
‘‘साधना में निर्माण हुई बाधा अथवा कष्ट दूर होने हेतु साधक कोरे कागद पर श्रीकृष्ण के नामजप का मंडल बनाते हैं तथा उसमें आ रही बाधा अथवा हो रहा कष्ट लिखकर उसे दूर करने हेतु प्रार्थना लिखते हैं । साथ ही साधक होनेवाले संभावित कष्ट को श्रीकृष्ण के नामजप के मंडल में लिखकर ‘वह कष्ट न हो तथा स्वयं के इर्द-गिर्द श्रीकृष्ण के नामजप का सुरक्षाकवच तैयार हो’, यह प्रार्थना लिखते हैं । इस उपाय का तुरंत परिणाम देखने को मिलता है तथा उससे कष्ट की तीव्रता लगभग ५० प्रतिशत से अल्प हो जाती है ।
इसका एक छोटा सा उदाहरण है, ‘एक बार ८-१० साधक रेल से गोवा आ रहे थे । वर्षाऋतु का समय था । उनकी गाडी रत्नागिरी से चिपळूण के मध्य २-३ घंटे बंद पड गई तथा उसका कारण समझ में नहीं आ रहा था । मैंने उन्हें नामजप का मंडल बनाने का उपाय सुझाया । उनके द्वारा वह उपाय किए जाने के मात्र २-३ मिनट में ही उनकी गाडी पुनः चालू हुई ।’
‘नामजप का मंडल बनाने के बहुत ही सरल उपाय से साधकों को इतना लाभ कैसे मिलता है ?’, विचार करने पर ध्यान में आया, ‘अधिकांश साधक विगत १५ से २० वर्षाें से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में गुरुकृपायोग के अनुसार साधना कर रहे हैं । वे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के बताए अनुसार वर्तमान काल के लिए अनुकूल तथा ईश्वर को अपेक्षित समाज में सात्त्विक निर्माण करनेवाली समष्टि साधना कर रहे हैं । उनका यह इतने वर्षाें का तप ही है, जिससे उनकी वाणी एवं लेखन में चैतन्य निर्माण हुआ है । इसलिए जब वह ईश्वर का नामजप लिखते हैं तो वहां संबंधित देवता का अस्तित्व उत्पन्न होता है; जिससे वह नामजप फलीभूत होता है तथा साधकों को उस नामजप का लाभ होता है ।
नामजप करते समय भी साधकों को यही अनुभूतियां हो रही हैं । अतः उनके द्वारा किए जा रहे पंचतत्त्वों के नामजप, उच्च देवताओं के नामजप, साथ ही निर्गुण स्तर के ‘शून्य, महाशून्य, निर्गुण एवं ॐ’ के नामजप उनको जैसे सिद्ध ही होने जैसे हैं ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों से देवता का कृपाशिर्वाद प्राप्त करानेवाली साधना करवा ली है; इसके लिए उनके प्रति चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है !’
– सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा