‘जर्मनी की समाचारवाहिनी ‘डी.डब्ल्यू.’ ने भारत के कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुई घटना तथा उसकी निंदा को लेकर तीसरी बार समाचार प्रसारित किया, मानो विश्व में अन्य कहीं भी ऐसी घटनाएं होती ही नहीं हैं ! इसमें भारतीय प्रसारमाध्यम उनकी सहायता कर रहे हैं । उसके कारण ये प्रसारमाध्यम भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से भारत का अपमान करने हेतु चलाए जा रहे ‘टूलकिट’ के (विरोध हेतु प्रणाली के) एक अंश के रूप में ऐसी घटनाओं का उपयोग कर रहे हैं । अनेक भारतीय उनके द्वारा बुने जानेवाले भारत विरोधी जाल में फंस जाते हैं तथा ‘हमारे देश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं’, उनकी इस बात पर सहमत हो जाते हैं । वास्तव में देखा जाए, तो ‘विश्व के अनेक स्थानों की अपेक्षा भारत में महिलाएं अधिक सुरक्षित हैं’, प्रसारमाध्यमों को ऐसा बताना चाहिए ।
१. पश्चिमी देशों में जहां सर्वाधिक बलात्कार तथा अपराध हो रहे हैं, तो ऐसे में भारत की ही बदनामी क्यों ?
आपको कुछ प्रसंगों की जानकारी होनी चाहिए । मैंने वर्ष २०१४ में इस विषय में लिखा था; परंतु वह लेख वर्तमान में भी लागू होता है । वैश्विक प्रसारमाध्यम भारत में हो रही बलात्कारों की घटनाओं पर क्यों ध्यान केंद्रित कर रहे हैं ? प्रसारमाध्यमों द्वारा दिए समाचारों से दिखाया जा रहा है कि ‘भारत में होनेवाले बलात्कार एक बडी समस्या है’ तथा उसमें दिखाया जाता है, ‘अन्य देश भारत के आसपास भी खडे नहीं हैं’ । विश्व में भारत के बलात्कार की घटना का समाचार सदैव ‘भारत में एक और बलात्कार की घटना’ जैसा शीर्षक देकर प्रसारित किया जाता है । मैं जब जर्मनी में थी, उस समय २७ दिसंबर २०१३ को वहां की एक विख्यात समाचार वाहिनी ने अपने समाचारों में अंतिम समाचार बताते समय ‘भारत में एक और सामूहिक बलात्कार’ शीर्षक दिया था । उस समाचार वाहिनी के १५ मिनट के कार्यक्रम में मेरे बताए ५ मुख्य विषयों में से एक विषय यह था । वह समाचार पढकर ‘भारत में होनेवाला सामूहिक बलात्कार’ जर्मनी का मुख्य समाचार कैसे बन सकता है ? मेरी बहन को भी इसका आश्चर्य हुआ । सामान्यत: अनुमान लगाया जाए, तो उसी दिन संपूर्ण विश्व में बलात्कार की लगभग १ सहस्र घटनाएं हुई थीं । अमेरिका में २००, दक्षिण अफ्रीका में १७० इत्यादि । इन आंकडों से भारत में बलात्कार की होनेवाली घटनाओं की अपेक्षा पश्चिमी देशों के शहरों में होनेवाली बलात्कार की घटनाओं का औसत बहुत अधिक है । इनमें से अनेक घटनाएं सामूहिक बलात्कार की होंगी । अनेक प्रकरणों में पीडित लडकी अथवा महिला की हत्या होती है ।
वर्तमान में पृथ्वी पर प्रतिक्षण क्या चल रहा है ? यदि यह हमें ज्ञात हुआ, तो एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर कितनी पीडा थोप रहा है ?’ यह ध्यान में आने पर हमसे वह सहन नहीं होगा । पूरे विश्व में जहां इतने बडे स्तर पर अपराध हो रहे हैं तथा अन्य देशों की तुलना में जहां भारत में बहुत ही अल्प संख्या में अपराध हो रहे हैं, ऐसे में ‘भारत में एक और सामूहिक बलात्कार’, ऐसा बताकर भारत को इन सभी से अलग-थलग कर उसका अनादर क्यों किया जा रहा है ? प्रत्यक्ष अपराधों की संख्या की दृष्टि से यदि देखा जाए, तो चीन को छोडकर अमेरिका की जनसंख्या के ४ गुना बडे भारत की इतनी बडी जनसंख्या की तुलना में वह संख्या अमेरिका में होनेवाले अपराधों की संख्या से बडी नहीं है; क्योंकि जनसंख्या की तुलना में देखा जाए, तो जहां अपराधों का स्तर अधिक है, उन देशों में अमेरिका प्रथम स्थान पर है ।
भारत की परिवार व्यवस्था का महत्त्व अबाधित !
‘‘भारत के बलात्कार की समस्याओं के समाधान के लिए पश्चिमी देशों को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है’, इस देश के अधिकांश लोग ऐसा कहने का साहस नहीं दिखाएंगे । वास्तव में देखा जाए, तो अन्य देशों की तुलना में भारत को अधिक लाभ है; क्योंकि भारत की परिवार व्यवस्था बहुत सुदृढ है । विशेषकर जिन्होंने अंग्रेजी शिक्षा नहीं ली, उन लोगों के संदर्भ में यह दिखाई देता है । विवाह होने से पूर्व पुरुषों को ब्रह्मचर्य का पालन करने तथा लडकियों को कौमार्य अबाधित रखने को भारत में बहुत महत्त्व दिया जाता है । ‘प्रेम संबंध बनना’ अभी भी तात्कालिक भावना है तथा जीवन साथी मिलने के परिप्रेक्ष्य में यह नींव सुदृढ नहीं है’, अभी भी प्रेम संबंधों की ओर इसी दृष्टि से देखा जाता है । ‘परिवार के सदस्यों के मध्य समझौते तथा त्याग के कारण व्यक्तिगत संबंधों पर मर्यादाएं आती हैं’, इस प्रकार से विरोध नहीं किया जाता । अधिकांश हिन्दू महिलाओं के लिए आज भी ‘सीतामाता’ आदर्श हैं । आज भी भगवान की भक्ति तथा भगवान से प्रेम किया जा रहा है ।’
– मारिया वर्थ, हिन्दू धर्म की अध्येता, जर्मनी.
२. भारत में हुई बलात्कारों की घटनाओं के समाचार पूरे विश्व में क्यों प्रसारित किए गए ?
१६ दिसंबर २०१२ को देहली में चलती बस में एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार की लज्जाप्रद घटना हुई । उसके उपरांत भारत में होनेवाली बलात्कार की घटनाओं के समाचार प्रसारित करने की होड मच गई । इस घटना के उपरांत ६ लोगों के विरुद्ध आरोपपत्र पंजीकृत किया गया । उनमें से एक आरोपी की कारागृह में मृत्यु हो गई, जबकि ४ लोगों को आजन्म कारावास का दंड मिला तथा एक आरोपी को १८ वर्ष पूरे होने में ६ माह का समय शेष होने से अल्पायु होने के कारण उसे ३ वर्ष के लिए सुधारगृह भेजा गया । ‘यह अल्पायु आरोपी सबसे क्रूर तथा उस पीडिता की हत्या का उत्तरदायी होने से वह वयस्क है’, यह दिखाने का प्रयास किया गया । इस सामूहिक बलात्कार की अभूतपूर्व प्रसिद्धि की गई । यह समाचार यूरोप के स्लोवेनिया के अन्य समय पर जागरूक न रहनेवाली मेरी सहेली तक भी पहुंच गया । पूरे विश्व में यह समाचार इतने बडे स्तर पर क्यों प्रसारित किया गया ? इस घटना के विषय में क्या भारतीयों ने बडे स्तर पर विरोध प्रदर्शन कर अपराधियों को कठोर दंड मिलने की मांग की, उसके कारण यह निंदा हुई ? भारत की दृष्टि से यह मजबूत पक्ष था; क्योंकि बलात्कार जैसी घटना उनकी (हिन्दू) संस्कृति के विरुद्ध है, भारतीय ऐसा मानते हैं; परंतु यहां हुआ इसके विपरीत ।
३. पाश्चात्यों की ओर से बलात्कार की घटनाओं के लिए जानबूझकर ‘भारतीय (हिन्दू) संस्कृति पर दोष मढा जाना !
दिसंबर २०१२ के उपरांत भारत से संबंधित समाचारों में ‘एक और बलात्कार’ अथवा कभी-कभी ‘भारत की बलात्कारी संस्कृति’ जैसे शीर्षकवाले समाचारों पर अधिक बल दिया जाने लगा । उसके एक वर्ष उपरांत देहली में १६ दिसंबर २०१२ को बलात्कार पीडिता की दुखदायक घटना का आधे पृष्ठ का समाचार जर्मनी के न्यूरेंमबर्ग के स्थानीय समाचारपत्र में छप गया । ‘स्पाइगर्ल’ मासिक के वर्ष के अंत में लिए गए ब्योरे में ‘भारत के उत्तराखंड में हुई दुर्घटना में ७०० लोगों की मृत्यु हुई’ इत्यादि समाचार लेने के स्थान पर ‘लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) में मार्शल आटर््स सीखनेवाली छात्रा यौन अत्याचार की शिकार हुई’, यह समाचार लिया गया । ये समाचारपत्र प्रधानता से महिलाओं के शीलभंग होने से संबंधित समाचार देते हैं । इससे आभास होता है, ‘भारत के प्रत्येक कोने में महिलाओं का शीलभंग करनेवाले बैठे हैं ।’
बलात्कार की समस्या भारत की भांति अन्य देशों में भी है, तब भी वैश्विक प्रसारमाध्यमों के द्वारा केवल ‘भारत के बलात्कार’ पर बल दिया जाना न्यायसंगत नहीं है, साथ ही इसके पीछे कोई गुप्त उद्देश्य होने का संदेह उत्पन्न होता है ।
अनेक बार भारतीयों द्वारा लिखे जानेवाले तथा वर्तमान में छापे गए लेखों में अपराधियों के रूप में हिन्दुओं के नाम का उल्लेख होता है । उसके कारण बलात्कार की घटनाओं के लिए भारतीय (हिन्दू) संस्कृति पर दोष मढा जाता है । ‘भारतीय संस्कृति में महिलाओं की स्वतंत्रता अर्थात वे अपनी इच्छानुसार कुछ नहीं कर सकतीं’, ऐसा अर्थ निकाला जाता है । ‘यौन हिंसा भारत के लोगों को लगा एक रोग है’, ‘वॉशिंग्टन पोस्ट’ समाचारपत्र ने ऐसा घोषित किया । ‘रॉइटर्स ट्रस्ट लॉ ग्रुप’ समूह ने ‘महिलाओं के लिए सबसे बुरा देश’, भारत का ऐसा नामकरण किया है । लैंगिकता के विषय में भारतीयों की मानसिकता में परिवर्तन लाने हेतु ‘किशोरावस्था की शिक्षा’ देने के संबंध में हॉवर्ड समिति ने अनेक समाधान सुझाए । यह तो अतिशयोक्ति हुई । पश्चिमी लोग क्या अपने प्राचीन तथा वर्तमान इतिहास का अध्ययन कर उसकी तुलना भारत से करेंगे ? क्या उन्हें इस विषय में लज्जा प्रतीत नहीं होती ?
यदि किसी ने इस पर शोध करने का प्रयास किया, तो ‘बलात्कार भारत की संस्कृति नहीं है’ तथा अन्य संस्कृतियों एवं देशों के विषय में विचार किया जाए, तो उनकी तुलना में भारत में महिलाओं का स्थान उनसे अधिक सम्मानजनक है, यह तुरंत उनके ध्यान में आएगा । कदाचित स्त्रीवादी जो बताते हैं, उनके कहने से सम्मान का स्थान विसंगत हो; परंतु सभी बातों में क्या स्त्रीवादी सर्वश्रेष्ठ हैं ? भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाली महिलाओं को क्या इन स्त्रीवादियों की भांति बनना है ? मेरी दृष्टि से ‘सीतामाता’ को अपना आदर्श माननेवाली ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की दृष्टि से स्त्रीवादियों की स्थिति दयनीय है । स्त्री होने की पीडा की अपेक्षा इन महिलाओं की प्रमुख पीडा है निर्धन होना ।
बलात्कार के समाचारों में मुसलमानों का नाम न दिखाकर हिन्दुओं का नाम दिखाना !
‘पारंपरिक भारतीय संस्कृति को नीचा दिखाने हेतु लगभग प्रतिदिन ‘एक और बलात्कार’, यह हेडलाइन प्रसारित की जाती है । इसमें ‘बलात्कार करनेवालों में से केवल हिन्दू का नाम उजागर कर दूरदर्शन (टी.वी.) पर उसकी चर्चा हो’, इसका ध्यान रखा जाता है । भारत में लगभग २० करोड मुसलमान तथा लगभग २ करोड ८० लाख से अधिक ईसाई हैं । उनमें से अनेक लोग बलात्कार करते हैं तथा क्रूर हैं, उदाहरणार्थ वर्ष २०१२ में देहली में घटित बलात्कार प्रकरण का अल्पायु लडका मुसलमान है; परंतु यह समाचार मुख्य समाचार के प्रवाह में नहीं दिया जाता । समाचार प्रसारित करते समय अथवा अपराधों का पंजीकरण करते समय जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है । इससे हिन्दू संस्कृति का अनादर कर ‘उसमें सुधार की आवश्यकता है’, ऐसा बोलकर संस्कृति को लक्ष्य करने का उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है । पुराने पारिवारिक मूल्यों को एक ओर रखकर मुक्त लैंगिकता को सामान्य बात दिखाने हेतु महाविद्यालयों में कंडोम एवं ‘वेंडिंग मशीन रखना’ अपेक्षित है, ऐसा दिखाया जाता है । यदि ऐसा है, तो बलात्कार के विषय में कुछ और बोलने के लिए रह ही क्या गया है ? इससे पश्चिमी लोगों को किशोरावस्था की शिक्षा का पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए पृष्ठभूमि बनाने का अवसर मिलेगा तथा एक बार यह बात युवावर्ग को रास आ गई, तो ‘पिछडी हुई’ हिन्दू संस्कृति अतीत बन जाएगी ।
– मारिया वर्थ, हिन्दू धर्म की अध्येता, जर्मनी
४. ईसाईयों एवं इस्लाम धर्म की अपेक्षा हिन्दू संस्कृति अनेक गुना श्रेष्ठ !
भारतीय संस्कृति पर दोष मढना बहुत ही साधारण है । वास्तव में देखा जाए, तो ईसाई एवं इस्लाम धर्म न होते तथा केवल हिन्दू संस्कृति ही प्रबल होती, तो आज विश्व और अच्छे स्थान पर होता । ईसाईयों एवं मुसलमानों ने पारंपरिक पद्धति से युद्ध के लिए ‘बलात्कार’ समान साधन का उपयोग किया है । अन्य धर्म भले ही सुसंस्कृत हों, किंतु उन्हें लगता है कि अन्य धर्म की महिला सम्मान करने के योग्य नहीं है तथा वे उसके साथ क्रूरतापूर्ण अत्याचार कर उसकी हत्या कर सकते हैं । यही पाश्विक वृत्ति रोकना जिनिवा परिषद का उद्देश्य था; परंतु हिन्दुओं को जिनिवा परिषद की कभी भी आवश्यकता नहीं पडी । उन्होंने भी युद्ध लडे; परंतु उन्होंने कभी भी महिला अथवा सर्वसामान्य नागरिकों के प्रति क्रूरता नहीं दिखाई ।
५. क्या भारत की प्रतिमा कलंकित करने का उद्देश्य है ?
दुर्भाग्यवश भारत जितना बुरा है नहीं, उसे उससे अधिक बुरा दिखाने के उनके अभियान को सफलता नहीं मिली । वास्तविकता यह है कि अधिकांश विदेशी नागरिक तथा कुछ भारतीय नागरिकों को ‘विश्व के अन्य किसी देश की अपेक्षा भारत में महिलाएं अत्यंत भयानक जीवन जी रही हैं’, ऐसा प्रतीत होता है । वे उसे मान्यता नहीं दें, ऐसा नहीं होगा । प्रत्येक व्यक्ति इस संबंध में आपको भयानक उदाहरण देकर आपका मुंह बंद कर देगा । जी हां, ऐसे भयानक उदाहरण हैं तथा उनके कारण एवं समाधान ढूंढने की आवश्यकता है । भारत में अपराध करनेवालों की संख्या अल्प है तथा अपराधी व्यक्तिगत स्तर पर हैं, पूरे देश में नहीं ! अन्य देशों में ऐसे अपराधियों की संख्या तुलनात्मक दृष्टि से अधिक है । उसके कारण ‘और एक सामूहिक बलात्कार’, ऐसा बोलकर भारत को पुनःपुनः क्यों घसीटा जा रहा है ? क्या इसके पीछे भारत की प्रतिमा कलंकित करने का उद्देश्य है ? यदि वैसा है भी, तो क्यों ?
६. पश्चिमी मूल्यों की जांच करने का समय आ गया है !
कुछ दिन पूर्व ही भारतीयों ने अच्छा उल्लेखनीय कार्य किया है । भारतीयों में प्रचंड बुद्धि है । ‘भारतीयों का मस्तिष्क अत्यंत प्रखर है’, इसको मान्यता मिली है । इसलिए भारत एक नए आत्मविश्वास के साथ स्वयं को व्यक्त कर रहा है । अब पश्चिमी मूल्यों को परखने की आवश्यकता है । प्राचीन हिन्दू परंपरा का पुनर्जागरण हो रहा है । ‘ईसाई एवं इस्लाम धर्म हिन्दू धर्म से अच्छे हैं’, इस स्थापित विचार को अब चुनौती दी जा रही है । आधुनिक पश्चिमी मूल्यों के परखे जाने की संभावना है; क्योंकि पाश्चात्यों को अब वो मूल्य अच्छे नहीं लगते । स्थापित विचारों में अधिक शक्ति होती है तथा इस शक्ति का उपयोग अत्यंत अनुचित पद्धति से भारत को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है ।
७. आधुनिक पश्चिमी मूल्यों की दयनीय वास्तविकता
अभी भी पश्चिमी दृष्टिकोण से विचार करनेवाले विचारक भारत में इन सभी मूल्यों के सुदृढ होने की प्रशंसा नहीं करते; क्योंकि भारत में जिन पश्चिमी जीवनशैली को प्रोत्साहन दिया जाता है, उन्हें यह मूल्य चुनौती देते हैं । उदाहरण के लिए, आधुनिक पश्चिमी मूल्य (‘फोकस’ नामक जर्मन मासिक से मुझे यह जानकारी मिली)े इंद्रधनुष के रंगों अथवा भिन्न-भिन्न रंगों के कपडों को जोडकर तैयार किए गए कपडे की भांति एक परिवार में रहना चाहिए’, इस प्रकार के हैं । इन परिवारों में रहनेवाले समलैंगिक अभिभावक होंगे अथवा अभिभावक के रूप में भिन्न-भिन्न सदस्यों अथवा अनेक ‘लिव इन रिलेशनशिप’ (बिना विवाह के एक साथ रहना) वालों के बच्चे होंगे । प्रत्येक व्यक्ति के सीखनेयोग्य यह अच्छा अनुभव है, ऐसा माना जाता है । क्या पुरुष एवं महिला के एक साथ पालन-पोषण करने की अपेक्षा ये समलैंगिक अच्छे अभिभावक हैं ? इसका परीक्षण करनेवाली एक पुस्तक अब जर्मनी से समाप्त हो गई है । ऐसे समलैंगिक अभिभावक एक साथ रहकर बच्चों को जन्म नहीं दे सकते, इस बात की अनदेखी की जा रही है; परंतु पश्चिमी देशों में बच्चे किसे चाहिए होते हैं ?, यह भी एक प्रश्न ही है ।
८. पाश्चात्यों के आधुनिक मूल्यों की तुलना में हिन्दुओं के मूल्य अधिक हितकारक !
भारतीय समाज के सभी धर्मों के सर्वसामान्य लोगों के लिए यह संभावना तो अत्यंत भयंकर बात है । कुछ दृष्टिकोणों के प्रति हिन्दू समाज कठोर है तथा उसमें सुधार की आवश्यकता है; परंतु पाश्चात्यों के आधुनिक मूल्यों की तुलना में हिन्दू समाज के मूल्य अधिक श्रेष्ठ हैं । आधुनिक जीवनशैली असफल आदर्श है, इसका भान युवकों को होना आवश्यक है । पाश्चात्य संस्कृति में अनेक खेदजनक त्रुटियां हैं । अनेक युवक अति स्वतंत्रता के कारण दिशाहीन हो गए हैं । वे नियमों की स्पष्ट अपेक्षा करते हैं तथा मूलतत्त्ववादी अथवा ईसाई चर्चाें की ओर आकर्षित होते हैं । इसके लिए हिन्दू धर्म एक अच्छा विकल्प है; परंतु उसके प्रति पूर्वाग्रह रखे बिना वे उसके विषय में जानने का प्रयास भी करेंगे, इसकी संभावना नहीं है ।’
– मारिया वर्थ, हिन्दू धर्म की अध्येता, जर्मनी
संपादकीय भूमिकाकिसी भी प्रकार से भारत की प्रतिमा धूमिल करनेवाले पाश्चात्य देशों का बहिष्कार कर सरकार उन्हें पाठ पढाएं ! |