नई देहली – ‘‘यदि भारत स्वयं को हिन्दू राष्ट्र घोषित करता है, तो एक वर्ष में अन्य १५ देश स्वयं को हिन्दू राष्ट्र घोषित करेंगे’’, ऐसा प्रतिपादन पुरी के पुर्वाम्नाय गोवर्धन पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी ने किया । उन्होंने कहा कि ‘हम लाठी, बंदुक की गोली और बम पर आधारित नहीं, प्रेम, सिद्धांत, वस्तुस्थिति एवं इतिहास के आधार पर संपूर्ण एशिया खंड को ‘हिन्दूमहाद्वीप’ के रूप में घोषित करने की इच्छा रखते हैं ।’’ वे यहां तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में बोल रहे थे । इस समय केंद्रीय मंत्री श्री. अश्विनी चौबे, विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता अलोक कुमार, हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी, ‘पंजाब केसरी’ समाचार पत्र की संचालिका किरन शर्मा, ‘सुदर्शन’ वाहिनी के प्रमुख श्री. सुरेश चव्हाणके, गंगाराम चिकित्सालय के अध्यक्ष डॉ. डी.एस. राणा आदि मान्यवर उपस्थित थे । इस अधिवेशन के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका प्रविष्ट की गई है । इस याचिका में कहा गया है कि ‘शंकराचार्यजी ने इससे पूर्व प्रक्षोभक वक्तव्य किए हैं और इसलिए समाज में टंटा निर्माण होकर अल्पसंख्यकों में भय का वातावरण निर्मित हुआ है । इस पर ९ मई को सुनवाई होगी ।
शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वतीजी द्वारा अधिवेशन में प्रस्तुत किए गए विचार
केवल ७२ वर्षाें के संविधान द्वारा हमें न डराएं !
सभी के पूर्वज वैदिक सनातनी आर्य हिन्दू थे । संविधान, अधिवक्ता और न्यायाधीश को दिशादर्शन करने का दायित्व शंकराचार्याें का होता है और यह हमारा शाश्वत अधिकार है । वर्तमान में देश में लागू संविधान को ७२ वर्ष पूर्ण हुए हैं । हिन्दुओं का संविधान १ अबज ९७ करोड २९ लाख ४९ सहस्र १२२ वर्ष का है । ७२ वर्षाें के संविधान के आधार पर हमें डराने का किसी को प्रयास नहीं करना चाहिए ।
मंत्रीमंडल के लिए आवश्यक व्यक्ति !
यदि मंत्रीमंडल उचित पद्धति से चलाना है, तो उसमें ४ ब्राह्मण, ८ क्षत्रिय, २१ वैश्य, ३ शुद्र और १ सूत (सारथी) होने की आवश्यकता है । भारत में जो राजतंत्र था, वही वास्तविक अर्थ में लोकतंत्र था । विश्व स्तर पर विकास और राजनीति की व्याख्या करने की आवश्यकता है । राजनीति के लिए राजधर्म, क्षात्रधर्म, अर्धनीति, दंडनीति, इन शब्दों का प्रयोग महाभारत, अर्थपुराण एवं मनुस्मृति में किया गया है ।