नक्सलवादियों को राजनीतिक दलों का संरक्षण ! – शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, गोवर्धन पुरी पीठ

कवर्धा (छत्तीसगढ) – गोवर्धन पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने जगदलपुर की धर्मसंसद के दरम्यान पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए वक्तव्य दिया है ‘पूरे देश के नक्सलवादी संगठनों को राजनीतिक दलों का समर्थन है । नक्सलवादियों को राजनीतिक दलों ने राजनीतिक संरक्षण दिया है’ । उन्होंने आगे कहा, ‘यदि सत्तारूढ दल एवं विपक्ष दल नक्सलवादियों को दिया हुआ समर्थन रोक दें, तो देश में कितने नक्सलवादी शेष रहेंगे ? ऐसा करने से नक्सलवाद अपनेआप समाप्त हो जाएगा । सर्व राजनीतिक दल उन लोगों का पालन पोषण कर रहे हैं ।’

कांग्रेस के मंत्री ने किया शंकराचार्यजी के वक्तव्य का समर्थन !

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के इस वक्तव्य का कांग्रेस के कृषिमंत्री रवींद्र चौबे ने समर्थन दिया है । पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सनातन धर्म के प्रमुख हैं । उनके वक्तव्य का आदर करना आवश्यक है । भिन्न भिन्न प्रांतों में नक्सलवादी गतिविधियां फैलने के कारण भिन्न भिन्न हैं । इस समस्या का समाधान होने के लिए सर्व राज्यों की बैठकें भी होती रहती हैं । छत्तीसगढ में कांग्रेस की सरकार आई, तभी से नक्सलवादी गतिविधियां कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं । अब राज्य में नक्सलवाद समाप्त होने की स्थिति में है । अब भी बिहार, झारखंड आदि राज्यों में नक्सलवादी गतिविधियां जारी हैं । वहां की राजनीतिक परिस्थिति के विषय में मैं बोलने का इच्छुक नहीं हूं; परंतु यदि राजनीतिक दल नक्सलवाद को समाप्त करने का निश्चय करें, तो वह समाप्त हो सकता है । छत्तीसगढ में कांग्रेस की भूपेंद्र बघेल सरकार ने गत ४ वर्षों में राज्य के नक्सलग्रस्त बस्तर जिले की नक्सलवादी गतिविधियों को रोका है ।

(यदि छत्तीसगढ का नक्सलवाद समाप्त हो गया है, तो वहां भाजपा के नेता की हत्या क्यों हुई ? शंकराचार्यजी के कथन को राजनीतिक रंग देकर स्वयं की प्रशंसा करनेवाले कांग्रेसी ! – संपादक) शंकराचार्यजी के कथन में वास्तविकता है । छत्तीसगढ में गत १५ वर्षों में भाजपा के डॉ. रमण सिंह की सरकार थी, तब उन्होंने नक्सलवादी गतिविधियों को क्यों नहीं रोका ? बस्तर में जब भाजपा की सत्ता थी, तब नक्सलवादी समांतर सरकार चला रहे थे । (कांग्रेस सत्ता में थी, तब उसने भारत में नक्सलवाद समाप्त करने के प्रयास क्यों नहीं किए ?, चौबे को इसका भी उत्तर देना चाहिए ! – संपादक)

संपादकीय भूमिका

यह स्थिति लोकतंत्र को गंभीर रूप से पराजित करनेवाली है, सामान्य लोगों को ऐसा ही लगेगा !