पूर्व एवं पूर्वोत्तर राज्य की साधिका डॉ. (कु.) श्रीया साहा (आयु २५ वर्ष) और साधक श्री. काजल मंडल (उम्र ४२ वर्ष) का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत घोषित !

डॉ. (कु.) श्रीया साहा

     कोलकलता (बंगाल) – ‘ऑनलाइन’ सत्संग के समय कोलकाता (बंगाल) की साधिका डॉ. (कु.) श्रीया साहा और साधक श्री. काजल मंडल द्वारा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने की घोषणा पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी ने की । यह शुभ समाचार सुनकर ‘ऑनलाइन’ सत्संग में जुडे सभी साधक भावविभोर हो गए । डॉ. (कु.) श्रीया साहा ने शरणागत होकर कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैं कुछ भी नहीं करती और मैं इसके लिए स्वयं को पात्र भी नहीं समझती । यह केवल परम पूज्य गुरुदेवजी की कृपा से ही हो पाया है । इसमें मेरे कोई प्रयास नहीं हैं ।’’ इस समय डॉ. श्रीया के साधक पिता श्री. सियाराम साहा ने कु. श्रीया को भेंटवस्तु दी ! इस समय श्रीया की मां श्रीमती तनुश्री साहा, बहन डॉ. शिवांगी भी ‘ऑनलाइन’ प्रणाली के माध्यम से उपस्थित थीं ।

     स्तर की घोषणा सुनकर श्री. काजल मंडल ने बताया, मैं गुरुदेवजी के प्रति कृतज्ञ हूं । उनकी कृपा से ये हुआ है, मैं तो कुछ नहीं कर रहा हूं । आगे और प्रयास करके परात्पर गुरुदेवजी का मन जीतने का प्रयास करेंगे ! इस समय श्री. शंभू गवारे ने श्री. काजल मंडल को भेंटवस्तु दी !

डॉ. (कु.) श्रीया साहा की गुणविशेषताएं

     ‘कु. श्रीया में वैचारिक प्रगल्भता, स्थिरता, अंतर्मुखता और भाव है । डॉक्टर होते हुए भी तथा घर में सभी आधुनिक सुविधाएं होते हुए भी उनमें अहं अल्प है । वह बचपन में गोवा आई थी । उस समय उनके परिजनों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी के साथ छायाचित्र खींचा था जिसे उन्होंने अभी तक संभालकर रखा है ।’

– (पू.) श्री. नीलेश सिंगबाळ, वाराणसी सेवाकेंद्र

१. शांत

कु. श्रीया बचपन से ही शांत स्वभाव की हैं ।

२. सीखने की वृत्ति

     विद्यालय जाने से पहले ही उसने अक्षर लिखना सीख लिया था ।  उसको लिखते देखकर उसकी शिक्षिका को बहुत आश्‍चर्य हुआ ।  उसको पढाने में मुझे थोडा भी कष्ट नहीं हुआ ।

३. व्यवस्थितपन

     श्रीया बचपन से ही अपनी पुस्तकें व वस्तुओं को संभालकर रखती है । उसने बाल्यकाल में कभी भी अपनी बही में आडी-तिरछी रेखाएं नहीं खींचीं । उसे जो भी चित्र बनाने के लिए दिया जाता, उसे सुंदर प्रकार से बना लेती ।

४. मितव्ययी 

अ. श्रीया कभी भी अनावश्यक खर्च नहीं करती ।

आ. हम जब खरीदारी करते हैं, तो वह अल्प मूल्य में अच्छी वस्तु लेने का प्रयत्न करती है ।

इ. ‘आवश्यकतानुसार पैसा खर्च करना, बचाना और दान करने का वह अच्छी प्रकार से नियोजन करती है ।’

५. संतुष्ट वृत्ति

श्रीया संतुष्ट है । वह स्वयं के लिए कुछ नहीं खरीदती, कुछ लेने के लिए पूछने पर ‘आवश्यकता नहीं’, ऐसा कहती है । ‘मेरे लिए दो ही कपडे पूरे हैं’, ऐसा उसका विचार रहता है । वह स्वयं हमसे पैसे नहीं लेती, हम ही उसे अपने पास रखने के लिए पैसे देते हैं ।

६. सुनने की वृत्ति

अ. श्रीया को किसी भी कार्य के लिए दुबारा नहीं बताना पडता । वह तत्परता से कोई भी काम करती है ।

आ. साधना के सूत्र बताने पर आकलन कर वह तुरंत उसी अनुसार कृति करती है ।

७. श्रीया धैर्यवान है । 

८. साधना में सहायता करना 

अ. श्रीया ७ वर्ष की थी जब हमने साधना आरंभ की तबसे श्रीया हमें नामजप करने के लिए स्मरण कराती है ।

आ. हमारे पास सात्त्विक उत्पाद का संग्रह रहता है । उसकी गिनती करने में वह हमें सहायता करती है ।

इ. वह हमें हमारे स्वभावदोषों को समय-समय पर बताती रहती है ।

९. अंतर्मुखता

     वह अंतर्मुख है । आवश्यक विषयों के संबंध में ही बात करती है ।

१०. श्रद्धा

     प.पू. गुरुदेवजी पर उसकी अटूट श्रद्धा है । वह हमारी प्रत्येक उपलब्धि का श्रेय प.पू. गुरुदेवजी को देती है । स्वयं डॉक्टर होते हुए भी उसकी सहेलियों को कुछ कष्ट होने पर  उन्हें नामजप जैसे आध्यात्मिक उपाय ही बताती है । (अभी श्रीयाने ‘एम.बी.बी.एस.’ की शिक्षा पूर्ण की है, आगे वह ‘एम.डी.’ करनेवाली है ।

– श्रीमती तनुश्री साहा (श्रीया की मां), कोलकाता (१८.३.२०२०)

श्री. काजल मंडल की गुणविशेषताएं

श्री. काजल मंडल

१. अन्यों की सहायता करना

     मैं कोलकाता में नया होने के कारण वे सभी प्रकार की मेरी सहायता करते हैं । ‘मैं कोलकता में काजल भैया के साथ निवास के लिए रुकता हूं तब वे ‘मां के समान वे मेरा ध्यान रखते है ।’ भोजन से लेकर सेवा तक मेरा ध्यान रखते हैं । मुझे जब सेवा हेतु कहीं जाना हो तो काजल भैया मेरे साथ जाने के लिए तैयार रहते है । जब मैं सेवा को अकेला जाता हूं तब वापस आने तक वे मेरे संपर्क में रहते हैं । मुझे कुछ अडचन न आए इस दृष्टी से प्रयास करते हैं । – श्री. शंभु गवारे

२. अन्यों का विचार करना

     एक  कार्यक्रम में एक  हिन्दुत्वनिष्ठ व्यक्ति को शीघ्र जाना था, तो काजल भैया ने रसोई बनाने की सेवा में सहायता कर शीघ्र खाना बनाकर उन्हें दिया । जिससे वे समय पर निकल सकें ।’ – श्री. सुमंतो देबनाथ एवं श्रीमती अर्पिता देबनाथ, कोलकाता

३. कोलकाता आनेवाले साधकों की गूगल समान सहायता करनेवाले श्री. काजल मंडल !

     काजल दादा से लगभग एक वर्ष पहले मेरी भेंट हुई थी । कोलकाता में सेवा की दृष्टि से जब भी जाना होता है, उस समय उनके साथ ही मेरे निवास का नियोजन होता है । श्री काजल मंडल झारखंड के धर्मप्रचारक पू. प्रदीप खेमका के कोलकाता कार्यालय में गत दस-बारह वर्षों से नौकरी कर रहे हैं । कोलकाता आने वाले किसी भी साधक या संत के लिए काजल दादा गूगल जैसा कार्य करते हैं । ऐसी कोई भी बात नहीं जो उन्हें बताया और उन्होंने उसके बारे में कुछ नहीं किया ! इतने विश्‍वास के साथ वे हर सूत्र के लिए सहायता करते हैं । – श्री. शंभू गवारे

४. तत्परता

     काजल को कोई भी सेवा अथवा काम बताते हैं, तो तत्परता से वह कृति करते हैं । उन्हें कुछ साहित्य बाजार से लाने के लिए बताया या कोई सेवा का सूत्र बतानेपर, वह उसे तुरंत पूर्ण करते हैं । किसी सूत्र को पूर्ण करने के लिए उन्हें दुबारा नहीं बताना पडता । – (पू.) श्रीमती सुनीता खेमका

५. अन्यों का विचार

अ. भैया जहां रहते हैं, वहां की लिफ्ट दिन में ३ बार कुछ समय के लिए बंद रहती है । जब भी वहां बैठक या अन्य सेवा का नियोजन रहता है तो भैया सभी को लिफ्ट चलने का समय बताते हैं । यदि किसी साधिका को किसी कारण से देरी हो गयी तो वे लिफ्ट वाले भैया को पहले से बता कर रखते हैं ।

आ. कोई नया साधक हो या पहली बार कोई वहां आ रहा है, तो उन्हें बस या मेट्रो से लेकर आते हैं, ताकि उन्हें कोई समस्या न आये ! – श्रीमती निकिता उपाध्याय (कोलकाता)

ई. काजल की शारीरिक क्षमता नहीं होते हुए भी वे सेवा में सदैव आगे रहते हैं । मेरी बहन को कुछ साहित्य पहुंचाना हो, तो स्वयं उनके घर जाकर साहित्य देकर आते हैं, जिससे दीदी को अलग से नियोजन न करना पडे । – (पू.) श्रीमती सुनीता खेमका और (पू.) श्री. प्रदीप खेमका

६. अन्यों की सहायता करना

आ. स्वयं का ‘चार्जर’ ठीक करके देना : एक बार मैं यात्रा करते समय चल-दूरभाष के ‘चार्जर’ को एक स्थानपर भूल गया था । काजल भैया को इसके बारे में बताया तो उन्होंने अपने ‘चार्जर’ को ठीक करके मुझे दिया । – श्री. शंभू गवारे (कोलकाता)

आ. सभी प्रकार की सेवा में सहायता करना : ‘भैया से कुछ भी सहायता मांगें, चाहे वह सनातन के सात्विक उत्पाद चाहिए अथवा अन्य कुछ; काजल भैया सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । कभी भी वह ‘ना’ नहीं कहते ।’

७. सीखने की वृत्ति

अ. उन्हें सेवा के बारे में कुछ नया सूत्र बताया तो वह तुरंत सीखकर लेने का प्रयास करते हैं । सोशल मीडिया की सेवा बताने पर भी वह सीखकर उसे करने का प्रयास करते हैं ।  – श्री. सुमंतो देबनाथ और श्रीमती अर्पिता देबनाथ

आ. नामजप करना, उपायों के चित्र लगाना, सत्संग सुनना, व्यष्टि साधना का ब्यौरा देना, यह सब सूत्र बताने पर वह मन:पूर्वक करते हैं ।

८. स्वीकार करने की वृत्ति होना

अ. वह जो सेवा करते हैं, उसमें कुछ सुधार बताने पर वह तुरंत ही उसमें सुधार करने का प्रयास करते हैं । – श्री. शंभू गवारे

आ. ‘उन्हें किसी ने चूक ध्यान में लाकर दी तो वह तुरंत उसे स्वीकार करते हैं ।’

९. अल्प अहं

     किसी भी कृति को वह खुलेपन से बताते हैं । वह अपनी स्वप्रतिमा को संभालने का विचार नहीं करते । ऐसा उनके बारे में ध्यान में आता है । – श्री. सुमंतो देबनाथ और श्रीमती अर्पिता देबनाथ 

१०. आनंदी

     ‘वह हमेशा आनंद में रहते हैं । उनसे बात करके साधकों को भी प्रसन्नता होती है ।’ – श्री. शंभू गवारे

११. निकटता बढाना

अ. ‘कुछ दिन पूर्व मेरे परिवार के सदस्य कोलकाता आए थे । काजल भैया की चार दिन में उनके साथ इतनी निकटता बढ गयी थी कि लग ही नहीं रहा था कि ‘वह उनसे पहली बार मिले हैं ।’ उनके खाने-पीने से लेकर उन्हें बाजार से कुछ खरीदना हो तो हर सूत्र में उनकी सहभागिता मुझसे भी ईधक थी । काजल भैया में अन्यों का विचार करना इस गुण के कारण ही उनकी सभी से निकटता बन जाती है’, ऐसा सीखने को मिला ।

आ. भैया जहां रहते हैं, वहां भी सभी के साथ उनकी निकटता है ।

इ. एक बार हम गाडी से रेलवे स्टेशन जा रहे थे । गाडीचालक से भी काजल दादा की पहचान थी । ‘दो से तीन मिनट बात करके ही उन्होने उस चालक से अच्छी मित्रता कर ली ।’

– श्री. शंभू गवारे

ई. ‘साधक, समाज के व्यक्ति, हिन्दुत्वनिष्ठ; काजल भैया सभी से खुले मन से बात करते हैं । इस कारण सभी से उनकी निकटता है । उनसे आर्थिक लेन देन के प्रसंग में भी लोग भैया पर १००% विश्‍वास करते हैं ।’

१२. प्रेमभाव

अ. कभी-कभी वह साधकों के लिए भोजन भी बनाते हैं । उस समय ‘साधकों के लिए नया और अधिक अच्छा क्या बनाकर दे सकता हूं ?’ ऐसा विचार कर वह भोजन बनाते हैं । उसकी सेवा करने के गति बहुत अच्छी है । वह कम समय में स्वदिष्ट भोजन बनाते हैं ।

आ. साधकों के साथ उनके छोटे बच्चे आये, तब भी भैया छोटे बच्चों के लिए ऐसे विभिन्न पदार्थ बना कर देते हैं, जिसको बच्चे सहजता से खा सकें ।

इ. हिंदुत्वनिष्ठ और साधकों की छोटी-छोटी बातोंपर अच्छे प्रकार से ध्यान देते हैं । उनको एक बार कोई बात बताई जाए, तो वह उनको दूसरी बार बतानी नहीं पडती । उदा. ‘एक बार मैने उनको बताया था कि ‘मैं बिना शक्कर की चाय पीता हूं ।’ इसके पश्‍चात उनको पुनः कभी बताने की आवश्यकता नहीं पडी ।’

– श्री. सुमंतो देबनाथ और श्रीमती अर्पिता देबनाथ 

ई. काजल दादा में बहुत अधिक प्रेमभाव है । दूर-दूर से लोग उनके पास से सनातन के सात्विक उत्पाद लेते हैं । एक आश्रम के स्वामी जी चंदन इत्र नियमित उपयोग करते हैं । उनके एक शिष्य इत्र लेने आते हैं । काजल दादा के प्रेमभाव के कारण ही यदि उन्हें प्रतीक्षा करनी पडे, तो भी काजल दादा के पास आकर इत्र लेकर जाते हैं । जब मैं उनसे मिला, तो ध्यान में आया कि ‘काजल दादा के अच्छे व्यवहार के कारण वे इतनी दूर से साहित्य लेने आते हैं ।’ – श्री. शंभू गवारे

उ. ‘काजल भैया से यदि कोई भी मिले, तो वह उनसे बहुत प्रेम से बोलते हैं । उनके प्रेमभाव के कारण उनसे बहुत लोग जुडे हैं और वे उनके पास से नियमित सात्विक उत्पाद भी लेकर जाते हैं ।’ – श्रीमती निकिता उपाध्याय (कोलकाता)

१३. सेवा की लगन

अ. ‘शारीरिक मर्यादाएं होते हुए भी वह कभी शारीरिक सेवा में सबसे आगे रहते हैं और सेवा में वह हमेशा सभी की सहायता करते हैं । उस समय वह स्वयं को भूल कर सेवा करते हैं । जब भैया सेवा में रहते हैं, उस समय उन्हें अपने खाने-पीने का ध्यान नहीं रहता है और ऐसी बातों पर वह अधिक ध्यान नहीं देते हैं ।’ – श्री. सुमंतो देबनाथ और श्रीमती अर्पिता देबनाथ 

आ. दो बार कार्यक्रम के समय मैं भैया के यहां गयी । दोपहर के १.३० बजे तक भैया की सेवा आरंभ थी और उनसे बात करते समय ध्यान में आया कि ‘सेवा की व्यस्तता के कारण उन्होंने नाश्ता भी नहीं किया था ।’ – श्रीमती निकिता उपाध्याय (कोलकाता)

इ. ‘उन्हें जब कोई व्यक्ति अच्छा लगता है, वह तुरंत उन्हें सनातन के सात्विक उत्पाद के बारे में बता कर उन्हें अपने घर पर ले आते हैं । कुछ दिन पहले बिल्डिंग की लिफ्ट ठीक करने के लिए आए व्यक्ति से बात करते समय ‘उसकी रुचि सात्विक है’, ऐसा ध्यान में आया । तब वह उन्हें साथ लेकर आए और उन्होंने सात्विक उत्पाद भी लिए । इसी प्रकार से उन्होंने समाज के कई लोगों को जोडकर रखा है, जो नियमित रुप से सात्विक उत्पाद लेते हैं ।’

ई. काजल दादा अधिक पढे-लिखे नहीं हैं; परन्तु उनकी सेवा की लगन के कारण ही से सात्विक उत्पाद, हिन्दी और बांगला भाषा के ग्रंथों का लेखा अच्छे से रख पाते हैं ।

उ. उनकी प्रति माह की बिक्री भी अच्छी मात्रा में होती है ।

– श्री. शंभू गवारे

ऊ. ‘दत्त जयंती’ और उसके तीन दिन बाद कोलकाता में एक कार्यक्रम का नियोजन था, किंतु उन्होंने दोनों समय पूरी तैयारी उतने ही लगन से और मन से की थी । इससे उनका सेवाभाव ध्यान में आया ।

१४. परिपूर्ण सेवा करना

    ‘काजल को एक बार सैलो टेप का डिस्पेंसर लेने के लिए बताया था । उन्होंने बाजार से २-३ प्रकार के टेप डिस्पेंसर के छायाचित्र निकालकर भेजे । यह भेजते समय उन्होंने बताया कि ‘बडा लेंगे तो उसमे बडे और छोटे दोनों आकार के टेप का उपयोग कर सकते हैं, इसलिए वह लेना चाहिए ।’ इससे उनकी परिपूर्ण सेवा करने का अभ्यास ध्यान में आया ।’

– (पू.) श्रीमती सुनीता खेमका और (पू.) श्री. प्रदीप खेमका

१५. स्वयं को बदलने की लगन

      ‘मैं एक वर्ष पहले जब कोलकाता गया था । काजल भैया के साथ मेरे निवास की व्यवस्था थी । वहां अधिक मात्रा में अस्वच्छता रहती थी । उसके बारे में उन्हें स्वच्छता का महत्व, आश्रम की स्वच्छता की विशेषताएं और परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी की सीख के बारे में बताने के बाद वह अभी लगन से स्वच्छता रखने का प्रयास करते हैं । इस प्रसंग से उनकी स्वयं को बदलने की लगन ध्यान में आयी ।’ – श्री. शंभू गवारे

१६. संतों के प्रति भाव और आज्ञापालन करने की लगन

     ‘कुछ दिन पूर्व सनातन की सद्गुरु बिंदा सिंगबाळ और सद्गुरु अंजली गाडगीळ जी कोलकाता आए थे । वह रात को कुछ समय के लिए ही काजल से मिले थे; परन्तु उस दिन से काजल में बहुत बदलाव ध्यान में आ रहे है । सद्गुरु बिंदा ताई जी ने उन्हें साधना के कुछ सूत्र बताए, तब से वह पूरा मन लगाकर उन सूत्रों को अपने आचरण में लाने का प्रयास करते हैं । उन्हें व्यष्टि साधना के सत्संग में बोलने में डर लग रहा था; परन्तु संतों के आज्ञापालन की लगन के कारण उन्होंने सत्संग में बोलना शुरु किया और अभी नियमित सत्संग सुनते हैं ।’ – (पू.) श्रीमती सुनीता खेमका और (पू.) श्री. प्रदीप खेमका

१७. परात्पर गुरु डॉ आठवले जी के प्रति अटूट श्रद्धा

अ. ‘एक प्रसंग में उन्होने कहा था कि उन्हें ऐसा लगाता है, ‘पता नहीं मुझसे क्या चूक हुई थी कि परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी ने उन्हें छोड दिया !’ परंतु ‘अभी सब ठीक है ।’ यह बताते समय परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी के स्मरण से उनकी भावजागृति हो रही थी ।’ – श्रीमती निकिता उपाध्याय (कोलकाता)

आ. जब भी काजल भैया परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी के बारे में बात करते हैं, तो वह कहते हैं, ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी की मेरे ऊपर बहुत कृपा है’, ऐसा लगता है । जबसे मेरी साधना शुरु हुई है, मेरे जीवन में कुछ भी समस्या शेष नहीं है । यह बताते हुए और अन्य समय भी जब वह परात्पर गुरु डॉक्टर जी के विषय में बात करते हैं तो उनकी आंखों से भावाश्रु निकल आते हैं । उनकी वाणी भी भावविभोर हो जाती है ।

१८. मां का स्मरण दिलाने वाले आदर्श साधक के गुण वाले कोलकाता के साधक काजल मंडल !

     ‘गत एक वर्ष में परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी की कृपा से उनकी जो गुण-विशेषताएं सीखने को मिली, उससे काजल भैया अर्थात ‘गुणों की खान हैं’, ऐसा ध्यान में आया । ऐसे गुणी साधक के साथ मुझे रहने की संधि मिली है, इसलिए मैं परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हूं । काजल दादा की गुण विशेषताएं कुछ प्रसंगों में जो ध्यान में आयी, वह कृतज्ञतापूर्वक परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी के चरणों में अर्पण करता हूं ।‘

– श्री. शंभू गवारे (कोलकाता)

     इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक