विशेष स्तंभ
डॉ. एस्.आर्. लीला कर्नाटक विधान परिषद की पूर्व सदस्या, भाजपा नेत्री, संस्कृत की विद्वान, प्रसिद्ध कन्नड लेखिका, स्तंभलेखिका, शिक्षा विशेषज्ञ, संस्कृत नाटक एवं फिल्म निर्देशिका, साथ ही यू ट्यूब चैनल ‘लीला जाल’ की निर्देशक हैं । उन्होंने साहित्य, व्याख्यान एवं अपने सामाजिक कार्य के द्वारा भारतीय संस्कृति, हिन्दू धर्म एवं मंदिरों की रक्षा एवं संवर्धन के लिए प्रेरणादायक कार्य किया है ।

छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दवी स्वराज हेतु जिस प्रकार उनके सैनिकों एवं सेनापतियों का त्याग सर्वोच्च है, उस प्रकार आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रप्रेमी नागरिक हिन्दू धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा हेतु ‘सैनिक’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । धर्मनिरपेक्षतावादी सरकरों, साथ ही प्रशासन एवं पुलिस के द्वारा होनेवाला उत्पीडन सहन करते हुए वे निस्वार्थ भावना से दिनरात संघर्ष कर रहे हैं । वर्तमान समय में राष्ट्रविरोधी शक्तियां धर्मनिरपेक्षतावादियों के समर्थन से बलवान होकर जहां हिन्दूविरोधी तथा राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र रच रहे हैं, वहां हमारे मन में ‘आगे जाकर हिन्दुओं का तथा इस राष्ट्र का क्या होगा ?’, इसकी चिंता होती है । ऐसी स्थिति में हमने यदि हिन्दुत्व के लिए तथा राष्ट्र की रक्षा हेतु लडनेवाले इन सैनिकों के संघर्ष के उदाहरण पढे, तो निश्चित ही हमारे मन की चिंता दूर होकर उत्साह उत्पन्न होगा । इसीलिए हमने ऐसे सैनिकों की तथा हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु उनके संघर्ष की जानकारी करानेवाला ‘हिन्दुत्व के सैनिक’ स्तंभ आरंभ किया है । इस माध्यम से भारत में सुराज्य की स्थापना करने हेतु प्रयास करनेवालों की सभी को जानकारी मिलेगी तथा उस परिप्रेक्ष्य में कार्य करने की प्रेरणा भी मिलेगी ! – संपादक
१. शिक्षा
डॉ. लीला का जन्म १७ जनवरी १९५० को कर्नाटक के कोलार जिले के मालूर तहसील में स्थित संपंगेरे गांव में हुआ । उन्होंने संस्कृत में एम्.ए. एम्.फील एवं पीएच. डी की उपाधियां प्राप्त की । एन्.एम.के.आर्.वी. महिला विद्यालय की संस्कृत विभाग की प्रमुख प्राध्यापिका के रूप में वे सेवानिवृत्त हुईं, साथ ही केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा विभाग की ‘भारतीय तत्त्वज्ञान शोध परिषद’ एवं ‘सांस्कृतिक संसाधन एवं प्रशिक्षण केंद्र’ इन समितियों की सदस्य के रूप में भी उन्होंने कार्य किया है ।
२. साहित्य क्षेत्र में योगदान

अ. डॉ. एस्.आर्. लीला ने संस्कृत एवं कन्नड साहित्य के माध्यम से भारतीय मूल्यों पर प्रकाश डाला है । उन्होंने कन्नड, संस्कृत एवं अंग्रेजी इन भाषाओं में अनेक उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना की है । उनके लेखन में विद्यमान हिन्दू धर्म के बहुमूल्य सिद्धांत, संस्कृति एवं परंपरा के प्रवाह पाठकों का मन प्रफुल्लित करते हैं । देश-विदेशों में संपन्न विभिन्न संस्कृत सम्मेलनों में उन्होंने भारतीय परंपरा एवं इतिहास के विषयों पर निबंध प्रस्तुत किए हैं ।
आ. ‘वीर सावरकर संघ’ के न्यासी के रूप में उन्होंने सावरकर साहित्य के १० खंडों के प्रकाशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इसके साथ ही वीर सावरकर के ‘भारतीय इतिहास के छः स्वर्णिम पन्ने’ तथा ‘हिन्दूपदपातशाही’ इन प्रसिद्ध ग्रंथों का कन्नड में भाषांतर किया है ।
इ. डॉ. आंबेडकर के ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ इस अंग्रेजी पुस्तक का ‘हिन्दुओं काे हिन्दुस्थान, जबकि मुसलमानों को पाकिस्तान’ इस शीर्षक के तले कन्नड में भाषांतर किया है । इसमें भारत के विभाजन के समय हुईं दुर्भाग्यशाली घटनाएं तथा उस समय के ‘लोकसमुदाय विनिमय’ प्रस्ताव के विषय में गहन जानकारी दी है । इस भाषांतर के द्वारा उन्होंने डॉ. आंबेडकर की दूरदृष्टि का परिचय कराया है । डॉ. एस्.आर्. लीला कहती हैं, ‘भारतीयों को दूरदृष्टिवाले डॉ. आंबेडकर को नमन करना चाहिए ।’
३. संस्कृत भाषा में फिल्म एवं नाटक की रचना
उन्होंने संस्कृत भाषा में फिल्म एवं नाटक की रचना, निर्मिति एवं निर्देशन किया है । उन्होंने महर्षि पाणिनी पर आधारित फिल्म बनाकर पहली बार संस्कृत व्याकरण के विशेषज्ञों के माध्यम से प्रस्तुत किया । वर्तमान समय में वे कमल पुष्प के महत्त्व पर आधारित ‘पद्मगंधी’ यह फिल्म बना रही हैं, जो बहुत शीघ्र प्रदर्शित होगी ।
४. सामाजिक एवं धार्मिक कार्य
डॉ. लीला ने हिन्दू धर्म के गहन अध्ययन के लिए तथा उसके संवर्धन के लिए, साथ ही प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित किया है । उन्होंने हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में भाग लेकर साम्यवादियों के वैचारिक आक्रमणों का विषय प्रभावी पद्धति से रखा है । विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों के द्वारा वे ‘सनातन धर्म संरक्षण’ विषय पर जनजागरण कर रही हैं । उन्होंने उनके पैतृक गांव अर्थात संपंगेरे में विधायक विकास कोष एवं स्वयं के खर्चे से एक सरकारी विद्यालय का निर्माण किया है । उन्होंने उनकी संस्था के माध्यम से समाज में उपेक्षित कुछ व्यक्तियों को उनकी माता के नाम से ‘चुडामणी’ पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया ।
५. सामाजिक माध्यमों के माध्यम से धर्मजागृति
सामाजिक माध्यमों के माध्यम से धर्मजागृति करने में उनका बहुमूल्य योगदान रहा है । अपने यू ट्यूब चैनल ‘लीला जाल’ के द्वारा वे धार्मिक एवं सामाजिक उद्बोधन का कार्य कर रही हैं । सहस्रों लोग इस चैनल के सदस्य हैं । विशेषरूप से वे हिन्दूविरोधी घटनाओं के प्रति निरंतर जागरूकता लाने का निरंतर कार्य कर रही हैं ।
६. राजनीतिक जीवन
कर्नाटक विधान परिषद की पूर्व सदस्य तथा भाजपा नेत्री के रूप में डॉ. लीला ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए विद्यालय, भवन, बिजली, पानी आदि मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने पर बल दिया है ।
७. डॉ. एस्.आर्. लीला ने ‘आर्यभट’ पुरस्कारसहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ।
डॉ. एस्.आर्. लीला के कुछ स्पष्टतापूर्ण वक्तव्य
अ. साम्यवादी विचारधारा राष्ट्रहित के लिए हानिकारक : साम्यवादियों की नकारात्मक विचारधारा के प्रभाव के कारण देश में हत्याकांड हुए । कार्ल मार्क्स के ‘कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ में समाहित (साम्यवादी घोषणापत्र में समाहित) विचारों में संलिप्त लोग भारत में साम्यवाद ले आए । साम्यवादी विचारधारा राष्ट्रहित के लिए हानिकारक है । वर्ष १९८० के दशक में अनेक देशों में प्रचालित साम्यवाद समाप्त हुआ । रूस में चल रहा साम्यवाद भी समाप्त हुआ । चीन ने भले ही साम्यवाद पर आधारित राजतंत्र चला रखा हो, तब भी उसने अपनी मूल संस्कृति संजोई है । साम्यवादी विचारधारा भारतीय आचार-विचारों के विरुद्ध है ।
आ. रामायण की सीख : मुसलमान मूलरूप से बहुत आक्रामक हैं । हिन्दू-मुसलमानों का एकत्र रहना असंभव है । ‘भारत का विभाजन करना है, तो सभी मुसलमान पाकिस्तान चले जाएं तथा हिन्दुस्थान हिन्दुओं का बना रहे’, ऐसा मत डॉ. आंबेडकर ने व्यक्त किया था । हमारे साथ सद्भाव से रहनेवाले व्यक्ति के साथ ही हमें सद्भावपूर्ण पद्धति से व्यवहार करना चाहिए । दुष्ट प्रवृत्ति से आचरण करनेवालों से सज्जनों की रक्षा करनी ही चाहिए, यह रामायण की सीख है ।
इ. वीर सावरकर द्वारा हिन्दुओं के दृष्टिकोण से लिखे इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक ! : वीर विनायक दामोदर सावरकर का व्यक्तित्व महान है । उनका जीवन एवं कार्य स्वतंत्रता संग्राम के काल का है तथा वे इतिहासकार भी हैं । विदेशी आक्रांताओं ने अनेक बार भारत पर आक्रमण किया । आक्रांताओं का कार्यकाल अत्यंत क्रूरतापूर्ण था । वे जंगली थे । भारतीयों को इन आक्रांताओं से बहुत उत्पीडन सहना पडा । आक्रांताओं ने भी इतिहास लिखा । जब वे इतिहास लिखते हैं, तब वे स्वाभाविक ही उनके दृष्टिकोण से लिखते हैं; परंतु केवल वीर सावरकर ने ही हिन्दुओं के दृष्टिकोण से इतिहास लिखा । इसलिए उनकी पुस्तकों का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है ।
ई. झूठी कहानियों के विरुद्ध की लडाई ! : वर्तमान समय में ‘नैरेटिव’ (झूठी कहानी) शब्द बहुत चर्चा में रहा है तथा सर्वत्र प्रचलित है । ‘नैरेटिव’ एक आधुनिक विदेशी शब्द है । विश्व की सर्व विचित्रता, विकृतियां तथा मानसिक रोगों के लिए वही की अंग्रेजी भाषा में ऐसे शब्द तैयार किए जाते हैं । ‘नैरेटिव’ के माध्यम से लोगों के मन पर कोई झूठा विचार, भावना, संवाद अथवा वक्तव्य अंकित करने का प्रयास किया जाता है । वह एक कपोलकल्पित कहानी होती है तथा जानबूझकर तैयार की जाती है । बुद्धिजीवी लोग यह ‘नैरेटिव’ तैयार करते हैं तथा अन्य लोग उसे प्रसारित करते हैं । आगे जाकर धीरे-धीरे यह ‘नैरेटिव’ बढता जाता है तथा वह लोगों के मन में भ्रम उत्पन्न करता है । अंततः लोग उसी को सत्य मानने लगते हैं । एक कहावत है, ‘झूठ बोलो; परंतु ठोककर बोलो’ । ऐसे ‘नैरेटिव’में समाया हुआ विद्वेष तथा संकट उजागर कर उसका विरोध नहीं किया गया, तो देश का विनाश निश्चित है ।
डॉ. एस्.आर्. लीला द्वारा सनातन संस्था के विषय में व्यक्त गौरवोद्गार
हिन्दू धर्म के कल्याण एवं संवर्धन में सनातन संस्था का बडा योगदान !

अत्यंत उत्कृष्ट पद्धति से कार्य करनेवाली सनातन संस्था का मैं आभार व्यक्त करती हूं । सनातन संस्था बहुत अच्छा कार्य कर रही है । वैसे देखा जाए, तो सनातन संस्था क्या है ? सनातन अर्थात शाश्वत; इसीलिए यह संस्था हिन्दू धर्म के शाश्वत स्वरूप की रक्षा हेतु शाश्वत रूप में कार्य कर रही है । सनातन धर्म इस देश का अर्थात भारत का अर्थात हिन्दुस्थान का धर्म है; परंतु सनातन धर्म का सम्मान करनेवालों की संख्या बहुत अल्प है । सनातन धर्म को माननेवाले लोग बडी संख्या में हैं, यह ज्ञात होते हुए भी वास्तव में इस धर्म को समझनेवाले, उसकी प्रशंसा करनेवाले तथा उसकी पूजा करनेवाले लोग बहुत अल्प हैं । उसके कारण सनातन धर्म की रक्षा एवं उन्नति हेतु जिन्होंने स्वयं का जीवन पूर्णतया समर्पित किया है तथा सनातन धर्म की उन्नति हेतु जो लोग प्रयास कर रहे हैं; उनका मन से अभिनंदन करना ही होगा तथा उन सभी सनातन लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी ही होगी ।
आज हम सभी यह देख रहे हैं कि अनेक लोग सनातन धर्म पर आघात कर रहे हैं । ऐसी स्थिति में सनातन संस्था ने धर्मरक्षा के कार्य को अपना कार्य मानकर स्वयं को उस कार्य से पूर्णत: एकरूप कर लिया है । वास्तव में देखा जाए, तो सनातन धर्म बहुत ही सुंदर विचारधारावाला धर्म है । ‘यह धर्म केवल अधिकारों की नहीं, अपितु अपने कर्तव्यों की भी बात करता है ।’ सनातन संस्था अपने आचरण से, प्रकाशनों से तथा साधकों से यह करवा ले रहा है । अनेक लोग अपनी-अपनी क्षमता के अनुरूप सनातन धर्म के कल्याण एवं रक्षा के लिए अपना योगदान दे रहे हैं । इसलिए सनातन धर्म की रक्षा हेतु प्रयास करनेवाली सनातन संस्था का अभिनंदन करना चाहिए, ऐसा मुझे मन से लगता है तथा हम सभी को संस्था के इस महान कार्य का सम्मान करना चाहिए ।