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मुंबई, ११ जुलाई – राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने पिछले ९ वर्षो में जिनपर ‘भ्रष्टाचारी’ होने के कारण कार्रवाई की, ऐसे ९४.११ प्रतिशत आरोपी छूटने की जानकारी मिली है । भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने वर्ष २०१४ से २०२२ की कालावधि में ८ सहस्र ५१२ अपराध प्रविष्ट किए हैं । उनमें से केवल ५०२ प्रकरणों में अपराध सिद्ध हुए हैं । अपराध सिद्ध होने का यह प्रमाण केवल ५.८९ प्रतिशत ही है । ८ सहस्र ५१२ अपराधों में से ७ सहस्र १४८ अपराधों का आरोपपत्र प्रविष्ट किया गया है । अर्थात १७ प्रतिशत अपराधों कें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा आरोप पत्र ही प्रविष्ट नहीं किए गए, यह सामने आया है ।
इसमें विशेष यह है कि कारवाई किए गए व्यक्तियों में लोकप्रतिनिधि तथा शासकीय सेवा के अधिकारी एवं कर्मचारियों की संख्या अधिक है । घूस लेते हुए पकडे गए ८५ प्रतिशत पुन: शासकीय सेवा में सेवारत होते हैं । आरंभ वर्ष में ९ जुलाई तक राज्य में भ्रष्टाचार के ४६६ अपराध प्रविष्ट किए गए थे । इनमें ६५३ लोग आरोपी हैं; केवल पीछले ९ वर्षों की संख्या देखें तो इन अपराधियों को दंड मिलेगा ही, इसका हम आश्ऱ्वासन नहीं दे सकते ।
अपराध सिद्ध न होने के पीछे अनेक कारण ! – भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो अधिकारी
इस संबंध में दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के वरळी (मुंबई) स्थित मुख्य कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से भेंटवार्ता कर अपराध सिद्ध होने के अत्यल्प प्रमाण के बारे में पूछा । उस समय उन्होंने बताया कि घूस लेनेवाली की परिस्थिति, आरोपी द्वारा स्वयं घूस ने लेकर अन्य व्यक्ति द्वारा घूस स्वीकारना, घूस प्रत्यक्ष कार्यालय में न लेकर बाहर लेना आदि विविध कारणों से आरोप सिद्ध होने में, प्रमाण एकत्रित करने में समस्याएं आती हैं । (कानून की अपेक्षा अधिक चतुर भ्रष्टाचारी ! – संपादक) इस संबंध में अन्य एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुलिस महासंचालक की अनुमति से ही जानकारी बताई जाएगी, ऐसे कहकर इस संबंध में जानकारी देने से मना कर दिया ।
संपादकीय भूमिका
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