रोगियों में, विशेषकर स्त्री रोगियों में विचार करते रहना सामान्य दिखाई देता है । जिसे हम ‘ट्रेन ऑफ थॉटस्’ कहते हैं, यह विचार एक के पश्चात एक मन को नियंत्रण में लेते हैं तथा उससे काल्पनिक अथवा अतीत के विचारों में जीवन का बहुमूल्य समय व्यर्थ जाता है । इससे थकावट आकर निरुत्साह, शारीरिक बीमारियां तथा विचारों के कारण उत्पन्न होनेवाले अन्य लक्षण, साथ ही मन का स्वास्थ्य बिगडकर नींद पर होनेवाला परिणाम जैसे लक्षण दिखाई देते हैं ।

कुछ उपाय
१. जब अतीत की किसी घटना से आपके विचारों की शृंखला आरंभ होती है, तब समय रहते ही पुस्तक का वाचन अथवा अन्य किसी उचित कार्य में मन को व्यस्त रखें ।
२. ऐसे विचारों को रोकने में स्व-समुपदेशन पद्धति से अच्छा लाभ मिलता है ।
३. विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में मन पर कार्य करनेवाली वनस्पतियां, घी, स्नेह, नस्य आदि उपचारों से लाभ मिलता है ।
४. कष्टदायक घटना क्या थी (एक्टिवेटिंग ट्रिगर), उसे हम किस प्रकार देखते हैं (बिलिफ) तथा वर्तमान जीवन में उसका महत्त्व (कॉपिंग) इन ‘ए’-‘बी’-‘सी’ सूत्रों पर विश्लेषण करता है । हम वही विचार बार-बार करते रहते हैं तब हमें सूक्ष्म स्तर पर अन्यों से सहानुभूति मिले, इस दृष्टि से विचार तो नहीं कर रहे हैं ?, इसका भी परीक्षण किया जाना चाहिए ।
५. कभी-कभी हमारे अनेक प्रयासों के उपरांत भी सफलता नहीं मिलती; परंतु हमारे परिवार अथवा मित्रों में कुछ लोग ऐसे होते हैं, उनकी सहायता लेने से उसका अच्छा लाभ मिलता है ।
६. मन की शक्ति अथवा सहन करने की क्षमता अल्प होना वात प्रकोप से संलग्न होता है । वात की विशेष चिकित्सा, ध्यान, नियमित रूप से पैरों को तेल लगाना, स्निग्ध बस्ती आदि से मन की भागने की वृत्ति निश्चित ही अल्प होती है ।
७. शरीर की स्निग्धता अल्प होने पर मन की चंचलता निश्चित ही बढती है तथा उसका परिणाम विचारों एवं नींद, इन दोनों पर होता है । परिणामस्वरूप शरीर प्रभावित हो सकता है । इसके साथ ही यदि शरीर में गर्मी अधिक हो, तो और विभिन्न लक्षण उत्पन्न होते हैं तथा सहन करने की क्षमता अल्प होती है । उसके लिए उपाय करने से लाभ दिखाई पडता है ।
उपरोक्त सूत्र मार्गदर्शक हैं, जो संपूर्ण उपचार नहीं है । उसके लिए विशेषज्ञों से परामर्श लेना आवश्यक है !
– वैद्या (श्रीमती) स्वराली शेंड्ये, यशप्रभा आयुर्वेद, पुणे