महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा भोपाल (मध्य प्रदेश) में संपन्न ‘सी-२०’ सम्मेलन में शोध जानकारियों का प्रस्तुतीकरण !
भोपाल (मध्य प्रदेश) – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा आध्यात्मिक विषयों का विशिष्टतापूर्ण वैज्ञानिक शोध किया जाता है । ‘यूनिवर्सल ऑरा’ एवं ‘एनर्जी स्कैनर’ जैसे उपकरणों की सहायता से किया हुआ यह शोध प्राचीन भारतीय शिक्षा के अनुरूप है । साथ ही सहस्रों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा विश्व को प्रदान किया हुआ ज्ञान भी यथार्थ है, इस शोध द्वारा ऐसा प्रमाणित हुआ है । इस शोध से यह भी भान होता है कि सूक्ष्म विश्व द्वारा हमारा जीवन किस प्रकार प्रभावित होता है ? ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ शोध गुट के सदस्य श्री. शॉन क्लार्क (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत) ने यह जानकारी दी ।
कुछ दिन पूर्व ही भोपाल में ‘सेवा-सेवाभाव, परोपकार एवं स्वयंसेवा’ कार्यकारी गुट ने ‘सी-२०’ परिषद का आयोजन किया था । इस परिषद में ‘स्वतंत्र सेवा योगियों की सर्वोत्तम पद्धतियां’ अर्थात ‘एकल सेवा कार्यकर्ता’ सत्र में वे ऐसा बोल रहे थे । इस वर्ष भारत ‘जी-२०’ सम्मेलन की मेजबानी (होस्ट) करनेवाला है ।
‘सी-२०’ ‘जी-२०’ परिषद की नागरी (शहर की) शाखा है । इस समय श्री. शॉन क्लार्क ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा अब तक किए गए शोध के विशेषतापूर्ण सूत्रों पर प्रकाश डाला । एक्जिमा, व्यसनाधीनता तथा मानसिक बीमारियों के साथ ही स्वास्थ्य से संबंधित विविध समस्याओं पर विजय पाने में अध्यात्म उपयोगी है । यज्ञों के माध्यम से भी वनस्पति एवं मनुष्य को आध्यात्मिक लाभ होता है । संगीत में भी यह आध्यात्मिक नियम लागू होता है । संगीत की विविध शैलियों एवं उनके प्रदर्शन के प्रभाव पर आध्यात्मिक शोध किया गया । इससे ध्यान में आया कि आध्यात्मिक संतों के गाए भक्तिगीतों का व्यक्ति की ऊर्जा पर सकारात्मक परिणाम हुआ; जबकि ‘भारी धातु’ संगीत ने (जोर से बजनेवाले ‘रॉक म्यूजिक’ जैसे संगीत) व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा को बढा दिया, श्री. शॉन क्लार्क ने ऐसा कहा ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय को ‘सी-२०’ के अन्य परिषदों में भी सहभागी होने के लिए आमंत्रित किया गया है । ९ जून से १२ जून २०२३ की कालावधि में अरुणाचल प्रदेश के नामसाई में आयोजित इस परिषद में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का सहभाग था ।