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पुणे, १० मई (संवाददाता) – पीछले ११ वर्षाें से प्रलंबित और जिसकी ओर पूरे महाराष्ट्र का ध्यान लगा था, ऐसे अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में महत्त्वपूर्ण अभियोग का निर्णय १० मई २०२४ को पुणे के विशेष न्यायाधीश पी.पी. जाधव ने घोषित किया । केंद्रीय अन्वेषण तंत्र ने (सीबीआई ने) जिन्हें दोषी ठहराया था, ऐसे मुख्य संदिग्ध अपराधी हिन्दू जनजागृति समिति से संबंधित डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे, सनातन के साधक श्री. विक्रम भावे और हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर की इस मामले में ठोस प्रमाणों के अभाव में न्यायालय ने निर्दोष मुक्तता की ।
Sanatan Sanstha was made a scapegoat by the #NarendraDabholkar family and the left cabal to raise the Hindu terror bogey.
Years of defamation, threats of ban, and an international conspiracy to malign Sanatan!#Sanatan_Innocence_Proved and the #Sanatan_HinduTerror_Myth stands… pic.twitter.com/n0Rf5rLYlc
— Sanatan Sanstha (@SanatanSanstha) May 10, 2024
अन्य संदिग्ध अपराधी सचिन अंदुरे और शरद कळसकर को इस हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया है । न्यायालय ने उन्हें आजीवन कारावास और प्रत्येक को ५ लाख रुपए जुर्माना ऐसा दंड घोषित किया है । सीबीआई की ओर से विशेष सरकारी अधिवक्ता प्रकाश सूर्यवंशी ने सरकार का पक्ष प्रस्तुत किया । इस निर्णय से सीबीआई द्वारा १० जून २०१६ को बंदी बनाए गए डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे कुल ८ वर्षाें के उपरांत कारागृह से बाहर आएंगे ।
इस समय माननीय न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जांच तंत्रों की ओर से डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे पर मुख्य सूत्रधार कहकर जो आरोप किया गया था, उसे सरकारी पक्ष प्रमाणित नहीं कर पाया, साथही विक्रम भावे और अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर पर लगाया कोई भी आरोप प्रमाणित नहीं हो सका ।’’ इस मामले में प्रारंभ से ही सनातन संस्था के विरुद्ध कोई प्रमाण न होते हुए भी उन्हें प्रमाणित करने का असफल प्रयास किया गया और सनातन संस्था के साधकों को बिना किसी कारण फंसाया गया । न्यायालय के इस निर्णय से फिर से एक बार यही प्रमाणित हुआ कि, ‘सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं’, (सत्य उजागर होने के लिए संघर्ष अनिवार्य हो सकता है; परंतु वह पराजित नहीं हो सकता ।)
सचिन अंदुरे और शरद कळसकर को उच्च न्यायालय में न्याय मिलेगा !डॉ. दाभोलकर हत्या प्रकरण में ‘भगवा आतंकवाद’ का मिथक सिद्ध करने के लिए ही हिंदुत्वनिष्ठों को फंसाया गया था । माननीय न्यायालय का आदर करते हुए हम बताना चाहते हैं कि, आज दुर्भाग्य से श्री. सचिन अंदुर और श्री. शरद कळसकर इन हिंदुत्वनिष्ठों को दंड सुनाया गया होगा, तो भी इन दोनों को भी फंसाया गया है । इसके पूर्व भी हिन्दू आतंकवाद का मिथक सिद्ध करने के लिए अनेक हिंदुत्वनिष्ठों को इसी प्रकार अलग-अलग प्रकरणों में फंसाया गया था । उस समय भी उनके पीछे सनातन संस्था गंभीरता से खडी थी और आगे भी रहेगी । हमें विश्वास है कि, उन्हें उच्च न्यायालय से न्याय मिलेगा । |
Dr Virendra Singh Tawde, Adv. Sanjeev Punalekar, and Vikram Bhave acquitted#NarendraDabholkar murder case verdict
Sachin Andure and Sharad Kalaskar, have been found guilty by the court and have been sentenced to life imprisonment.
Details :https://t.co/ysUK8nFK6h
नरेंद्र… pic.twitter.com/Esld2LrkDv
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) May 10, 2024
सनातन संस्था सचिन अंदुरे और शरद कळसकर का दृढ समर्थन करेगी – चेतन राजहंसडॉ. दाभोलकर हत्या मामले में सनातन संस्था का निर्दोषत्व सिद्ध हुआ होगा, तब भी हिन्दुत्वनिष्ठ श्री. सचिन अंदुरे और श्री. शरद कळसकर को दंड सुनाया गया है । हिन्दुत्वनिष्ठ श्री. अंदुरे और श्री. कळसकर को अर्बन नक्सलियों के हिन्दुत्वविरोधी षडयंत्र में फंसाया जा रहा है । इसलिए श्री. अंदुरे और श्री. कळसकर को जब तक न्याय नहीं मिलेगा, तब तक सनातन संस्था उनका दृढतापूर्वक समर्थन करेगी । उन्हें न्याय मिले, इसलिए उच्च न्यायालय में जाकर भी संघर्ष करेंगे |
संदिग्ध अपराधियों की ओर से अभियोग लडनेवाले अधिवक्ता !मुंबई उच्च न्यायालय के साहसी अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर और अधिवक्ता सुवर्णा वत्स-आव्हाड आदि ने संदिग्ध अपराधियों की ओर से न्यायालय में पक्ष रखा । जांच तंत्रों ने झूठे प्रमाण और साक्ष्य (गवाह) लाकर आरोपियों का जीवन ध्वस्त करने का मानो षड्यंत्र ही रचा था; परंतु अध्ययनपूर्वक और स्पष्टरुप से प्रतिवाद कर इन सभी योद्धा अधिवक्ताओं ने संघर्ष किया । |
The legal team of Hindu Vidhidnya Parishad which worked to counter the anti-Hindu narrative in the #NarendraDabholkar murder case
Sanatan Sanstha#Sanatan_Innocence_Proved @ssvirendra @AdvSalsingikar
Sanatan Prabhat reporting from Pune Special Court pic.twitter.com/ME27wbbrBq
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ठोस प्रमाण प्रस्तुत करने में जांच तंत्र असफल !
‘डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे पर हत्या का प्रत्यक्ष षड्यंत्र रचने के आरोप के अंतर्गत संशय लिया जा सकता है; परंतु उनके विरुद्ध जांच अधिकारी ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाए, साथही संशयों का प्रमाणों में रूपांतर करने में सरकारी पक्ष असफल रहा है । इसलिए उन्हें निर्दोष मुक्त किया जा रहा है’, ऐसा इस समय माननीय न्यायाधीश ने कहा । दाभोलकर हत्या के मामले में अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर और श्री. विक्रम भावे पर शस्त्र नष्ट करने की सहायता करने का आरोप किया गया था । वह झूठ था, यह इस निर्णय से स्पष्ट हुआ ।
सभी संदिग्ध अपराधियों पर लगाया ‘यु.ए.पी.ए.’ न्यायालय ने हटा दिया !डॉ. दाभोलकर हत्या के मामले में सभी आरोपियों पर देशद्रोही कार्यवाहियों के अंतर्गत केंद्रीय अन्वेषण तंत्र ने ‘यु.ए.पी.ए.’ (गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम) के अंतर्गत धारा लगाई थी । सभी आरोपियों पर लगाई यह धारा न्यायालय ने हटा दी है । यह धारा हटाते हुए माननीय न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अधिकारियों ने दिखाई लापरवाही के कारण ‘यु.ए.पी.ए.’ प्रमाणित नहीं हो रहा है ।’’ |
अंनिस, पुरोगामी (आधुनिकतावादी), कांग्रेसी तथा साम्यवादियों के मुंह पर करारा तमाचा !
डॉ. दाभोलकर हत्या अभियोग की आड में अंनिस, पुरो(अधो)गामी, कांग्रेसवाले, साम्यवादी, कथित पुरोगामी और कुछ हिन्दुद्वेषी प्रसारमाध्यम लगातार सनातन संस्था को ‘आतंकवादी संगठन’ ठहराकर उसपर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे थे । न्यायालय के इस निर्णय से सनातन संस्था का निर्दोषत्व फिर से एक बार सामने आया है । इसलिए इस मामले में प्रारंभ से सनातन संस्था पर झूठे आरोप करनेवाले अंनिस, पुरोगामी, कांग्रेसी तथा साम्यवादियों के मुंह पर करारा तमाचा लगा है ।
Press conference of @SanatanSanstha LIVE!https://t.co/hoxNZYqjEc
Sanatan Sanstha, #Sanatan_Innocence_Proved #Sanatan_HinduTerror_Myth
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हत्या के मामले का संक्षिप्त घटनाक्रम !
१. डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की २० अगस्त २०१३ को पुणे में महर्षी विठ्ठल शिंदे पुल पर गोलियां मारकर हत्या की गई । ‘डॉ. दाभोलकर ‘मॉर्निंग वॉक’ के लिए बाहर गए थे, तब यह हत्या हुई’, ऐसा सरकार पक्ष का दावा था । इस मामले में सरकार पक्ष की ओर से ५ लोगों के विरुद्ध आरोप लगाए गए थे । इनमें मुख्य सूत्रधार के रुप में डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे पर, तो सचिन अंदुरे और शरद कळसकर पर गोलियां चलाने का और विक्रम भावे तथा अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर पर शस्त्र नष्ट करने की सहायता करने का आरोप लगाया गया है ।
२. संदिग्ध आरोपियों पर भारतीय दंडसंहिता (आयपीसी) धारा ३०२ (हत्या), १२० बी (अपराध का षड्यंत्र रचना), ३४ के अनुसार और शस्त्र अधिनियम संबंधित धाराओं के अंतर्गत तथा साथही यु.ए.पी.ए. के अंतर्गत ये अपराध प्रविष्ट किए गए थे ।
३. १५ सितंबर २०२१ को इन सभी पर आरोप निश्चित कर अभियोग की सुनवाई आरंभ हुई । इस अभियोग में सरकारी पक्ष की ओर से २० साक्ष्य (गवाह) जांचे गए । इनमें मुख्य रुप से सीबीआई के जांच अधिकारी एस्.आर. सिंग, डॉ. नरेंद्र दाभोलकर के बेटे डॉ. हमीद दाभोलकर समाविष्ट हैं ।
दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में १२ जून २०१६ को डॉ. तावडे को बंदी बनाए जाने का समाचार प्रकाशित हुआ था । उसमें कहा था, ‘जिस प्रकार धर्मद्रोहियों के आरोपों से कांची पीठाधीश्वर स्वामी जयेंद्र सरस्वती की निर्दोष मुक्तता हुई, साध्वी प्रज्ञासिंह पर किए गए आरोप भी असत्य सिद्ध हुए, उसी प्रकार आगामी काल में सनातन का भी निर्दोषत्व सिद्ध होगा !’. आज १० मई २०२४ को ‘सनातन का निर्दोषत्व’ सिद्ध हुआ है । |
(मुंबई मे हुई पत्रकार परिषद )