राष्ट्रोद्धार के लिए लाखों युवाओं को तैयार करने वाले व्रतस्थ पू. संभाजीराव भिडेगुरुजी ! 

विशेष लेख

यु‍वकों के रक्त में ‘श्रीशिवाजी महाराज’ तथा ’श्रीसंभाजी महाराज’ यह देशमंत्र भरा !

पू. संभाजीराव भिडेगुरुजी

भारत में तथा विशेषकर महाराष्ट्र की भूमि पर ऐसे कुछ अलौकिक व्यक्तित्व हैं, जो अखंड रूप से राष्ट्र-धर्म के लिए कार्यरत हैं । ऐसे में से सांगली के एक व्यक्तित्व अर्थात श्री शिवप्रतिष्ठान, हिन्दुस्थान के संस्थापक पू. संभाजीराव भिडेगुरुजी हैं ! ८९वें वर्ष की आयु में भी अहोरात्र जिनका श्वास समाज में तथा विशेषकर युवाओं में श्रीशिवाजी तथा श्रीसंभाजी’ यह देशमंत्र भरने के लिए कार्यरत है, ऐसे एकमात्र पूज्य संभाजीराव भिडेगुरुजी ! पूज्य भिडेगुरुजी के मार्गदर्शन में ‘श्री शिवप्रतिष्ठान हिन्दुस्थान’ का कार्य पिछले ४० वर्षों से अधिक समय से लगातार चल रहा है । इसमें मुख्य रूप से गडकोट अभियान अर्थात धारातीर्थ यात्रा, श्री दुर्गामाता दौड़, ‘धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज बलिदानमास’ तथा ‘मूकपदयात्रा’, रायगड में ३२ मन सुवर्ण सिंहासन तथा खड़ा पहरा, शिवराज्याभिषेकदिन, ‘राजा श्रीशिवछत्रपति ग्रंथ’ पारायण, पुणे विश्वविद्यालय का ‘जिजामाता विश्वविद्यालय’ के रूप में नामकरण होने के लिए आंदोलन, इतिहास परिषद सहित अनेक उपक्रम राष्ट्रोद्धार, राष्ट्रोन्नति एवं राष्ट्र साक्षात्कार की भावनाएं निर्माण करने के लिए लगातार वर्ष भर चलते रहते हैं ।

छत्रपति शिवाजी महाराजजी द्वारा स्थापित हिन्दवी स्वराज्य के लिए जिसप्रकार मावळों (छत्रपति शिवाजी महाराजजी के सैनिकों को मावळे कहते थे) और धर्मयोद्धाओं द्वारा किया गया त्याग सर्वोच्च है, उसी प्रकार आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ तथा राष्ट्रप्रेमी नागरिक हिन्दू धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा के लिए ‘धर्मयोद्धा’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । निधर्मीवादी सरकार, साथ ही प्रशासन और पुलिस से होनेवाला कष्ट सहन करते हुए वे निःस्वार्थभाव से केवल राष्ट्र-धर्मरक्षा के लिए रात-दिन संघर्ष कर रहे हैं । आज राष्ट्रविरोधी शक्ति निधर्मीवादियों के समर्थन से बलवान होकर हिन्दूविरोधी, इसके साथ ही राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र करते हुए हमारे मन में ‘हिन्दुओं तथा राष्ट्र का आगे कैसे होगा ?’, ऐसी चिंता होती है । उस समय हिन्दुत्व तथा राष्ट्र की रक्षा के लिए लडनेवाले इन मावळों और धर्मयोद्धाओं के संघर्ष के उदाहरण पढने पर निश्चितरूप से हमारे मन की चिंता दूर होकर उत्साह निर्माण होगा । इसलिए हमने ऐसे धर्मयोद्धाओं तथा उनके हिन्दू धर्मरक्षा के संघर्ष की जानकारी देनेवाला ‘हिन्दुत्व के धर्मयोद्धा’ यह स्तंभ आरंभ किया है । इस माध्यम से भारत में सुराज्य निर्माण करने के लिए प्रयत्न करनेवालों की सभी को जानकारी होगी और उस दिशा में कार्य करने की प्रेरणा भी मिलेगी !

– संपादक

पू. भिडेगुरुजी का अलौकिक परिचय

पू. भिडेगुरुजी उच्च विद्याविभूषित हैं तथा उन्होंने अणुविज्ञान शाखा में ‘एम.एस.सी.’ किया है । पू. भिडेगुरुजी की विशेषता यह है कि वे नंगे पैर चलते हैं । साधारण कक्ष में रहते हैं, आज भी वे धोती पहनते हैं एवं उनके पास बहुत कम कपड़े हैं । शहर में यात्रा साइकिल से तथा अन्यत्र एस.टी. बस से करते हैं । वे प्रातः ४ बजे उठते हैं और कृष्णा नदी के घाट पर धारकरियों के साथ सूर्यनमस्कार, जोर, दंड बैठक करते हैं । ‘श्री शिवप्रतिष्ठान के धारकरी धर्मकार्य के लिए शरीर संपन्न होने ही चाहिए’, ऐसा उनका नियम होता है । पू. गुरुजी ने महाराष्ट्र के लगभग सभी गढ़ों को पैदल नापा है और उन्हें उनके नाम कंठस्थ हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पू. गुरुजी को मानते हैं । पू. गुरुजी की स्मरणशक्ति अत्यंत तीव्र है तथा वे एक बार मिले हुए व्यक्ति को कभी नहीं भूलते हैं । उनकी वाणी अत्यंत तेजस्वी एवं धीरोदात्त है तथा वे हमेशा प्रसिद्धि से चार हाथ दूर रहते हैं । यात्रा के लिए आने वालों को सहस्रों पहाड़, घाटियां पार कराकर तथा धूप, हवा, ठंड सहन करके किसी भी प्रकार का कष्ट अथवा चोट न लगते हुए वापस लेकर आना, यह केवल पूज्य गुरुजी ही कर सकते हैं ! पूज्य गुरुजी के ईश्वर तथा श्रीशिवछत्रपति पर श्रद्धा के कारण ही यह संभव हो सकता है ।

रामेश्वरम से लेकर हिमालय तक हिंदवी स्वराज्य निर्माण करना, यही अपना ध्येय ! – पू. भिडेगुरुजी

छत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रपति शिवाजी महाराज के पास अनेक मावळे प्राणार्पण करने के लिए तैयार थे । तानाजी मालुसरे जैसे अनेकों ने वह करके दिखाया । यह त्याग सीखने के लिए गढ़दुर्गों की गोद में यह शिवाजी विद्यापीठ हैं । यह विद्यापीठ धर्म तथा देश को तारने वाले हैं । इससे आसेतुहिमाचल (रामेश्वरम से लेकर हिमालय तक) हिंदवी स्वराज्य निर्माण करना, यही अपना ध्येय है !

जो छत्रपति शिवाजी महाराज को अनुभव करना चाहते हैं, उन्हें एक बार तो गढकोट अभियान अवश्य करना चाहिए ! – रावसाहेब देसाई, राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री शिवप्रतिष्ठान हिंदुस्तान

आज छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज के नाम पर अनेकों ने संगठन बानए हैं; पर संगठन युवाओं को जाति-जाति में अटका रहे हैं । सच्चा इतिहास न बताकर युवाओं को भटका रहे हैं । इसलिए जिन्हें खरे छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज को अनुभव करना है, उन्होंने एक बार तो गढकोट अभियान करना चाहिए ।


गढ़कोट अभियान में मार्गदर्शन करने वाले मान्यवर !

समर्थ संप्रदाय के पू. (स्वर्गीय) मारुतीबुवा रामदासीजी, पू. (स्वर्गीय) सुनील चिंचोलकरजी, भारताचार्य (प्रा.) पू. सु.ग.शेवडेजी, ज्येष्ठ इतिहास संशोधक शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे, ‘स्वदेशी आंदोलन’ के जनक दिवंगत राजीव दीक्षित, इतिहास संशोधक दिवंगत निनाद बेडेकर, ज्येष्ठ पत्रकार श्री. अरविंद विट्ठल कुलकर्णी, डॉ. सच्चिदानंद शेवडे, ‘पानीपत’कार श्री. विश्वास पाटील, स्वतंत्रता सेनानी साहित्य अभ्यासक श्री. दुर्गेश परुळकर, ‘हिन्दू राष्ट्र सेना’ संस्थापक श्री. धनंजय देसाई, श्री. दा.वि. कुलकर्णी, श्री. भा.ना. सरदेसाई, श्री. पंडितराव गोगटे, इतिहास व्याख्याता श्री. अमर अडके, ‘सुदर्शन’ समाचार वाहिनी के डॉ. सुरेश चव्हाणके, ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ के महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट, समिति के श्री. मनोज खाडये

उपस्थित राजनीतिक नेता : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, तत्कालीन गृहमंत्री दिवंगत रा.रा. पाटील, तत्कालीन वनमंत्री दिवंगत डॉ. पतंगराव कदम, तत्कालीन मनसे के विधायक दिवंगत रमेश वांजळे, तत्कालीन मंत्री विजय शिवतारे, तत्कालीन गृह राज्यमंत्री रणजित पाटील सहित अनेक विधायक, सांसद, मंत्री, तथा सर्वदलीय जनप्रतिनिधि


‘श्री शिवप्रतिष्ठान, हिन्दुस्थान’ के कुछ महत्वपूर्ण उपक्रम

१. देश तथा धर्म के उत्थान के लिए होने वाली धारातीर्थ यात्रा (गढ़कोट अभियान) !

युवाओं के रक्त में ‘श्रीशिवाजी महाराज’ तथा ‘श्रीसंभाजी महाराज’ देशमंत्र भरने के लिए, तथा छत्रपति शिवाजी की वृत्ति की युवा पीढ़ी निर्माण करने के लिए एवं युवा पीढ़ी को ध्येयवादी बनाने के लिए ‘श्री शिवप्रतिष्ठान, हिन्दुस्थान’ की ओर से प्रतिवर्ष धारातीर्थ यात्रा (गढ़कोट अभियान) आयोजित की जाती है ।

१ अ. अभियान का उद्देश्य और व्याप्ति : यह अभियान देश एवं धर्म के उत्थान के लिए होती है । देश का प्रत्येक युवा सैनिक वृत्ति का सिद्ध होना आवश्यक है । यह युवा श्री शिवाजी तथा श्री संभाजी के रक्त समूह का होना चाहिए । यह विद्या सीखने के लिए सह्याद्रि जैसा दूसरा विश्वविद्यालय नहीं है । ४ दिन मराठमोले युवा एकत्र आते हैं । सीमा पर भारतीय सैनिक जो स्थिति अनुभव करते हैं, वह परिस्थिति यह युवा ४ दिनों में अनुभव करते हैं । यह अभियान साधारणतः १३० से १६० किलोमीटर की दूरी की होता है । वर्ष २००६ से होने वाली यात्राओं ने २५ सहस्र धारकरियों का आंकड़ा पार कर लिया है । यात्रा प्रारंभ होने पर धारकरी को देव, देश, धर्म, छत्रपति शिवाजी महाराज के परे कुछ भी समझ में नहीं आता । गढ़ पर छत्रपति शिवराय जिस जिस स्थान पर गए, उस उस स्थान का पराक्रम स्मऱण करके वहां ध्येय मंत्र, प्रेरणा मंत्र के रूप में वह प्रसंग याद करने में प्रत्येक युवा मग्न होता है । आज महाराष्ट्र में अभियान के माध्यम से १०० से अधिक गढ़ युवाओं ने पैदल नापे हैं ।

१ आ. धारातीर्थ यात्राओं से शरीर में मराठी बाणा : अनेक मावळे तथा क्रांतिकारियों का रक्त गढ़किलों पर बहा है । यह गढ़किले छत्रपति शिवाजी महाराज तथा उनके मावळों ने हमारे लिए रखी ‘अनमोल धरोहर’ है । कठिन रास्तों से घाटियों, खाइयों से चलना; खुले में सोना, लगातार चलना, धूप-हवा की परवाह नहीं । इस व्रत से शरीर में मराठी बाणा आता है ।

१ इ. अभियान की साध्यता

१. यात्रा में जाने पर शारीरिक क्षमता की परीक्षा होती है । घाटियों, पहाड़ों, जंगल के पेड़ों, गढ़कोटों के कारण कार्यकर्ता कितना अंतर चला, इसका ध्यान भूल जाता है । ४ दिनों के लिए पर्याप्त सामग्री साथ ले जानी पड़ती है । ऐसा होने पर भी श्रीशिवछत्रपति के पदस्पर्श से पवित्र हुए गढ़ देखने के बाद भूख भूल जाती है । जो कार्यकर्ता एक यात्रा पूरी करता है, वह इस देश के किसी भी भाग में, बिना किसी भय के जा सकता है ।

२. ३ दिन ठंड, धूप, हवा का सामना करते हुए श्री शिवछत्रपति तथा उनके मावळे कैसे रहे, बढ़े, लड़े यह अनुभव किया जा सकता है । अनेक स्थानों पर मार्ग कठिन होते हैं, पानी भी नहीं मिलता; पर इसका ध्यान किसी को नहीं होता । इससे उनमें संगठित भाव निर्माण होने में सहायता होती है । कुछ सैन्य अधिकारियों ऐसे अभिप्राय व्यक्त किए कि ‘सेना से भी कठिन प्रशिक्षण इस अभियान में अनुभव करने को मिलता है ।’ पुस्तकों में पढने से अधिक अभियान के द्वारा गढ़ हृदय में समा जाते हैं ।

३. मोक्ष तथा समाधान के लिए अनेक लोग तीर्थयात्रा करते हैं । वारकरी भी पंढरी की वारी में निष्ठा से जाते हैं । ‘श्री शिवप्रतिष्ठान, हिंदुस्थान’ की वारी देश-धर्म के उत्थान के लिए होती है । देश का प्रत्येक युवा सैनिक वृत्ति का सिद्ध होना आवश्यक है । यह युवा श्री शिवाजी महाराज और श्री संभाजी महाराज के रक्त समूह का होना चाहिए ।

२. ३४ वर्ष अखंड रखे हुए ‘रायगड व्रत’ !

पूज्य गुरुजी के मार्गदर्शन में सांगली के धारकरी प्रतिदिन ३०० किलोमीटर दूरी तय करके रायगड की पूजा के लिए जा रहे हैं । धूप, हवा, वर्षा कुछ भी हो, १४ जनवरी १९९१ से यह पूजा चल रही है इसलिए वह ‘रायगड व्रत’ हो गई है । श्रीशिवछत्रपति के सिंहासन के स्थान की पूजा नहीं हो रही थी । नागरिकों का तन, मन, धन का त्याग हो, इस उद्देश्य से पूजा आरंभ हुई ।

पूजा के लिए दो दिनों के हार बस से संभालकर ले जाने पड़ते हैं । पिछले अनेक वर्षों से ‘श्री रायगड पुष्पसागर’ दुकान के मालिक श्री.जाधव बंधु केवल ३० रुपयों में ११ बड़े हार दे रहे हैं । आज पहुंचा हुआ धारकरी रायगड पर निवास करके कल की पूजा पूर्ण करके वापस आता है ।
वर्तमान में कुछ गढ़ों पर युवक व्यसन करना तथा अन्य गलत बाते करते हैं । इस व्रत से रायगड के पर्यटकों पर दबाव बना है । अनेकों ने अपना जन्मदिन, किसी का स्मृतिदिन, विशेष दिन रायगड पर जाने के लिए निश्चित किया है । इस व्रत से सांगलीकरों की पहचान ‘छत्रपति शिवराय के पुजारी’ ऐसी हो गई है । इस व्रत पर जाने से पहले, जाते समय तथा वहां पहुंचने पर धारकरी ‘राजा शिवछत्रपति’ इस ग्रंथ का वाचन करते हैं !
इस व्रत में १५ वर्ष के युवाओं से ८० वर्ष से अधिक आयु के लोगों का सहभाग है । अनेकों की अब दूसरी पीढ़ियां भी इस व्रत में सहभागी हुई हैं ।

३. धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज बलिदानमास


छत्रपति संभाजी महाराज ने हिन्दू धर्म के लिए बलिदान दिया । औरंगजेब ने जिस दिन से पकडा उस दिन से छत्रपति संभाजी महाराज ने अन्न तथा जल त्याग दिया था एवं एक मास कठोर संघर्ष किया । उनके बलिदान की स्मृति के रूप में ‘श्री शिवप्रतिष्ठान, हिन्दुस्थान’ की ओर से प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से फाल्गुन अमावस्या इस अवधि में ‘धर्मवीर बलिदानमास’ मनाया जाता है । फाल्गुन अमावस्या को छत्रपति संभाजी महाराज के शरीर के टुकड़े करके उन्हें मार दिया गया । उस समय उनकी अंतिम यात्रा नहीं निकल सकी । उनकी न निकली हुई अंतिम यात्रा की स्मृति के रूप में फाल्गुन अमावस्या को मूकपदयात्रा निकालकर छत्रपति संभाजी महाराज की प्रतीकात्मक चिता को अग्नि दी जाती है । इस बलिदान की स्मृति में धारकरी एक मास पैरों में चप्पल न पहनना, मुंडन करना, दूरदर्शन न देखना सहित प्रिय वस्तु का त्याग करते हैं ।

४. दुर्गामाता दौड़

दुर्गामाता दौड़

छत्रपति शिवाजी महाराज के रक्त की ज्वाला, जुझारू वृत्ति के पू. गुरुजी के जीवन में प्रतिक्षण अनुभव होती है । उनके रक्त में देश, धर्म के प्रति उत्साह तथा प्रेम दौड़ में दिखाई देता है । वही वृत्ति युवा पीढ़ी में निर्माण होने के लिए श्री दुर्गामाता दौड़ का आयोजन किया जाता है । प्रतिदिन प्रातः ५.३० बजे यह दौड़ प्रारंभ होती है । नवरात्रि के समय हिन्दू जिस प्रकार व्यक्तिगत स्तर पर नवरात्र मनाता है, उसी प्रकार ‘देव, देश एवं धर्म की रक्षा के लिए सामाजिक नवरात्र मनाने चाहिए अर्थात ‘श्री दुर्गामाता दौड़’ है । इस दौड़ में अग्रभाग में भगवा ध्वज होता है । शिवतीर्थ से प्रथम धारकरी माधवनगर रास्ते पर स्थित श्रीदुर्गामाता मंदिर तक दौड़ते हुए जाते हैं । यहां श्री दुर्गामाता की आरती होती है । इसके बाद श्री दुर्गामाता का आशीर्वाद लेकर विभिन्न मार्गों से धारकरी विभिन्न स्फूर्ति गीत गाते जाते हैं । यह दौड़ केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, अपितु उसका गोवा, कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में भी विस्तार हुआ है । पू. भिडेगुरुजी के संपर्क में आने के बाद युवाओं में हुए परिवर्तन

पू. भिडेगुरुजी के संपर्क में आने से पहले अनेक युवाओं को देव, देश, धर्म के प्रति जागरूकता नहीं थी । मंडल के नाम पर कार्यकर्ताओं को मौजमस्ति करना इतना ही पता होता था; पर पू. गुरुजी के सहवास से यह सब बदल जाता है । ‘प्रत्येक युवा को देश के कार्य हेतु समय देना चाहिए । अपना संसार करते हुए देश का संसार कैसे करना चाहिए’, यह शिक्षा पू. गुरुजी सिखाते हैं । इसलिए सहस्रों धारकरियों का जीवन कृतार्थ हो गया है ।