
सनातन धर्म की परंपरा वैज्ञानिक है। हमें यह दृढ विश्वास रखना चाहिए कि ब्रह्मांड में जो शाश्वत विचार हैं, वे पूर्णतः वैज्ञानिक विचार हैं। सनातन धर्म, वह धर्म है जो व्यक्ति, समाज, प्रकृति और परमात्मा के मध्य संतुलन स्थापित करता है। जिस प्रकार विज्ञान और प्रकृति के नियम सर्वत्र एक समान हैं, उसी प्रकार सनातन धर्म के नियम भी सर्वत्र एक समान हैं। सनातन धर्म के नियमों में संपूर्ण विश्व के कल्याण करने की क्षमता है।
स्वतंत्रता के उपरांत ६० वर्षों तक ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप हमारा देश एक धर्मशाला बन गया है। हमें मुक्त वातावरण कौन देगा ? अब समाज को प्रतिकार करने के लिए सिद्ध करने हेतु, अपने कर्तव्य का उत्तरदायित्व अनुभव कराना आवश्यक है! ‘बटेंगे तो कटेंगे’ (विभाजित होंगे, तो कट जाएंगे) के स्थान पर हमें अब ‘जितेंगे तो जीवित रह पायेंगे’ (जीवित रहेंगे, यदि हम जीतेंगे ) यह निरंतर स्मरण रखना चाहिए। आइए हम सनातन धर्म के मार्ग को अवरुद्ध करने वाले सभी विधानों को समाप्त करें और हिन्दू धर्म संरक्षक नवीन विधान निर्माण करें । हमारे देश में कौन से विधान होने चाहिए ? इसके लिए प्रयास किये जाने की नितांत आवश्यकता है।
सनातन के एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में भाला है !

कुछ वर्ष पूर्व जब मैंने ‘सनातन प्रभात’ पढा तो विचार आया कि, कितने लोग ऐसा समाचार पत्र पढते होंगे ? यह कैसे सफल होगा ? किन्तु कालान्तर में सनातन संस्था के कार्य ने अब मेरे सभी संदेह दूर कर दिए हैं। सनातन संस्था ने हिन्दू समाज को जागरूक किया है। मैं इसे ‘सनातन धर्म‘ की शिक्षा देने वाली संस्था के रूप में देखता हूं।
सनातन संस्था का संपूर्ण कार्य अध्यात्मिक सिद्धांतों पर आधारित है। आध्यात्मिक ग्रंथ ‘भगवद्गीता’ युद्ध के क्षेत्र में सुनाई गया है। इसी प्रकार सनातन संस्था ने अध्यात्म से लेकर युद्ध तक जागरूकता बढाई है। मैंने इस महोत्सव में युद्ध कलाओं का प्रदर्शन देखा। मेरा मानना है कि, ‘देश के सभी संतों को अपने शिष्यों को इसकी शिक्षा देनी चाहिए ।’ सनातन संस्था की साधना में एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में भाला होता है। यदि हम केवल बैठकर जप करते रहेंगे तो हमारा उद्देश्य फलीभूत नहीं होगा। इसलिए भगवान कृष्ण ने भी अर्जुन से कहा, ‘मेरा स्मरण करो; किन्तु युद्ध करो !
‘सनातन प्रभात’ के ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव’ विशेषांक का प्रकाशन !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी, प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरिजी, आचार्य महामंडलेश्वर अनंत श्री विभूषित श्री श्री १००८ स्वामी बालकानंद गिरि ‘महाराज, श्री सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, स्वामी आनंद स्वरूप महाराज, श्री दर्शक हाथी, श्री अभय वर्तक और श्री सुरेश चव्हाणके। उपस्थित लोगों को एक सहस्त्र वर्ष पुरातन सोरठी सोमनाथ शिवलिंग के दर्शन हुए !
सोरठी सोमनाथ में मूल एक सहस्त्र वर्ष पुरातन शिवलिंग के अवशेष

आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय निदेशक श्री दर्शक हाथी, विशेष रूप से इस महोत्सव के लिए सोरठी सोमनाथ से मूल एक सहस्त्र वर्ष पुरातन शिवलिंग के अवशेष लेकर आए थे। सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी समवेत उपस्थित संतों और वक्ताओं ने मंच पर उनके भावपूर्ण दर्शन किए, वहीं उपस्थित लोगों ने भी ‘ पर्दे’ के माध्यम से भी उनके दर्शन किए।
‘शिव तेज आज भी जीवित है’ ! इसका प्रदर्शन करने वाले चित्तथरारक प्रात्यक्षिक भी प्रस्तुत किए गए !

‘सव्यसाची गुरुकुलम’ के विद्यार्थियों ने लाठी चलाना, लाठी कैंची, भाला कैंची, दंडपट्टा, दंडपट्टा कैंची, महिलाओं का शत्रुओं से संरक्षण करने के लिए लाठी युद्ध, तलवारबाजी शस्त्रादि का अद्भुत प्रदर्शन किया।