ओझर, ३ दिसंबर (वार्ता.) – अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए हमने तीर्थयात्रा, मेलों के वृत्त चैनल पर कैसे प्रसारित कर सकेंगे ‘, इसका विचार कर इसका वृत्त देने का प्रयास किया । उत्सवरूपी अनुष्ठानों के माध्यम से अनेक लोग जोडे जाते हैं । सनातन धर्म का विचार यदि सभी लोगों तक पहुंचना होगा, तो यह प्रचारमाध्यमों द्वारा अधिक सुलभ होगा । अभी के समय में जो माध्यम युवा पीढी को आकर्षित कर सकते हैं, उनका प्रयोग हमें करना चाहिए । इस कारण कलानुसार अपेक्षित ऐसे प्रचारमाध्यमों का प्रयोग कर मंदिरों को उनके विषय समाज तक पहुंचाने चाहिएं*, ऐसा आवाहन ‘जी २४ तास’ के संपादक श्री. नीलेश खरे ने किया । वे ‘मंदिर और मीडिया मैनेजमेंट’, इस विषय पर २ दिसंबर को दोपहर के सत्र में उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए बोल रहे थे ।
श्री. नीलेश खरे ने आगे कहा कि,
१. मंदिर संस्था अथवा कार्यकर्ताओं से ३ मिनट का एक वीडियो बनाकर यदि इसे चैनलों के माध्यमों तक पहुंचाया, तो जनजागृति के लिए लाभ हो सकता है ।
२. प्रचारमाध्यमों के प्रतिनिधि आप तक पहुंचते नहीं होंगे, तो आप प्रतिनिधियों के पास जाएं; कारण समाचार की आवश्यकता सभी को है । समाचार पत्र में स्थान की मर्यादा होती है; लेकिन ‘स्पीड न्यूज’ के माध्यम से हम कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक विषय पहुंचा सकते हैं । ट्रस्ट के विवाद, भूमि का विवाद, दान घोटाला ऐसे विषयों के प्रचारमाध्यमों में बडे वृत्त दिए जाते हैं । इसके विपरीत हमें अपने यहां होने वाले उपक्रमों के वृत्त पहुंचाने का कार्य करना चाहिए ।
इसके लिए संस्था का कोई भी एक प्रतिनिधि अथवा कार्यकर्ता जो इस ढंग से लिख सकता है अथवा ‘वीडियो’ सहजता से उपलब्ध करा सकता है, इसकी व्यवस्था करनी चाहिए ।
३. सनातन धर्म का, हिन्दू धर्म का विचार विश्व के सामने पहुंचाना आज आवश्यक है । ‘जी मीडिया’ के माध्यम से हमने भारतीयता, हिंदुत्व का विचार विश्व के लोगों तक पहुंचाने का विचार किया है ।
मूर्ति में त्रुटि रहने पर, इसे मंदिर में कभी भी स्थापित न करें ! – प्रमोद कांबळे, उपाध्यक्ष और शिल्पकार, संस्कार भारती, महाराष्ट्र
व्यक्ति का मुख उसकी हथेली जितना ही होता है । मूर्ति बनाते समय यह सूत्र शिल्पकार को ध्यान में रखना चाहिए । चेहरे से साढे सात गुना शरीर की ऊंचाई होती है । मूर्ति बनाते समय आंखों के बीच का अंतर अनेकों बार कम-अधिक होता है । मूर्ति के कान, नाक, आंखें सभी एक सीध में होनी चाहिएं । मूर्ति अचूक बनाने के लिए शिल्पकार का एकाग्र होना आवश्यक है । इन बातों को ध्यान में रखने से मूर्ति बनाते समय त्रुटियां कम होंगी । कलाकृति बनाते समय कलाकार को एकाग्र होना चाहिए । वर्तमान समय के कारीगर आवश्यक शिक्षित न होने के कारण। अनेकों बार मंदिरों में पश्चिमी सभ्यता की रचनाओं का प्रयोग किया जाता है । मूर्ति अनेक पीढियों को आशीर्वाद देने का कार्य करती है। अत: इसे बनाते समय कुछ गलती रहने पर ऐसी मूर्ति मंदिर में कभी भी स्थापित न करें ।