पुणे के कसबा पेठ में स्थित पुण्येश्वर मंदिर के कारण पुणे को ‘पुणे’ नाम मिला है; परंतु वर्तमान में पुण्येश्वर मंदिर पर मुसलमान आक्रमणकारियों ने हजरत ख्वाजा शेख सल्लाहुद्दीन दरगाह का निर्माणकार्य किया है । हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के साथ भाजपा विधायक नितेश राणे तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस प्रकरण में कुछ ही दिन पूर्व आंदोलन किया तथा दरगाह के ‘अतिरिक्त’ निर्माणकार्य पर अपराध भी पंजीकृत हुआ । इसके उपरांत विवश होकर दरगाह के न्यासियों ने कहा, ‘इस दरगाह का जो अतिरिक्त अवैध निर्माणकार्य है, उसे वे स्वयं तोडेंगे ।’ मुसलमानों की कुल आक्रामक मानसिकता को देखते हुए उनका ‘हम स्वयं अतिरिक्त अवैध निर्माणकार्य तोडेंगे’, ऐसा कहना, एक प्रकार से आज देश में बढ रहे हिन्दू संगठन का परिणाम है; परंतु वास्तव में देखा जाए, तो ‘मंदिर की भूमि पर दरगाह बनाना’, यही मूलतः अनुचित है, ‘यह भी आगे जाकर वे स्वीकार करें’, यह हिन्दुओं की अपेक्षा है । तब भी हिन्दुओं के एकत्रित होने तथा कुछ राजनीतिक समर्थन, साथ ही पुलिस प्रशासन का थोडा आधार मिले, तो क्या परिवर्तन आ सकता है ?, यह पुणे की इस घटना से ध्यान में आता है । ‘नई मुंबई के घणसोली में स्थित सिडको की वाणिज्य भूमि पर मदरसे के अवैध निर्माण पर कार्यवाही करने की शिकायत स्थानीय नागरिक तेजस पाटील ने की थी । उसके अनुसार सिडको एवं महापालिका के अधिकारियों ने संबंधित अतिक्रमण करनेवालों को कार्यवाही का नोटिस दिया । कार्यवाही की चेतावनी देते ही २ दिन पूर्व अतिक्रमण करनेवालों ने ‘स्वयं’ ही यह अवैध निर्माण हटाया । पिछले ८ वर्षाें से वहां यह निर्माणकार्य था । इस प्रकरण में सकल हिन्दू समाज द्वारा शिकायत की गई थी । पिछले महीने में नई मुंबई की अन्य एक सरकारी भूमि पर बनाई गई मस्जिद भी हिन्दुत्वनिष्ठों के आंदोलन तथा शिकायत के कारण ‘स्वयं’ ही हटाई । संक्षेप में कहा जाए, तो हिन्दुत्वनिष्ठों के दबाव के कारण अब मुसलमानों ने ‘आपके द्वारा बुलडोजर चलाए जाने से पूर्व ‘हम स्वयं’ ही अवैध निर्माण हटाएंगे’, यह भूमिका अपनाई है ।
शक्तिप्रदर्शन की मानसिकता !
पुणे की घटना में ‘दरगाह’ के निर्माण पर कार्यवाही की जानेवाली है’, इसका समाचार फैलने पर ८ मार्च की मध्यरात्रि में दरगाह परिसर में बडी संख्या में मुसलमान एकत्रित हुए थे । उसी समय दरगाह के न्यासी इस विषय पर उन्हें स्पष्ट समझा सकते थे; परंतु उन्होंने वैसा नहीं किया । ‘दरगाह नहीं, अपितु अतिरिक्त अवैध निर्माण तोडा जानेवाला है’, यह बात पुलिस को वहां एकत्रित मुसलमानों को बतानी पडी । मुसलमानों के इस प्रकार से एकत्रित आने के कारण अगले २ दिन तक वहां अतिरिक्त पुलिसकर्मियों की तैनाती करनी पडी, जिससे पुलिस प्रशासन पर तनाव आ गया । इससे यह ध्यान में आता है कि कुछ भी होने पर तुरंत शक्तिप्रदर्शन कर दादागिरी दिखाने की धर्मांधों की प्रवृत्ति को उन्होंने यहां भी जारी रखा था । कुछ ही दिन पूर्व चीन में १६ सहस्र मस्जिदें तोडे जाने का समाचार प्रकाशित हुआ है । क्या इन लोगों में वहां भी इस प्रकार से शक्तिप्रदर्शन दिखानेवाले आंदोलन करने का साहस है ?
मूल निर्माण ही ‘अवैध’ !
मंदिरों पर आक्रमण कर अर्वाचीन अथवा वर्तमान काल में मुसलमानों द्वारा बनाई गई मजारें, दरगाहें, मस्जिदें, मदरसे भी वास्तव में अवैध ही हैं । हिन्दुओं के संगठन के उपरांत तथा हिन्दुओं को राजनीतिक समर्थन मिल रहा है, यह बात ध्यान में आने पर संबंधित भवन नहीं, अपितु भवन के आसपास के अवैध अतिक्रमण को हटाया जाना अब आरंभ हुआ है; परंतु आक्रमणकारियों ने मूल मजार अथवा भवन भी बलपूर्वक अर्थात बिना अनुमति के बनाए हैं; इसलिए मूलतः वह भी ‘अवैध’ है, इस बात को वे तथा प्रसारमाध्यम कब स्वीकार करेंगे ? अब हिन्दुओं को अपना संगठन और अधिक प्रबल बनाकर तथा शासनकर्ताओं पर दबाव बनाकर ऐसी स्थिति उत्पन्न करनी चाहिए कि अवैध निर्माण वे स्वयं ही हटाएं । पिछले वर्ष महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने एक सार्वजनिक सभा कर मुंबई की माहीम खाडी में स्थित एक अवैध निर्माण हटाने के लिए पुलिस प्रशासन को चुनौती दी; परंतु वास्तव में उसके उपरांत यह ध्यान में आया कि मजार नहीं हटाई गई, अपितु उसके आसपास किए गए अवैध निर्माण को हटाया गया । कुछ दिन पूर्व प्रधानमंत्री मोदी के हस्तों उत्तर प्रदेश के संभल में नए कल्की मंदिर की आधारशिला रखी गई । वहां भी मुसलमानों ने मूल मंदिर तोडकर मस्जिद बनाई है । उसे वैसे ही रखकर उसके पास मंदिर का निर्माण किया जानेवाला है । प्रधानमंत्री ने ‘सुसज्जित महामार्ग’ बनाकर पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर द्वारा निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्विकास तथा जीर्णाेद्धार किया; परंतु मूल ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मंदिर की भूमि पर मस्जिद बनाई जाने से अब उस विषय में न्यायालयीन संघर्ष चल रहा है । मंदिरों पर किए गए अतिक्रमण को हटाने के मध्य का यह एक चरण है, ऐसा हम कह सकते हैं; परंतु ‘हिन्दुओं को आक्रमणकारियों द्वारा उनके मूल मंदिरों पर किए गए अतिक्रमण सहन नहीं हो रहे हैं’, इसे सभी को ध्यान में लेना चाहिए ।
आंदोलन बढाएं !
श्रीराम मंदिर की उज्ज्वल सफलता के उपरांत ज्ञानवापी मंदिर तथा मथुरा की जन्मभूमि पर हो रहा संघर्ष संपूर्ण देश में स्थित मंदिरों को मस्जिदों के अतिक्रमण से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त बनानेवाला सिद्ध हुआ है । वर्ष १९४७ के उपरांत बने प्रार्थनास्थल यथावत रखे जाएं । अर्थात संक्षेप में कहा जाए, तो मंदिरों पर अतिक्रमण कर बनाई गई मस्जिदों को वैसा ही रखा जाए, यह ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप’ कानून बनाने के पीछे की मुसलमानप्रेमी कांग्रेस की कूटनीति हिन्दुओं की समझ में आ गई है । अब हिन्दुओं के दबाव से यह कानून भी निरस्त होगा, यह आशा है । संपूर्ण देश में स्थित शिवजी के अनेक मंदिरों की भूमि पर मस्जिदें बनाई गई हैं, इसके स्पष्ट अवशेष मिल रहे हैं । ऐसा होते हुए ‘प्रत्येक मंदिर के लिए अलग से न्यायालयीन संघर्ष की आवश्यकता क्यों ?’, यह प्रश्न अब हिन्दुओं के दबावसमूह को आगे बढाना चाहिए । यह अभियान गांव-गांव तक फैलने में कोई आपत्ति नहीं है । हिन्दू यदि स्थानीय हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीतिक दलों को साथ लेकर काल के प्रवाह में विलुप्त प्रत्येक मंदिर में पूजा आरंभ करें, तो उससे हिन्दुओं के चैतन्य के स्रोत बढते जाएंगे तथा विदेशी आक्रमणकारियों के चिन्ह धीरे-धीरे मिटते जाएंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है । हिन्दुत्वनिष्ठ विचारक पू. सीताराम गोयलजी ने मुसलमानों द्वारा संपूर्ण देश में २ सहस्र से भी अधिक मंदिरों की भूमि पर मस्जिदों का निर्माण किए जाने की सूची प्रकाशित की थी । वास्तव में ऐसे मंदिरों की संख्या उससे अधिक भी होगी । तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के मत के अनुसार ‘मस्जिद गिराकर मंदिर का निर्माण’ नहीं चाहिए हो, तो मंदिरों की भूमि पर बनाई गई अवैध मस्जिद को हटाने के लिए मुसलमान स्वयं आगे आ सकते हैं !