अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (अनिसवाले) जो अपने आप को न्यायालय से अधिक बुद्धिमान समझते हैं !
२०१६ से मैं दाभोलकर हत्या मामले पर ध्यान रख रहा हूं। ज इस प्रसंग का परिणाम आया । वास्तव में जिन लोगों ने मारी थी, उन्हें दंड मिला, जबकि साक्ष्य (सबूतों) के अभाव में तीन लोगों को रिहा कर दिया गया है । वास्तव में, उनके विरुद्ध बेहतर साक्ष्य (सबूत) जुटाए जा सकते थे । न्यायालय ने यह नहीं कहा है कि उनका सहभाग (संलिप्तता) स्पष्ट नहीं है। यदि अच्छे साक्ष्य (सबूत) होते तो उन्हें भी दंड मिलता । डॉ. दाभोलकर की हत्या के पीछे कोई और नहीं अपितु सनातन का हाथ है । (गवाहों पर दबाव डालने वाले, घोटालेबाजों तथा सरासर झूठ बोलने वालों को दूसरों को ज्ञान नहीं सिखाना चाहिए ! – संपादक)
(कहते हैं) ‘कोई स्रोत न मिलना शर्म की बात है !’ – हामिद दाभोलकर, डॉ. दाभोलकर का बेटा
मैंने अभी तक रिजल्ट पेपर नहीं देखा है । इस जांच में लगभग ११ वर्ष लग गए। यह न्यायपालिका में विश्वास, सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या तथा विचार के लिए लोगों को मारने की प्रथा के विरुद्ध लडाई थी । जब तक यह चलन है, हमारा मानना है कि लडाई जारी रहेगी । सूत्रधार न मिलना खेद की बात है; क्योंकि इस तरह के षड्यंत्रों में अधिकतर हम यही देखते हैं कि जो मोहरे होते हैं, उन्हीं की बलि चढती है । उनके पीछे के सूत्रधार स्वतंत्र रहते हैं । परिणाम जानने के उपरांत हम अगली लडाई की भूमिका निश्चित करेंगे । (यदि दाभोलकर सूत्रधार को खोजने के लिए इतने उत्सुक थे, तो वे प्रकरण की सुनवाई पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय क्यों गए? उन्हें ध्यान देना चाहिए कि दाभोलकर की हत्या की जांच को गुमराह करने के लिए जांच तंत्र जितना उत्तरदायी है, उतना ही उत्तरदायी दाभोलकर परिवार भी है ! – संपादक)