इसी मुद्दे पर ७ याचिकाएं लंबित
नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने १ अप्रैल को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, १९९१ के प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को रद्द कर दिया। कोर्ट ने याचिका रद्द करते हुए कहा, “मौजूदा याचिका लंबित चुनौती याचिका से अलग नहीं है।” हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता श्री. अश्विनी कुमार उपाध्याय को कानून को चुनौती देने के लिए एक लंबित आवेदन प्रविष्ट करने की अनुमति दी गई है। इससे पहले १७ फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम से जुड़ी ७ याचिकाओं की सुनवाई स्थगित कर दी थी।
Supreme Court rejects a petition challenging the Places of Worship Act 🚨
7 other petitions on the same issue are still pending.
Why do Hindus need to go to court to get this law revoked?
The central government, with its majority, should repeal it in Parliament. After all,… pic.twitter.com/ZN4DK3uAzz
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) April 2, 2025
अधिवक्ता उपाध्याय द्वारा प्रविष्ट याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, १९९१ की अधिनियम ४( २ ) को चुनौती दी गई थी। जो किसी भी स्थान (मंदिर-तीर्थ स्थल या अन्य धार्मिक स्थान) के धार्मिक स्वरूप को बदलने वाली किसी भी कार्यवाही पर रोक लगाता है। इसके अलावा, इस संबंध में नया मामला प्रविष्ट करने पर भी रोक लगा दी गई है।
हिन्दुओं की तरफ से अधिवक्ता श्री. अश्विनी कुमार उपाध्याय, डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, काशी की राजकुमारी कृष्णा प्रिया, स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी अनिल कबोत्रा, अधिवक्ता चंद्रशेखर, रुद्र विक्रम सिंह , वाराणसी और कुछ अन्य लोगों ने याचिका प्रविष्ट की है। इन लोगों ने मांग की है कि उपासना स्थल अधिनियम-१९९१ को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
मुसलमानों की ओर से जमीयत उलमा-ए-हिंद, इंडियन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ज्ञानवापी का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी, राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस मामले में याचिका प्रविष्ट की है । उन्होंने दावा किया है कि “यदि हम कानून के विरुद्ध याचिकाओं पर विचार करेंगे तो देश भर में मस्जिदों के विरुद्ध मामलों की बाढ़ आ जाएगी।”
संपादकीय भूमिकाइस कानून को रद्द कराने के लिए हिन्दुओं को न्यायालय क्यों जाना पड़ रहा है ? बहुमत वाली केंद्र सरकार से उम्मीद है कि वह संसद में विधेयक पेश करके इस कानून को निरस्त कर देगी; यह याद रखना चाहिए कि यह कानून मुसलमानों को खुश करने के लिए संसद में पारित किया गया था, जब कांग्रेस बहुमत में थी ! |