारों के लिए आवाज उठानेवाले हांगकांग में नागरिक अधिकारों पर हुए अतिक्रमण के संबंध में मौन धारण किए हुए हैं । ऐसा क्यों ?
लोकतंत्र के उदार और नरम कानूनों का व्यवस्थित उपयोग करनेवाले उसके विरोधी !
मूलतः जिहादी और साम्यवादी दोनों ही व्यूहरचना हेतु उदारवादी लोकतंत्र में मिले हुए अधिकारों का उपयोग करते हैं । उनकी श्रद्धा न ही लोकतंत्र पर है, न ही उसके द्वारा दी गई अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के अधिकार पर है । अल्पसंख्यक अधिकार, महिलाआें के अधिकार और सहिष्णुता आदि सभी विषय उनके लिए श्रद्धा के नहीं, अपितु व्यूहरचना के उपकरण हैं । वे जब तक अल्पमत में हैं, तब तक वे इसका उपयोग करते हैं । जिस समाज में वे अल्पमत में होते हैं, वहां वे स्वयं को पीडित दर्शाते हैं । ये दोनों शक्तियां इस खेल में निपुण हैं । उसके लिए कुछ समय पूर्व ही घटे हुए दो उदाहरण देना यहां पर्याप्त होगा ।
अ. भारत में वर्तमान में कट्टर साम्यवादी वरवरा राव पर जो सूत्र चर्चा में है; परंतु वरवरा राव इससे पूर्व स्वयं ही बोले हैं कि उनका विश्वास ‘सशस्त्र क्रांति’ पर ही है ।’ अब उनके समर्थक उनके विचार, उनके कृत्य आदि की चर्चा न कर केवल उनकी अधिक आयु और उनके लेखन की ही चर्चा करने लगे हैं । यदि कानून सबके लिए समान है, तो ये कार्यकर्ता दिखनेवाले लोगों के लिए अलग मांग क्यों ? साम्यवादी उनकी सत्ता की अवधि में क्या ऐसी दया एवं बुद्धि दिखाते हैं ?, यह उन्हें पूछना चाहिए ।
आ. ऐसी ही घटना ब्रिटेन में शमीमा बेगम नामक ‘इसिस’ से संबंधित जिहादी आतंकवादी महिला की है । मूलतः बांग्लादेशी शमीमा ब्रिटिश नागरिक है । वह १५ वर्ष की आयु में सीरिया में भाग गई थी तथा इस्लामिक स्टेट के लडाकू गुट में सम्मिलित हो गई । वह वहां आत्मघाती टुकडियों के लिए विस्फोटक जैकेट बनाती थी; परंतु अब उसे ब्रिटेन वापस आना है । ब्रिटेन में उसके अधिकारों की चर्चा हो रही है । उसका मासूम चेहरा एक प्रकार का ‘पोस्टर’ बन गया है । शमीमा को परिस्थिति से पीडित दिखाने का प्रयास हो रहा है तथा उस बेचारी पर अत्यधिक अत्याचार हो रहे हैं । लोकतंत्र के विरोधी व्यवस्थित रूप से लोकतंत्र व्यवस्था की उदारता और नरम कानूनों का उपयोग कर रहे हैं ।
धूर्त और चालाक जिहादी अथवा साम्यवादियों का बुरका फाडना आवश्यक !
जिहादियों अथवा साम्यवादियों को संसार में कहीं भी सत्ता मिलते ही, वे पहले उनके विरोधियों के सर्व अधिकार ही नहीं, अपितु उनके जीने के अधिकार भी छीन लेते हैं । ये दोनों ही विचारधाराएं शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के सिद्धांतों पर विश्वास नहीं रखतीं । उदारता का बुरका पहनकर समाज के अलग-अलग गुटों में गहराई तक प्रवेश कर बैठे हुए ये लोग सबसे बडा संकट हैं । ये शक्तियां लोकतंत्र के अधिकारों का उपयोग भीतर ही भीतर उन्हें दुर्बल और अंतत: नष्ट करने के लिए कर रही हैं । उनका मूल ध्येय ही यह है । इसलिए ऐसे धूर्त और चालाक लोगों के बुरके फाडना अत्यंत आवश्यक है ।
– उमेश उपाध्याय
(संदर्भ : दैनिक ‘तरुण भारत’, २८ जुलाई २०२०)