चीन की गुप्तचर संस्थाएं भारत में किस प्रकार दुष्कृत्य करती हैं और इसमें उन्हें कितनी सफलता मिली है, उनसे अपने देश और स्वयं की रक्षा कैसे करनी चाहिए, साथ ही हम देश को भी सुरक्षित रखने में किस प्रकार सहायता कर सकते हैं, इसे हम इस लेख में देखेंगे ।
चीन की बहुआयामी जासूसी का भारत को भी बहुआयामी उत्तर देना आवश्यक !
चीन की जासूसी गतिविधियां बहुआयामी हैं । इसलिए हमें यदि उनके विरुद्ध सफलता प्राप्त करनी है, तो उसके लिए हमें बहुत प्रयास करने पडेंगे । चीन लद्दाख से वापस नहीं गया है और उसके वापस जाने की संभावना भी नहीं है । भारत में चीनी विषाणु के कारण बीमार पडनेवालों और मरनेवालों की संख्या बढ रही है । चीन के इस जैविक आक्रमण के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को बडी हानि पहुंची है । इसके लिए हमें चीन को उत्तरदायी प्रमाणित करना चाहिए । ऐसा होते हुए भी हम भारतीयों को अभी भी चीन के प्रति इतना आक्रोश नहीं है, जितना होना चाहिए । उन्हें ऐसा लगता है कि सस्ती चीनी वस्तुआें के बिना हम जीवित नहीं रह सकेंगे; परंतु हमें भी चीन पर बहुआयामी प्रतिआक्रमण करना आवश्यक है।
चीन की गुप्तचर संस्था ‘मिलिटरी सिक्रेट सर्विस’
पाकिस्तान का गुप्तचर संगठन ‘आईएसआई’ से अवगत हैं । इस संस्था के सदस्य हमारे देश में कैसे आतंकी भेजते हैं, किस प्रकार बमविस्फोट करते हैं, युवकों को भडकाकर उन्हें आतंकी कैसे बनाते हैं? आदि से हम अवगत हैं ही ! इस तुलना में चीन के गुप्तचर संगठन ‘एमएसएस (मिलिटरी सिक्रेट सर्विस)’ के संदर्भ में हमें बहुत ही अल्प जानकारी है । यह चीनी संगठन भारत में कौन सी गतिविधियां करता है ? मध्य भारत में बडी मात्रा में माओवाद फैला हुआ है । यह चीन का एक छद्म युद्ध ही है । आपको ज्ञात होगा कि वर्ष २००४ में नक्सली और सभी समविचारी संगठनों ने एकत्रित होकर ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओईस्ट)’ की स्थापना की थी । माओवादी प्रतिवर्ष सहस्रों करोड रुपए की हानि पहुंचाते हैं और करोडों रुपए की फिरौती जमा करते हैं । उनके आक्रमण में प्रतिवर्ष हमारे ४०० से ५०० नागरिक मारे जाते हैं । ऐसा होते हुए भी कुछ राजनीतिक दल चीन के विरुद्ध बोलने को तैयार नहीं है, यह दुर्भाग्यजनक है !
चीनी अध्ययन केंद्र के माध्यम से जासूसी गतिविधियां
की जाती हैं; इसलिए ऐसे केंद्र तुरंत बंद करने आवश्यक !
चीन ने नेपाल और म्यांमार में स्टडी सेंटर (अध्ययन केंद्र) अथवा ‘कॉन्फेशियस सेंटर’ बनाए हैं । हमारे कुछ विश्वविद्यालयों में स्थित ऐसे कुछ केंद्र, जहां चीनी भाषा, चीनी संस्कृति अथवा चीन की जानकारी देने से किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए; परंतु वे यह काम अल्प और भारत के विरुद्ध जासूसी करने का काम अधिक करते हैं । हमारे गुप्तचर विभागों ने यह जानकारी दी है । चीन ने हमारे ५५ विश्वविद्यालयों के साथ अनुबंध किया है, जहां चीनी अध्ययन केंद्र खोले जाएंगे । ऐसे केंद्र कतई चलने नहीं देने चाहिए । चीनियों ने ऑस्ट्रेलिया में ऐसे केंद्रों के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया की नीति में बदलाव लाने का प्रयास किया । वहां के विश्वविद्यालयों में दादागिरी कर प्राध्यापकों को उनके पे-रोल पर लाया गया, साथ ही उन्होंने कुछ राजनीतिज्ञों को भी अपने पक्ष में करने का प्रयास किया । अर्थात वे ऑस्ट्रेलिया में पकडे गए । ऐसा भारत में भी हो सकता है; वे हमारे महाविद्यालयीन युवक और प्राध्यापकों के मन में वामपंथी विचारधारावाले संगठनों के प्रति प्रेम उत्पन्न कर उन्हें ‘शहरी नक्सली’ बनाने का प्रयास करेंगे । उनका यह प्रयास हमें विफल कर देना चाहिए । यदि हमें चीनी भाषा सीखनी ही है, तो उसके लिए हम हाँगकाँग अथवा ताईवान से विशेषज्ञ बुला सकते हैं ।
चीन द्वारा भारत पर दृष्टि रखने का प्रयास
चीन हमारे पडोसी राष्ट्रों को शस्त्रों की आपूर्ति करता है । उन्हें इन शस्त्रों का उपयोग करना नहीं आता; इसलिए इन शस्त्रों को चलाने का प्रशिक्षण देने हेतु चीन के सेनाधिकारी, उनके नाविक तथा वैमानिक वहां जाते हैं और वहां से वे भारत पर दृष्टि रखते हैं, उदा. हाल ही में चीन ने बांग्लादेश को २ पनडुब्बियां किराए पर दीं । बांग्लादेशियों को उन्हें चलाना नहीं आता । इसलिए उन्हें चलाने हेतु चीन के नाविक व मांझी वहां गए हैं । इसकी आड में वे बांग्लादेश की निचले क्षेत्र में स्थित अंदमान-निकोबार द्वीप पर ध्यान रखते हैं । पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह, श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह व बांग्लादेश का चटगांव बंदरगाह, ये सभी बंदरगाह चीन के नियंत्रण में हैं, जबकि म्यांमार के शित-वे बंदरगाह पर चीन की दृष्टि है । वहां से चीनी अधिकारी भारत पर दृष्टि रखने का प्रयास करते हैं । युद्ध के समय हम इन बंदरगाहों पर आक्रमण कर सकते हैं; परंतु शांति के समय भी वे हमारे लिए संकटकारी हैं ।
‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक महामार्ग’ ग्वादर बंदरगाह से आरंभ होकर बलुचिस्तान, सिंध, पंजाब और पाक अधिकृत कश्मीर से होकर चीन के शिनजियांग प्रांत में पहुंचता है । इस मार्ग की रक्षा के लिए २ डिविजन्स अर्थात २० से २५ सहस्र चीनी सेना तैनात है । यह चीनी सेना वहां से भारत के विरुद्ध जासूसी करने का प्रयास करती है, साथ ही ग्वादर बंदरगाह की रक्षा करने हेतु चीन ने बहुत गुप्तचर भी रखे हैं । इसके अतिरिक्त इस महामार्ग की रक्षा के लिए पाकिस्तान ने २ से ३ डिविजन सैनिकों की तैनाती की है ।
चीन की जासूसी का उत्तर देने हेतु भारत द्वारा किए जानेवाले आवश्यक प्रयास
चीन पडोसी राष्ट्रों से हम पर दृष्टि रखता हो, तो हमें क्या करना चाहिए ? अर्थात उक्त उल्लेखित बंदरगाहों में हमें भी अपने लोग रखने चाहिए । इससे हम चीन की गतिविधियों पर दृष्टि रख सकते हैं । इसके अतिरिक्त हम मालदीव में ५०० करोड रुपए का निवेश कर यातायात की सुविधाएं (इन्फ्रास्ट्रक्चर) बनाने जा रहे हैं । चीन का तेल व्यापार मालदीव, हमारे लक्षद्वीप और मिनीकॉइल टापू से गुजरता है । इसके कारण हम वहां से चीन की गतिविधियों पर दृष्टि रख सकते हैं । केवल इतना ही नहीं, अपितु यह व्यापारी मार्ग हमारा जो अंतिम अंदमान-निकोबार द्वीप है, वहां से मल्लका के जलडमरुमध्य की ओर जाता है । वहां से भी हम उन पर दृष्टि रख सकते हैं ।
ग्रेट निकोबार हमारा अंतिम टापू है, वहां भारत ‘ट्रान्सिटमेंट’ बंदरगाह बनानेवाला है । जब गहरे समुद्र से नौकाएं आती हैं, तब वहां ‘वीएलसीसी’ (वेरी लार्ज क्रूड कैरियर्स) नौकाआें का उपयोग किया जाता है । ये नौकाएं डेढ से २ लाख टन की विशाल होती हैं । इतनी बडी नौकाआें को दूसरे देश के बंदरगाह जाना संभव नहीं होता । इसलिए ऐसी बडी नौकाआें में स्थित सामग्री को मध्यम आकारवाली नौकाआें में स्थानांतरित किया जाता है । हम ग्रेट निकोबार के निचले भाग में स्थित टापू पर ऐसा हब ‘कैंबल बे’ बनानेवाले हैं । वहां हमारी नौसेना, वायुदल, हवाई अड्डे और सभी सेनाएं हैं । इसलिए हम इस क्षेत्र से चीन पर दृष्टि रख सकते हैं, साथ ही शांति काल में व युद्ध काल में भी हम उन पर आक्रमण कर सकते हैं ।
चीन की जासूसी से बचने के लिए चीनी वस्तुआें का उपयोग न करना ही एकमात्र उपाय !
चीन का गुप्तचर संगठन ‘एमएसएस’ अन्य संगठनों से अलग है । यह संगठन अधिक मात्रा में प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है । आज भी भारतीय चीनी बनावट के भ्रमणसंगणक (लैपटॉप), चल-दूरभाष व इलेक्ट्रॉनिक्स सामग्री खरीदकर अपने ही पैसों से एक चीनी गुप्तचर को स्थान उपलब्ध करवाते हैं । चीन ने पिछले वर्ष भारत (भारतीय संस्थाआें) पर ४० सहस्र से भी अधिक साइबर आक्रमण किए हैं । इसलिए चीनी वस्तुआें का उपयोग न करना ही राष्ट्रहित में आवश्यक है !
चीन के साइबर आक्रमण से हम कैसे अपनी रक्षा कर सकते हैं ?
चीन ‘हैकिंग’ के माध्यम से जानकारी लेने का प्रयास करता है । इसके लिए हमें स्वयं के लिए ‘फायरवॉल’ तैयार करना ही इसका एकमात्र उपाय है । हमारे पास सरकारी ‘नेटवर्क बेस सिस्टम’ है । रिजर्व बैंक, भारतीय रेल जैसे सहस्रों ‘नेटवर्क्स’ हैं, जो अलग-अलग संस्थाआें के लिए काम करते हैं । उनके सिस्टम्स ‘हैक’ न हों; इसके लिए हमने प्रौद्योगिकी के अंतर्गत गुप्तचर विभाग ‘एनटीआरओ’ (नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन) बनाया है । हमारे ‘नेटवर्क बेस सिस्टम’ की पूरी तरह से रक्षा हो और हमारे सिस्टम में किसी प्रकार की घुसपैठ न हो; इसके लिए इस ‘एनटीआरओ’ की एक उपसंस्था भी कार्यरत है । एनटीआरओ’ अन्य सरकारी संंस्थाआें का निरीक्षण कर उनके ‘नेटवर्क बेस सिस्टम’ में क्या त्रुटियां है, यह बताती है । आप भले किसी भी संस्था में हों; अपनी संस्थाआें के ‘स्ट्राँग और वीक पॉईंट्स’ का परीक्षण करवा लें । वे हमें हमारे सिस्टम की रक्षा करने के लिए अनेक ‘फायरवॉल’ तैयार करने के साथ ही अनेक पद्धतियां बताते हैं ।
हमारे व्यक्तिगत प्रणाली (सिस्टम) की रक्षा करनी हो, तो संगणक में ‘एंटी वाइरस’ चाहिए । इंटरनेट के लिए उपयोग किए जानेवाले संगणक में महत्त्वपूर्ण जानकारी न रखकर अलग स्थान पर उसका ‘बैकअप’ रखना आवश्यक है । हमारा ‘डिफेंडीव सिस्टम’ बहुत अच्छा है; परंतु साइबर युद्ध में प्रतिदिन नए शोध किए जाते हैं । इसलिए इस पर दृष्टि रखने के लिए ‘एनटीआरओ’ की उपसंस्था ‘सीईआरटी’ (साइबर इमर्जन्सी रिस्पॉन्स टीम) है । जिस प्रकार हमारे यहां आतंकी आक्रमण होने पर प्रतिआक्रमण के लिए ‘क्यूआरटी’ (क्विक रिएक्शन टीम) होती है, उस प्रकार साइबर आक्रमण के समय ‘सीईआरटी’ का काम होता है । उनकी यह ‘हेल्पलाइन’ स्थायी रूप से २४ घंटे उपलब्ध है । जिनके पास ‘नेटवर्क बेस सिस्टम’ है, वे इस ‘हेल्पलाइन’ का संपर्क क्रमांक अपने पास रखें । चीन के किसी भी हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर अथवा ‘एप’ का उपयोग न करें ।
उपग्रहों के माध्यम से जासूसी करने पर मर्यादाएं होना
इसके अतिरिक्त चीन उपग्रहों के माध्यम से हम पर दृष्टि रखता है । चीन को सर्वत्र दृष्टि रखना संभव नहीं है; क्योंकि अपनी सभी गतिविधियों पर दृष्टि रखने के लिए चीन को लगभग २० से २५ उपग्रहों की आवश्यकता पड सकती है; इसलिए चीन भारत के ‘मिसाईल लाँचिंग स्टेशन’ जैसे स्थान पर दृष्टि रखने का प्रयास करता है ।
स्वदेश की जासूसी करना चीनी नागरिकों के लिए अनिवार्य !
चीन ने अपने प्रत्येक नागरिक के लिए अपने देश की जासूसी करना अनिवार्य कर दिया है । इस कारण प्रतिवर्ष ४ – ५ करोड चीनी लोग विविध देशों में जाकर जासूसी का काम करते हैं । चीन की दृष्टि हमारी सामाजिक गतिविधियों की अपेक्षा प्रौद्योगिकी से जुडी हमारी संस्थाआें पर अधिक होती है, उदा. इस्रो, वैश्विक स्तर की आईआईटी इत्यादि । यहां के चीनी छात्र हमारे शोध की चोरी करते हैं । अतः वैश्विक स्तर के हमारे जो शिक्षा संस्थान हैं, वहां चीनी छात्रों को प्रवेश नहीं देना चाहिए । चीन के अनेक व्यापारी भारत आते हैं, तब वे यहां भी ऐसे काम करने का प्रयास करते हैं । जहां-जहां वैश्विक गुणवत्तावाली प्रौद्योगिकी है, चीन ने उसे चुराने का प्रयास किया है । उदा. चीन के जो लडाकू विमान हैं, वे रूसी बनावटवाले विमानों पर आधारित हैं । चीन ने ‘वेबबॉरोस्टीन’ का उपयोग कर रूस का विमान चुराया, उसे काटा, उसमें ‘रिवर्स इंजीनियरिंग’ किया और ‘जेएफ १०’ जैसे विमान बना लिए । इसी प्रकार क्षेपणास्त्रों सहित कई बातों में हुआ । उन्होंने परमाणु बम कैसे बनाना चाहिए ? इसका तंत्र चुराने के लिए पाकिस्तान की सहायता की है ।
जासूसी के लिए चीन द्वारा ‘हनीट्रैप’ का उपयोग किया जाना
चीन ‘हनीट्रैप’ का भी उपयोग करता है । अब ‘हनीट्रैप’ क्या होता है ? चीन महिलाआें का उपयोग कर किसी महत्त्वपूर्ण अधिकारी, नेता अथवा सेनाधिकारी से जानकारी चुराने का प्रयास करता है ।
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे, महाराष्ट्र.