धर्मांतरित ईसाई तथा मुसलमानों को आरक्षण समान लाभ देना संभव नहीं !

  • केंद्र सरकार द्वारा सर्वाेच्च न्यायालय में प्रतिपादन

  • केंद्र सरकार की अभिनंदनीय नीति !

नई देहली – केंद्र सरकार ने सर्वाेच्च न्यायालय में कहा कि धर्म-परिवर्तन कर ईसाई तथा मुसलमान अस्पृश्यों को अनुसूचित जाति की सूची से बाहर रखना उचित है । इन ईसाई तथा मुसलमानों को जन जाति तथा उनको मिलनेवाले लाभ प्राप्त होने की मांग से संबंधित याचिका सर्वाेच्च न्यायालय में प्रविष्ट की गई है । इस पर केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय ने अपना मत प्रस्तुत किया है । सरकार ने कहा है कि अंकशास्त्र के अनुसार ऐसा ध्यान में आता है कि ईसाई तथा मुसलमान धर्माें में जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होता अथवा धर्म-परिवर्तित लोगों के पिछडेपन के कारण उनके साथ छल किया जा रहा है, ऐसा नहीं है । इसलिए धर्म-परिवर्तित लोगों को इन कारणों से मिलनेवाला आरक्षण समान लाभ देना संभव नहीं है । संविधान के (अनुसूचित जाति) आदेश, १९५० में इस संदर्भ में कोई उल्लेख नहीं है ।

१. केंद्र सरकार ने आगे कहा कि छल तथा अस्पृश्यता के कारण हिन्दुओं की जाति आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से पीछे रह गई है । ईसाई तथा मुसलमान धर्म में ऐसा नहीं है । इसीलिए ऐसे लोगों ने ईसाई तथा मुसलमान होने का निर्णय लिया, जिसके कारण उन्हें इस व्यवस्था से स्वतंत्रता प्राप्त हो !

२. इस समय केंद्र सरकार ने रंगनाथ मिश्रा आयोग का ब्यौरा मानना भी अस्वीकार कर दिया । इस ब्यौरे में धर्म-परिवर्तन करनेवालों को अनुसूचित जाति तथा जनजाति का स्तर देने की अनुशंसा की गई थी । सरकार ने कहा है कि इस आयोग ने वास्तविक जानकारी का अध्ययन किए बिना यह अनुशंसा की है ।

संपादकीय भूमिका

  • ‘हिन्दुओं की जाति व्यवस्था के कारण हमारे साथ छल होता है’, ऐसा कहकर धर्म-परिवर्तन करनवालों को धर्म भी परिवर्तित करना है तथा पूर्व के लाभ भी चाहिए ! यह उनकी दोहरी नीति ही है !
  • इससे ध्यान में आता है कि हिन्दुओं में पिछडी जाति के लोगों को विविध लालच दर्शा कर तथा ‘हमारे समाज में जाति व्यवस्था नहीं, ऐसा कह धर्म-परिवर्तन करनेवाले ईसाई मिशनरी उनको किस प्रकार फंसा रहे हैं !