Mahim Fort : माहीम किले पर हुआ अतिक्रमण सरकार ने हटाया !

  • दैनिक ‘सनातन प्रभात’ ने गढ-दुर्गाें पर हुए अतिक्रमण के विरुद्ध उठाई थी आवाज ! 

  • अनेक वर्षाें के उपरांत किले का प्रवेशद्वार खुल गया !

  • अतिक्रमण करनेवालों में ८० प्रतिशत से अधिक धर्मांध !

  • दुर्गप्रेमी किले पर मनाएंगे दीपोत्सव !

माहीम किले के प्रवेशद्वारपर हुआ अतिक्रमण
अतिक्रमण हटाए जानेपर खुला हुआ किले का प्रवेशद्वार

मुंबई, ९ नवंबर (संवाददाता) – अतिक्रमण द्वारा हथियाए गए माहीम किले पर हुआ अतिक्रमण अंत में राज्य सरकार ने हटाया । पीछले अनेक वर्षाें से अतिक्रमण करनेवालों ने किले का प्रवेशद्वार बंद कर वहीं से किले के भीतर तक घर बनाए थे । अब यह अतिक्रमण हटाया जाने पर अनेक वर्षाें के उपरांत किले का मुख्य द्वार खुला किया गया है । धनतेरस के दिन (१० नवंबर) दोपहर ४.३० बजे से यहां दुर्गप्रेमियों द्वारा दीपोत्सव मनाया जानेवाला है ।

अतिक्रमण करनेवालों ने किले के मुख्य प्रवेशद्वार पर लोहे की जाली लगाकर प्रवेशद्वार से भीतर तक अतिक्रमण किया था । किले पर कुल २६७ अनधिकृत घर बनाए गए थे । अतिक्रमण करनेवालों में ८० प्रतिशत से अधिक धर्मांध ही थे । यह सब अतिक्रमण हटाया गया है । इस अतिक्रमण को हटाने के लिए दुर्गप्रेमी पीछले कई वर्षाें से निरंतर मांग कर रहे थे । राज्य सरकार, पुरातत्त्व विभाग और मुंबई महानगरपालिका ने एकत्रित रुप से यह कार्यवाही की ।

अतिक्रमण करनेवालों को मिली सरकार की ओर से सदनिकाएं (फ्लैटस्) !

स्लम रिहैबिलिटेशन कानून के अंतर्गत वर्ष २००९ के पहले के झोपडपट्टीधारकों को सरकार द्वारा सदनिकाएं दी जाती हैं । इस कानून के अंतर्गत माहीम किले पर अतिक्रमण करनेवाले २६७ लोगों को मुंबई महानगरपालिका की ओर से सदनिकाएं दी गई हैं । स्लम रिहैबिलिटेशन योजना, म्हाडा तथा अन्य योजनाओं द्वारा इन सभी को सदनिकाएं दी गई हैं ।

माहीम किले का इतिहास !

माहीम किला राज्य पुरातत्त्व विभाग के स्वामित्व में है । यह मुंबई का सबसे प्राचीन किला है । प्राचीन काल में राजा प्रतापबिंब ने मुंबई के समुद्री तट पर अपना साम्राज्य निर्माण किया था । उस समय महिकावती (आज का माहीम) में उसने अपनी राजधानी बनाई । श्री महिकावती देवी के नाम से इस क्षेत्र का नाम ‘माहीम’ हुआ । राजा प्रतापबिंब के काल में, अर्थात १४ वी शताब्दि के कालखंड में माहीम कलि का निर्माण किया गया, ऐसा इतिहास है । इसे संरक्षित स्मारक के रुप में घोषित किया गया है । अतिक्रमण के कारण इसका ऐतिहासिक रुप नष्ट हुआ था ।