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त्रिशूर (केरल) – यहां के प्रसिद्ध गुरुवायूर मंदिर के प्रबंधन बोर्ड ने भक्तों से तुलसी प्रसाद न चढ़ाने को कहा है। बोर्ड ने कहा कि भक्तों द्वारा लाया गया तुलसी का पूजा में उपयोगी नहीं होता है और इसमें अधिक रसायन होते हैं, इसलिए इसे नहीं चढ़ाया जाना चाहिए । मंदिर प्रबंधन ने भक्तों को तुलसी के स्थान पर कमल के फूल लेकर मंदिर में आने की सलाह दी है। मंदिर बोर्ड के इस निर्णय पर विवाद खड़ा हो गया है । श्रद्धालुओं ने क्रोध जताया है कि बोर्ड उनके अधिकारों का हनन कर रहा है। इस मंडल के मुखिया भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) के नेता वी.के. विजयन हैं ।
Devotees should not offer the Tulasi to Bhagwan Vishnu! – Guruvayur Temple Board
Why is the board not trying to provide a Tulasi free from chemicals ? It would be inappropriate to make such an opposition in the name of chemicals alone. Hindus should oppose this in a legal manner… pic.twitter.com/c52q65B3vJ
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) November 5, 2024
१. मंदिर बोर्ड ने हाल ही में भक्तों को बाहर से तुलसी खरीदकर मंदिर के अंदर लाने की सलाह दी है। भक्त इस तुलसी को भगवान गुरुवायुर (भगवान विष्णु का एक रूप) को चढ़ाते थे। ऐसा कहा जाता है कि कुछ परिवार पीढ़ियों से गुरुवायूर मंदिर में पूजा के फूल या माला लाने का काम करते आ रहे हैं।
२. ‘बाहर से लाई गई तुलसी का उपयोग माला पहनने या देव पूजा में नहीं किया जाता। इस तुलसी को एक निजी संस्था को दे दिया जाता है, जो फिर इससे कई अन्य उत्पाद बनाती है। बोर्ड ने कहा, भक्तों को आयातित तुलसी लाने से बचना चाहिए क्योंकि इसमें कीटनाशक की मात्रा अधिक होती है।
३. मंदिर के कुछ कर्मचारियों ने मीडिया को बताया कि आयातित तुलसी से उनके हाथों में खुजली होती है और एलर्जी होती है।
४. एरिया डिफेंस कमेटी के सचिव एम. बिजेश ने कहा कि यदि मंडल वाहन और सोने के आभूषण जैसी वस्तुएं स्वीकार कर सकता है, जिनका उपयोग पूजा के लिए नहीं किया जा सकता है, तो उन्हें भक्तों को देवता को कुछ प्रिय वस्तुएं चढ़ाने से नहीं रोकना चाहिए। तुलसी चढ़ाने से मना करने के स्थान पर इसका कोई अच्छा उपयोग क्यों न खोजा जाए ?
५. इससे पहले मई २०२४ में केरल के मंदिरों में अरली के फूल पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस फूल के कारण २४ साल की एक नर्स की मौत हो गई। इसके बाद २ बड़े मंदिर बोर्डों ने इस फूल को मंदिरों में लाने पर प्रतिबंध लगा दिया था ।
६. कहा जाता है कि गुरुवायूर मंदिर का निर्माण १४ वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर में भगवान विष्णु की चार भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित है। इस रूप को ‘गुरुवायुर’ कहा जाता है।
संपादकीय भूमिका
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