संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को विभाजनकारी वक्तव्यों से बचना चाहिए !

सर्वोच्च न्यायालय के उपरांत मद्रास उच्च न्यायालय ने भी उदयनिधि स्टालिन को फटकार लगाई !

चेन्नई (तमिलनाडु) – किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का सनातन धर्म की तुलना एड्स और मलेरिया से करना योग्य है, यह नहीं कहा जा सकता। साथ ही ऐसे लोगों को विभाजनकारी वक्तव्यों से बचना चाहिए, इन शब्दों में अब मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बेटे और मंत्री उदयनिधि को निर्देश दिया है ; किन्तु न्यायालय ने उदयनिधि को पद से हटाने की मांग वाली याचिका निरस्त कर दी।

सौजन्य India Today

१. न्यायालय ने तमिलनाडु राज्य के कुछ अन्य नेताओं के वक्तव्यों एवं सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए एक सम्मेलन में उनकी भागीदारी पर अप्रसन्नता व्यक्त की। न्यायालय ने कहा कि भले ही राजनीतिक नेताओं में वैचारिक मतभेद हों, किन्तु लोगों को विभाजित करने वाले वक्तव्य सार्वजनिक मंच से नहीं दिए जाने चाहिए।

२. इससे पूर्व  ४ मार्च को सर्वोच्च न्यायालयाने उदयनिधि स्टालिन को सनातन धर्म पर दिए गए वक्तव्य पर फटकार लगाई थी। “आपने अनुच्छेद १९ के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग किया है। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया गया और अब आप अनुच्छेद ३२ के अंतर्गत न्यायालय का हस्तक्षेप चाहते हैं। आप कोई सामान्य नागरिक नहीं हैं। आप मंत्री हैं, आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि आपके ऐसे वक्तव्य का परिणाम क्या होगा’, इन शब्दों में न्यायालय ने उदयनिधि को समझ दी थी एवं इस संबंध में मद्रास उच्च न्यायालय जाने को भी कहा था ।

संपादकीय भूमिका 

हिन्दुओं का विचार है कि न्यायालयों को ऐसे लोगों को कडी फटकार के साथ-साथ कठोर दण्ड भी देना चाहिए, जिससे दूसरों को भय हो !