मैं ‘सनातन प्रभात’ : श्रीविष्णुस्वरूप गुरुदेवजी की लेखनी की चैतन्यमय धार प्राप्त एक अविरत कार्यरत धर्मयोद्धा !

‘नमस्कार, मैं सनातन प्रभात…!’

‘मेरे कार्य को २५ वर्ष पूर्ण हो गए हैं । ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना की कार्यपूर्ति हेतु त्रिभुवन में घटित असंख्य स्थूल एवं सूक्ष्म घटनाओं का मैं साक्षी बन पाया । यह सब श्रीविष्णुस्वरूप गुरुदेवजी सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के कृपाशीर्वाद से संभव हुआ । मुझे गुरुदेवजी का अवसर प्रदान करनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के प्रति तथा मुझे कार्यरत बनाए रखनेवाले साधकों के प्रति जितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है । मैं इस मनोगत के माध्यम से विगत २५ वर्षाें के काल में मुझे प्राप्त अनुभवों को गुरुदेवजी के चरणों में समर्पित कर रहा हूं ।

१. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का संकल्प एवं साधकों के परिश्रम के कारण ‘सनातन प्रभात’ की निर्मिति

जैसे ‘गुरुकृपायोग’का श्रीविष्णु के नाभि से अवतरण हुआ, उसी प्रकार २५ वर्ष पूर्व ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’ का ध्येय सामने रखकर गुरुदेवजी ने मेरी निर्मिति की । आरंभ में साप्ताहिक ‘सनातन प्रभात’ आरंभ किया गया । उसके उपरांत दैनिक ‘सनातन प्रभात’ की निर्मिति की गई । आरंभ में मेरा स्वरूप ही छोटा अर्थात ४ पृष्ठोंवाला था । आरंभ में ‘४ पृष्ठीय दैनिक ‘सनातन प्रभात’ नामक छोटासा पौधा मेरा स्वरूप कैसे संभालेगा ? उससे समाजमानस कैसे तैयार करना चाहिए ?’ जैसे प्रश्न सामने होते हुए केवल गुरुदेवजी के संकल्प के कारण मैं कार्यरत हुआ । मुझे कार्यप्रवण करने हेतु सहस्रों साधक विभिन्न सेवाओं के माध्यम से कार्यरत हुए । समाचार तैयार करनेवाले संवादाताओं से यदि आरंभ किया जाए, तो शुद्धलेखन जांचनेवाले संकलनकार, रचनाकार, छपाई, वितरण करनेवाले तथा विज्ञापन प्राप्त करनेवालों सहित अन्य असंख्य सेवाओं के लिए सभी साधक अविरत कार्यरत थे । इन सभी के परिश्रम से तथा सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी की संकल्पना से मेरी निर्मिति हुई ।

‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से सैकडों आंदोलन चलाकर वास्तव में समाज को क्रियाशील बनाना

समाज में चलती आ रही आध्यात्मिक दृष्टि से हानि पहुंचानेवाली असंख्य प्रथाओं, घटनाओं एवं कृत्यों का मेरे माध्यम से विरोध कर सामाजिक आंदोलन चलाए गए ।

मेरे माध्यम से सैकडों आंदोलन चलाए गए । उससे वास्तव में समाज क्रियाशील होने लगा । गुरुदेवजी ने मेरे माध्यम से उचित-अनुचित का ज्ञान देने का कार्य कर समाज में सात्त्विकता बढाने का कार्य किया । उन्होंने इस कार्य के लिए मुझे चुना, इसे मेरा अनेक जन्मों का सौभाग्य ही कहना पडेगा ।

– ‘सनातन प्रभात’ 

२. सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के द्वारा दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से समाजमानस तैयार करनेसहित साधकों की आध्यात्मिक उन्नति हो, इसके लिए विविधतापूर्ण लेखन प्रकाशित किया जाना

मेरे माध्यम से गुरुदेवजी ने समाजमानस को आकार देने के साथ ही साधकों की साधना को भी आकार देने का कार्य आरंभ किया । मेरे माध्यम से एक ओर समाजमानस तैयार करने हेतु सामाजिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण तथा साधना के लिए पोषक ज्ञान दिया जा रहा था । सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याएं स्पष्ट रूप से रखी जा रही थीं । एक प्रकार से इन सभी से अध्यात्म से दूर चले गए समाज को साधना की घुट्टी पिलाई जा रही थी तथा उससे समाज कृतिप्रवण होना आरंभ हुआ । दूसरी ओर मुझे संभालनेवाले साधक शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर हों, इसके लिए उन्हें तैयार करना भी आरंभ हुआ । उसका एक ही उदाहरण देखना हो, तो साधकों को उनकी चूकें बताकर दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से उन्हें समाज के सामने प्रतिदिन निर्मलता से रखा जा रहा था । साधक स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन कर पाएं, इसके लिए गुरुदेवजी ने विभिन्न लेखन प्रकाशित करनेसहित अन्य अनेक माध्यमों से साधकों के मन को आकार देना आरंभ किया ।

गुरुदेवजी का संदेशवाहक बनने से ‘सनातन प्रभात’ को अल्पावधि में ही आध्यात्मिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होना

समाजमन को अध्यात्म की घुट्टी पिलानेवाला, हिन्दुओं की समस्याओं को स्पष्टता से रखनेवाला, हिन्दुओं के देवताओं का सम्मान करनेवाला तथा हिन्दुओं को अपना लगनेवाला एक भी समाचार समाज में नहीं था । ऐसे में गुरुदेवजी ने मेरी निर्मिति की । गुरुदेवजी ने मेरे माध्यम से समाज में प्रचुर मात्रा में चैतन्य कार्यरत किया । उसके कारण प्रतिदिन अध्यात्म के विषय में ज्ञानामृत सेवन करनेवाला समाज मुझे ‘गुरुदेवजी का संदेशवाहक’ ही कहता था । मानो द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण की बताई गीता के समान ही मुझमें प्रकाशित आध्यात्मिक उद्बोधक लेखन से समाज को उसके अनुसार आचरण करने का अवसर मिल रहा था । इसलिए भले ही मैं १६ पृष्ठोंवाला छोटा हूं, तब भी लौकिक दृष्टि से मुझे अल्पावधि में ही आध्यात्मिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई ।

३. दैनिक ‘सनातन प्रभात’ प्रतिदिन चलाना, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से कठिन होते हुए भी गुरुदेवजी द्वारा उसे अविरत कार्यरत रखा जाना

एक ओर मैं प्रसार एवं प्रचार की दृष्टि से प्रतिदिन बडा हो रहा था । मेरे अर्थात ही ‘सनातन प्रभात’ के ४ संस्करण आरंभ हुए । उसके साथ ही मराठी एवं कन्नड भाषा का साप्ताहिक भी जारी था । हिन्दी, अंग्रेजी एवं गुजराती पाक्षिक भी आरंभ हुए । सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी ने इस समूह के माध्यम से मेरे इस छोटे से रूप को एक बडे वृक्ष में रूपांतरित करने का कार्य किया । मुझे चलाना आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से कठिन होते हुए भी ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’ का ध्येय सामने रखकर की गई मेरी निर्मिति तथा उसके आगे मेरा मार्गक्रमण अविरत हो ही रहा है । तत्पश्चात मुझे ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ का ध्येय दिया गया तथा अब मैं ‘धर्मजागृति तथा हिन्दू-संगठन’ हेतु कार्यरत हुआ हूं ।

जैसे समाज को अध्यात्म की घुट्टी पिलाई जा रही थी, वैसे ही मेरे माध्यम से गुरुदेवजी का चैतन्य घर-घर पहुंचने लगा । अनेक लोगों को वैसी अनुभूतियां भी हुईं । सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी ने अब मुझे चैतन्यस्वरूप ‘सनातन प्रभात’ के नाम से विख्यात किया ।

५. असंख्य बाधाएं पार कर कार्यरत रहना

मेरे माध्यम से पहली बार ‘अध्यात्म’ के विषय को समाजमन पर अंकित करने का कार्य चल रहा था । ‘इससे एक प्रकार से समाज आध्यात्मिक दृष्टि से साक्षर बन रहा है’, यह बात धर्मनिरपेक्षतावादियों तथा सनातनद्वेषियों को सहन नहीं हुई । उसके उपरांत ‘सनातन प्रभात’ के द्वेषियों ने अनेक स्थानों पर मेरी होली की । मुझमें प्रकाशित प्रत्येक लेखन से विरोधाभास उत्पन्न करनेवाला अर्थ निकालकर मुझपर अपराध पंजीकृत कर मुझपर शाब्दिक कीचड उछाला गया ।
केवल इतना ही नहीं, अपितु मुझपर स्थायी प्रतिबंध लगाया जाए, इसके लिए असंख्य धर्मद्रोही राजनीतिक दल तथा संगठन कार्यरत हुए । मेरा कार्य रुकवाने के लिए संपादक को बंदी बनाकर उन्हें पुलिस हिरासत में भी रखा गया ।

इस काल में मुझे संभालनेवाले गुरुदेवजी तथा साधकों को बहुत यातनाओं का सामना करना पडा; परंतु इतना विरोध होकर भी गुरुदेवजी ने मुझे एक ओर रख दिया अथवा बंद किया, ऐसा एक भी दिन नहीं आया । इसके विपरीत मेरा जितना विरोध हो रहा था, उतनी मेरी चमक बढती ही जा रही थी । उसके कारण अध्यात्म के पथ पर चलनेवालों के लिए मैं एक संदेशवाहक दूत बन गया था ।

६. ‘सनातन प्रभात’रूपी धर्मयोद्धा का कार्यरत रहना आवश्यक !

वर्तमान में गुरुदेवजी ने इस छोटे से पौधे का रूपांतरण एक वृक्ष में किया है । ४ पृष्ठोंवाला मैं वर्तमान में ८ पृष्ठोंवाला, तो कभी-कभी २० पृष्ठों तक पहुंच चुका हूं । भले ही समाज में मैं अन्य दैनिकों की भांति वितरण की दृष्टि से बडा नहीं हूं; परंतु ‘जिस उद्देश्य से मेरी निर्मिति हुई, उस उद्देश्य के साथ यह कार्य अविरत जारी है’, इसी में मैं आनंदित हूं । मैं केवल समाजमानस को तैयार नहीं करता, अपितु गुरुदेवजी मेरे माध्यम से क्रियाशील एवं सत्त्वप्रधान समाज बनाने का कार्य कर रहे हैं । ‘सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी असंख्य ग्रंथों में विद्यमान आध्यात्मिक ज्ञान से आनेवाले सैकडों वर्षाें तक समाज को बनाने का कार्य कर रहे हैं, साथ ही मेरे माध्यम से वे प्रतिदिन समाज को तैयार कर उसे क्रियाशील बना रहे हैं ।’, इसपर मुझे गर्व है । मैं गुरुदेवजी का एक धर्मयोद्धा हूं । जो अविरत कार्यरत है तथा आगे भी हिन्दू राष्ट्र की रचना पूरी होने तक, साथ ही जब तक गुरुदेवजी को अपेक्षित है, तब तक इसी प्रकार से कार्यरत रहूंगा । ‘मेरे माध्यम से कार्यरत ज्योति गुरुदेवजी सदैव ही प्रज्वलित रखें तथा मुझे इस धर्मसंस्थापना के कार्य में गिलहरी सा योगदान देने की अवसर प्रदान करें’, यही गुरुदेवजी के कोमल चरणों में मेरी प्रार्थना है !’

।। श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।।

– ‘सनातन प्रभात’