दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में धर्माधारित शिक्षापद्धति अपनाने की आग्रहपूर्ण मांग !
रामनाथी, १७ जून (संवाददाता) – ज्ञान और आध्यात्मिकता के कारण हिन्दू पहचाना जाता है । आज के समय में हम अस्थिर, अनिश्चित,जटील और अस्पष्ट भविष्यवाले विश्व में जी रहे हैं, यह युक्रेन-रुस युद्ध, कोरोना महामारी और विभिन्न स्थानों पर हिन्दुत्वनिष्ठों की हो रही हत्याओं से ध्यान में आता है । इसके लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने हिन्दू धर्म की जो नींव रखी, उसे जान लेना आवश्यक है, ऐसा प्रतिपादन बेंगलुरू के राष्ट्र धर्म संगठन के संस्थापक संतोष केचंबा ने किया । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में १६ जून को ‘वर्तमान स्थिति में धर्माधारित शिक्षाव्यवस्था को कैसे अपनाना चाहिए’, इस विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।
श्री. केचंबा ने आगे कहा, ‘‘आज के समय में भारत में बडे स्तर पर सामाजिक माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है । इस माध्यम से सामान्य हिन्दुओं और युवाओंतक धर्मशिक्षा का प्रसार पहुंचना चाहिए । हिन्दू धर्म के प्रसार के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए । हिन्दू धर्म के विरोधी भी सामाजिक माध्यमों पर जागृत रहते हैं; इसलिए हमें उनसे सतर्क रहना पडेगा । आपको हिन्दुत्व का कार्य करने के लिए कोई प्रौद्योगिकी की सहायता आवश्यक हो, तो वे मुझसे संपर्क कर सकते हैं । ’’
अधिवेशन में विद्यमान आध्यात्मिक ऊर्जा देखकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की आश्वस्तता लगती है ! – संतोष केचंबा‘अभीतक मैं अनेक कार्यक्रमों में गया हूं; परंतु मैने और मेरे सहयोगियों को यहां एक बात तीव्रता से प्रतीत हुई और वह है यहां का उत्तम समन्वय ! अधिवेशन में सम्मिलित अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों का एक ही समय में अच्छे प्रकार से समन्वय करना, यह यहां की विशेषता है । भारतीयता और आध्यात्मिकता के संगम से उद्गमित होनेवाला उत्तम समन्वय यहां दिखाई दे रहा है । ‘क्या मैं भव्य हिन्दू राष्ट्र देख सकूंगा ?’, ऐसा मुझे लग रहा था । यहां के हिन्दुओं की संगठनशक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा देखकर मैं निश्चितरूप से हिन्दू राष्ट्र देख पाऊंगा’, इसके प्रति मैं आश्वस्त हूं ।’ |
जागृत हिन्दू ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर सकेंगे ! – मंजुनाथ बी., अध्यक्ष, बजरंग सेना, कर्नाटक
आज की हिन्दुओं की यह स्थिति दूर करने के लिए हिन्दू समाज को जागृत करने की आवश्यकता है । जागृत हिन्दू ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर सकेंगे । हमारा संगठन गोरक्षा करता है । विगत ४ वर्षाें में हमने ३ सहस्र गायों की रक्षा की है । केरल से ४ से ५ सहस्र गायों की तस्करी की जाती है, उसे रोकने के लिए हम प्रयासरत हैं । गोरक्षा करने के कारण हमारे कार्यकर्ताओं पर ३५ अपराध पंजीकृत किए गए हैं । कर्नाटक के विद्यालयों-महाविद्यालयों में ‘स्मॉल फ्रेंड्स ग्रुप’ नाम के समूह कार्यरत है । इसमें किसी लडकी द्वारा चलितभाष रिचार्ज करने पर उस समूह में तुरंत उसका चलितभाष क्रमांक अंतर्भूत होता है और अगले १०-१५ दिनों में लडकी के धर्मांतरण किया जाता है । हिन्दू लडकियों का धर्मशिक्षा देने की आवश्यकता है, अन्यथा हिन्दू परिवारों को बडी हानि झेलनी पड सकती है ।
कर्नाटक सरकार राज्य में ३५० मंदिर गिरानेवाली थी, जिसे हमने रोका । कर्नाटक की तत्कालीन कांग्रेस की सरकार टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का प्रयास कर रही थी, जिसका हमने विरोध किया । उससे सरकार को झुकना पडा । टीपू सुल्तान ने कर्नाटक का अंजनेय मंदिर ध्वस्त कर वहां मीनार खडे किए । आज उस स्थान पर नमाज पढी जाती है । इसे हमारा विरोध है तथा उसे रोकने के लिए हमारे प्रयास चल रहे हैं ।
सनातन के साधकों और हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ताओं के विषय में व्यक्त किए प्रशंसोद्गार !‘सनातन का १ कार्यकर्ता अन्य संघटनों के १०० कार्यकर्ताओं के समान है । बाह्य रूप में शांत दिखानेवाले कार्यकर्ता बहुत परिश्रम उठा रहे हैं । ’ – मंजुनाथ बी., अध्यक्ष, बजरंग सेना, कर्नाटक |
गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त किए दशरथ, श्रीराम, भरत, विक्रमादित्य जैसे राजा यशस्वी सिद्ध हुए ! – डॉ. देवकरण शर्मा, संस्थापक अध्यक्ष, सप्तर्षि गुरुकुल, उज्जैन, मध्य प्रदेश
गुरुकुल की शिक्षा के कारण बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते हैं । अच्छा सदाचारी मनुष्य बनने के लिए गुरुकुल में मानवीय मूल्यों की शिक्षा दी जाती है । वेदों का अध्ययन करने से लोभ, अहंकार और मोह ये दुर्गुण नष्ट होते हैं । गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त दशरथ, श्रीराम, भरत, विक्रमादित्य आदि राजाओं ने जनता का कभी शोषण नहीं किया । ये राजा यशस्वी सिद्ध हुए हैं । वैदिक अध्ययन से मिलनेवाली शक्ति के आधार से हम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर सकते हैं, ऐसा प्रतिपादन उज्जैन (मध्यप्रदेश) के सप्तर्षि गुरुकुल के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. देवकरण शर्मा ने किया । ‘गुरुकुल पर आधारित शिक्षानीति की आवश्यकता’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।
डॉ. देवकरण शर्मा ने आगे कहा कि,
१. ८०० वर्ष पूर्व भारत में गुरुकुल शिक्षापद्धति थी, परंतु आज के समय में देश के ९० प्रतिशत लोगों को इसकी जानकारी नहीं है । गुरुकुल की शिक्षा योगवादी थी, भोगवादी नहीं थी ।
२. गुरुकुल आश्रम जाकर धर्म का नित्य आचरण करना, वेद, उपवेद, उपनिषद और नीतिशास्त्र सिखाया जाता था । वहां गृहस्थीजीवन और ज्ञानकांड की भी शिक्षा दी जाती थी ।
३. गुरुकुल में योगासन, प्राणायाम, व्यायाम के साथ सूर्य और गायत्री मंत्र की उपासना कैसे करनी चाहिए, यह सिखाया जाता है । प्रातःकाल में जागने से लेकर रात के १० बजेतक गुरुकुल की दिनचर्या सुनिश्चित होती है, जिसका आचरण करना पडता है ।
४. वेदमंत्र का पाठ करते समय मंत्रों में विद्यमान शब्दों के उच्चारण कैसे होने चाहिएं, इसकी भी शिक्षा दी जाती है । गुरुकुलों से इस प्रकार की उच्च पद्धति की शिक्षा दी जाती थी; परंतु बाहर के लोगों ने अतिक्रमण कर जानबूझकर गुरुकुल की शिक्षा बंद की ।
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’से बाहर निकलनेवाला छात्र संतपद पर विराजमान होकर ही बाहर निकलेगा ! – संदीप शिंदे, केंद्रीय समन्वयक, सनातन अध्ययन केंद्र
सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संस्थापित ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ भविष्य में एक ऐसा विश्वविद्यालय होगा, तो नालंदा, तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों के समान हिन्दू तत्त्वज्ञान, संस्कृति, अध्यात्म आदि विषयों पर छात्रों को परिपूर्ण शिक्षा देगा, उनसे प्रत्यक्षरूप से साधना कर लेगा और केवल इतना ही नहीं, अपितु इस विश्वविद्यालय से बाहर निकलनेवाला प्रत्येक छात्र ‘संतपद’ प्राप्त किया होगा । आगे जाकर भविष्य में इस प्रकार से आध्यात्मिक उपाधि प्राप्त करा देने का उच्चतम ध्येय रखनेवाला यह विश्व का एकमात्र विश्वविद्यालय सिद्ध होगा ! सचमुच ही मानवीय जीवन के ध्येय की ओर ले जानेवाला यह विश्वविद्यालय होगा ! इस विश्वविद्यालय की नींव साक्षात अवतारी पुरुष परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के करकमलों से होने से यह ध्येय निश्चितरूप से पूर्णत्व को पहुंचेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है । आज के समय में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की निर्मिति की प्रक्रिया आरंभ हुई है । इस विश्वविद्यालय का एक अंग ‘आध्यात्मिक शोध केंद्र’ विगत कुछ वर्षाें से कार्यान्वित हुआ है । इस शोध केंद्र से अध्यात्म, धर्म, यज्ञ-याग आदि विभिन्न विषयों पर बडे स्तर पर वैज्ञानिक शोधकार्य चल रहा है । अभीतक इस केंद्र के माध्यम से विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा शोधकार्य किया गया है । इस शोधकार्य के लिए सैंकडो विषयों पर आधारित प्रयोगों की सहस्रों से अधिक प्रविष्टियां ली गई हैं, ऐसा प्रतिपादन सनातन अध्ययन केंद्र के केंद्रीय समन्वयक श्री. संदीप शिंदे ने किया । ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ : पाठ्यक्रमों के माध्यम से हिन्दू संस्कृति का प्रसार’, इस विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।
श्री. संदीप ने आगे कहा कि महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम सुनिश्चित करने की प्रक्रिया भले ही चल रही हो; परंतु अभी से ही इस विश्वविद्यालय के पास विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से उनके लिए पाठ्यक्रम तैयार कर देने की और विशेष कार्यशालाओं का आयेजन करने की मांग की जा रही है । आज के समय में संपूर्ण विश्व के सहस्रों विश्वविद्यालयों में सहस्रों विषय पढाए जा रहे हैं । उनमें से एक भी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में ‘अध्यात्म के मार्ग से मनुष्य जीवन का ध्येय आनंदप्राप्ति कैसी करनी चाहिए ?’ इस विषय में पढाया नहीं जाता होगा । भौतिक विषय सिखकर हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है; परंतु उससे हम अपने जीवन में आनंद का अनुभव नहीं कर सकेंगे । इस दृष्टि से ही हम प्रयासरत हैं । इसी के एक अंश के रूप में आज के समय में हमने कुछ पाठ्यक्रम सुनिश्चित कर इस कार्य का आरंभ किया है ।
विकसित प्राचीन हिन्दू संस्कृति की शिक्षा देकर हम भोगवादी और भौतिकता से लड सकते हैं ! – प्रा. डॉ. मनोज कामत, प्राचार्य, श्री मल्लिकार्जुन महाविद्यालय, काणकोण, गोवा
आज की शिक्षापद्धति से पैसा और भौतिक सुख मिलता है । विकसित प्राचीन हिन्दू संस्कृति की शिक्षा देकर हम भोगवादी और भौतिकता से लड सकते हैं । आज के समय के पाठ्यक्रम परिपूर्ण छात्र तैयार करने में अल्प सिद्ध हो रहे हैं । उसके कारण मेरे महाविद्यालय में हमने सनातन संस्था के मार्गदर्शन में सनातन पाठ्यक्रम विकसित किया । इस पाठ्यक्रम के माध्यम से सनातन मूल्यों की सीख और पद्धतियों का परिचय करवा दिया गया है । इसके साथ ही इस पाठ्यक्रम में छात्रों को ‘साधना एवं अध्यात्म, संस्कृति के अनुसार आचरण’, ‘भारतीय संस्कृति की विशेषताएं , ‘स्वभावदोष निर्मूलन एवं व्यक्तित्व का विकास’ आदि अनेक विषयों की जानकारी दी गई है, ऐसा प्रतिपादन यहां के श्री मल्लिकार्जुन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मनोज कामत ने किया । ‘वर्तमान के महाविद्यालयों में भारतीय संस्कृति पर आधारित शिक्षा देने के उद्देश्य से करने आवश्यक प्रयास’, इस विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।
डॉ. कामत ने आगे कहा कि विगत ७५ वर्षाें में हमने विकास किा; परंतु हम विकसित नहीं हुए । हमने धर्मशिक्षा लेकर अपनी संस्कृति की रक्षा नहीं की, यह दुर्भाग्यजनक है । हम स्नातक तो बनते हैं; परंतु हम स्वयं में चेतना उत्पन्न करने में सक्षम नहीं बने । अतः हमारी शिक्षापद्धति असफल सिद्ध हुई है । हिन्दू अपने बच्चों को मिशनरियों के विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं । जर्मनी के विश्वविद्यालय में संस्कृत की शिक्षा दी जाती है; परंतु भारतीय विश्वविद्यालयों में संस्कृत नहीं, अपितु जर्मन भाषा सिखाई जा रही है । आज की शिक्षापद्धति क्या हिन्दू राष्ट्र की शिक्षा देती है ?, इस पर विचार कर हमें नई शिक्षापद्धति तैयार करनी होगी, जिससे बच्चों को हमारी संस्कृति और राष्ट्रनिष्ठा सिखाई जा सके । संस्कृति नष्ट कर यांत्रिक पद्धति की शिक्षा दी जा रही है । इससे केवल नौकरशहा तैयार होते हैं, विचारक नहीं !
सनातन आश्रम देखने के उपरांत छात्रों में आए परिवर्तन !
‘मेरे महाविद्यालय के कुछ छात्रों को हम सनातन आश्रम देखने के लिए ले आए । सनातन आश्रम का व्यवस्थापन और आध्यात्मिक जानकारी देखकर छात्र अभिभूत हो गए । उससे छात्रों के विचारों में परिवर्तन आया । तब से वे ग्रंथालय जाकर आध्यात्मिक ग्रंथों का वाचन करने लगे । आज के समय में छात्रों के लिए भारतीय संस्कृति, नीतिमूल्यों और राष्ट्रनिर्माण इन विषयों पर ‘ऑनलाइन’ पद्धति से प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम आरंभ किया गया है । – प्रा. डॉ. मनोज कामत, प्राचार्य, श्री मल्लिकार्जुन महाविद्यालय, काणकोण, गोवा.