वास्तुदोषों के निवारण हेतु सुलभ आध्यात्मिक उपचारों के साथ ‘साधना करना’ सर्वाेत्तम उपाय !

१. वास्तुदोष क्या होता है ?

‘वास्तुशास्त्र में अष्टदिशा, पंचमहाभूत तथा वातावरण की ऊर्जा का उचित समन्वय साधकर मनुष्य के लिए शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरों पर लाभदायक भुवन निर्माण के नियम दिए गए हैं । उनका पालन कर भुवन का निर्माण किया, तो उससे भुवन में सकारात्मक स्पंदनों का मंडलाकार भ्रमण चलता रहता है । उसके कारण उस भुवन में रहनेवाले व्यक्तियों को सुख, समृद्धि, संतुष्टि एवं शांति का लाभ होता है । वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन किए बिना निर्मित भुवन में दोष उत्पन्न होते हैं, उन्हें ‘वास्तुदोष’ कहा जाता है ।

२. वास्तुदोषों के कारण शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाले दुष्परिणाम !

वास्तुदोषों के कारण वास्तु में नकारात्मक स्पंदन उत्पन्न होते हैं । इन नकारात्मक स्पंदनों के कारण वहां रहनेवाले लोगों पर शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक एवं आध्यात्मिक स्तरों पर दुष्परिणाम होते हैं ।

अ. शारीरिक : बीमारी होना, औषधोपचार करने पर भी बीमारी दूर न होना, परिवार में किसी न किसी का बीमार रहना इत्यादि

आ. मानसिक : झगडे तथा विवाद होना, आत्मविश्वास अल्प होना, मानसिक अस्थिरता, मनोविकार होना इत्यादि

इ. पारिवारिक : विवाह सुनिश्चित होने में समस्याएं आना, संतानसुख न मिलना, आर्थिक समस्याएं आना, नौकरी न लगना इत्यादि

ई. आध्यात्मिक : प्रत्येक कार्य में बाधा उत्पन्न होना, आध्यात्मिक कष्टों में वृद्धि होना, वास्तु में सूक्ष्म स्तरीय अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्व प्रतीत होना इत्यादि

श्री. राज कर्वे

३. वास्तुदोषों के निवारण हेतु  सुलभ आध्यात्मिक उपचार – वास्तुशुद्धि

वास्तुशास्त्र के नियमों के विरुद्ध की गई वास्तु के कक्षों की रचना, उदा. ईशान्य दिशा में शौचालय, नैऋत्य दिशा में रसोईघर इत्यादि के कारण उत्पन्न वास्तुदोष दूर करने हेतु वास्तु की रचना में परिवर्तन करने आवश्यक होते हैं; परंतु वास्तु की रचना में परिवर्तन करना सामान्य लोगों के लिए आर्थिक दृष्टि से कठिन होता है । वास्तुदोषों के कारण वास्तु में उत्पन्न नकारात्मक स्पंदन दूर करने हेतु ‘वास्तुशुद्धि करना’ एक अत्यंत सुलभ एवं प्रभावी उपाय है । आगे वास्तुशुद्धि की सुलभ पद्धतियां दी गई हैं ।

३ अ. सात्त्विक अगरबत्ती से शुद्धि करना : यज्ञ की विभूति, गोमूत्र जैसे सात्त्विक घटकों से बनी अगरबत्ती से घर की शुद्धि करें । इससे वास्तु में देवताओं का आगमन होने में सहायता मिलती है ।

३ आ. धूप दिखाना : धूप दिखाने से वास्तु के वायुमंडल में संग्रहित कष्टदायक शक्ति नष्ट होकर वहां सात्त्विकता उत्पन्न होती है ।

३ इ. गोमूत्र छिडकना : तुलसीपत्र से घर में गोमूत्र का छिडकाव करें । गोमूत्र एवं तुलसीपत्र में स्थित चैतन्य के कारण वास्तु में स्थित नकारात्मक स्पंदन नष्ट होते हैं ।

३ ई. नीम की धूनी दिखाना : नीम की धूनी दिखाने से वास्तु में स्थित अनिष्ट शक्तियों का कष्ट अल्प होता है ।

३ उ. घर में संतों के स्वरोंवाले भजन अथवा देवताओं का नामजप चलाना : इससे वास्तु में चैतन्य उत्पन्न होता है ।

३ ऊ. वास्तु में सनातन-निर्मित ‘वास्तुशुद्धि संच’ लगाना : सनातन संस्था ने अध्यात्मशास्त्रीय प्रयोगों के द्वारा शोध कर देवताओं की सात्त्विक नामजप-पट्टियां बनाई हैं । वास्तुशुद्धि हेतु उनका उपयोग किया जा सकता है । वास्तु की पूर्व दिशा की भीत (दीवार) पर श्रीराम, श्रीकृष्ण एवं हनुमानजी; पश्चिम दिशा की भीत पर श्री दुर्गादेवी, उत्तर दिशा की भीत पर शिवजी एवं दक्षिण दिशा की भीत पर भगवान दत्तात्रेय एवं श्री गणपति की नामजप-पट्टियां लगाएं । वास्तु में देवताओं की सात्त्विक नामजप-पट्टियां लगाने से वास्तु में स्थित कष्टदायक स्पंदन नष्ट होते हैं । उसके लिए वास्तु की सदोष रचना में परिवर्तन नहीं करना पडता अथवा वास्तु में किसी प्रकार की तोडफोड नहीं करनी पडती । घर की भीत आग्नेय, नैऋत्य इत्यादि उपदिशाओं में हों, तो चारों दीवारों को जोडनेवाली रस्सी बांधकर ऊपर बताए अनुसार उचित दिशा में संबंधित देवताओं की नामजप-पट्टियां लगाएं । नामजप-पट्टियां लगाने की पद्धति तथा वास्तुशुद्धि के सुलभ उपायों की जानकारी वास्तुशुद्धि संच के साथ दिए पत्रक में दी गई है ।

३ ऊ १. सनातन-निर्मित ‘वास्तुशुद्धि संच’ लगाने के उपरांत किए गए वैज्ञानिक परीक्षण में वास्तु में स्थित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होने की बात प्रमाणित !

‘सनातन-निर्मित नामजप-पट्टियों का संच लगाने के उपरांत वास्तु पर उसका क्या परिणाम होता है ?’, इसका वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करने हेतु ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’, इस उपकरण का उपयोग कर एक परीक्षण किया गया । ‘ऑरा स्कैनर’ की सहायता से व्यक्ति, वस्तु अथवा वास्तु में विद्यमान नकारात्मक एवं सकारात्मक ऊर्जा की (मीटर में) गणना की जा सकती है । इस परीक्षण में वास्तुदोष से ग्रस्त वास्तु में नामजप-पट्टियां लगाने से पूर्व तथा लगाने के उपरांत ‘यू.ए.एस.’ उपकरण के द्वारा वास्तुदोष की गणना की प्रविष्टियां की गईं ।

अ. परीक्षण में प्राप्त परिणाम

१. नामजप-पट्टियां लगाने से पूर्व : वास्तु में नकारात्मक ऊर्जा थी तथा उसका प्रभामंडल ३.१५ मीटर था । वास्तु में बिल्कुल भी सकारात्मक ऊर्जा नहीं थी ।

२. नामजप-पट्टियां लगाने के उपरांत : वास्तु में स्थित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हुई । वास्तु में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई तथा उसका प्रभामंडल १.५० मीटर था ।

आ. निष्कर्ष : सनातन-निर्मित नामजप-पट्टियां लगाने के उपरांत वास्तु में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर वहां सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई । देवताओं की ये नामजप-पट्टियां स्पंदनशास्त्र के अनुसार अध्ययन कर बनाई गई हैं । उसके कारण उनमें संबंधित देवता का १० प्रतिशत तत्त्व आया है । नामजप-पट्टियों से निकलनेवाली चैतन्यतरंगों के कारण वास्तु में सूक्ष्म छत तैयार होकर वास्तु की रक्षा होती है ।

४. वास्तु में उत्पन्न  सकारात्मक स्पंदनों को टिकाए रखने हेतु निम्न कृतियां करें !

अ. वास्तु की नियमित स्वच्छता करें ।

आ. वास्तु में स्थित समान व्यवस्थित ढंग से रखें ।

इ. प्रवेशद्वार के सामने सात्त्विक रंगोली बनाएं । साथही सूर्यास्त के समय भगवान के सामने दीप जलाकर स्तोत्र बोलें ।

५. आध्यात्मिक उपचारों के साथ साधना करें !

मनुष्य में विभिन्न स्वभावदोष (उदा. चिडचिडाहट, अव्यवस्थितता इत्यादि दोष) तथा अहं (उदा. अभिमान, अन्यों को नीचा दिखाना इत्यादि अहं के पहलू) होते
हैं । वास्तु में रहनेवाले परिवार में उनमें स्थित स्वभावदोषों के कारण विवाद होना, एक-दूसरे के साथ बात न जमना इत्यादि प्रसंग घटित होते हैं । इसके कारण वह वास्तु तमोगुणी (नकारात्मक) स्पंदनों से भारित होती है । ऐसा निरंतर होता रहा, तो उससे उस वास्तु में रहनेवाले सदस्यों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट हो सकता है । ऐसा न हो; इसके लिए आध्यात्मिक उपचारों के साथ प्रत्येक व्यक्ति को ‘साधना करना’ आवश्यक है । ‘साधना’ का अर्थ है ईश्वरप्राप्ति हेतु प्रतिदिन किए जानेवाले प्रयास ! ईश्वरप्राप्ति का अर्थ है ईश्वर के गुण स्वयं में लाना तथा स्वयं में विद्यमान स्वभावदोष एवं अहं दूर करना ! साधना करने से व्यक्ति में ईश्वरीय गुण उत्पन्न होकर उसके आचार-विचार सात्त्विक बन जाते हैं । उसके कारण परिजनों में सामंजस्य बनता है । संक्षेप में कहा जाए, तो साधना के कारण व्यक्ति में विद्यमान रज-तम का स्तर अल्प होकर उसमें चैतन्य उत्पन्न होता है । जैसे-जैसे उसकी साधना बढेगी, वैसे उसमें विद्यमान चैतन्य का वास्तु पर अच्छा परिणाम होकर वास्तु भी चैतन्यमय बनेगी ।

६. संतों द्वारा निवास किए गए वास्तु में चैतन्य उत्पन्न होना

संतों का मन, बुद्धि एवं अहं का लय होने से वे निर्विचार अवस्था में होते हैं । उनमें विद्यमान चैतन्य का परिणाम वे जिस वास्तु में रहते हैं, उसपर; उनकी नित्य उपयोग की वस्तुओं पर; साथ ही उनके संपर्क में आनेवाले व्यक्ति इत्यादि पर होता है । इसलिए संतों का आवास, उनकी तपोभूमि तथा उनके द्वारा उपयोगित वास्तु के जतन की परंपरा है । महाराष्ट्र के सज्जनगढ, अक्कलकोट, शिरडी जैसे कुछ स्थान संतों द्वारा उपयोगित वास्तु चैतन्य के स्रोत हैं । रामनाथी, गोवा के सनातन संस्था के आश्रम में एक संत द्वारा ६ महिने तक निवास किया गया वास्तु (कक्ष) अब नामजपादि उपचार के लिए उपयोग में लाया जाता है । वहां बैठकर नामजप करने से अल्पावधि में ही व्यक्ति का कष्ट दूर होता है । इससे साधना का महत्त्व ध्यान में आता है ।’

– श्री. राज कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.
(२६.१२.२०१९)

बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।