संपादकीय : ‘धर्मनिरपेक्ष’ नहीं, हिन्दू बनें !

बांग्लादेश में आरक्षण से प्रारंभ किए गए आंदोलन को हिन्दू विरोधी स्वरूप देकर वहां हिन्दुओं का नरसंहार किया गया । इस आक्रमण में अत्यंत क्रूरता से हिन्दुओं की हत्या की गई । स्त्रियों पर बलात्कार किए गए । छोटे बच्चों के गले दबाकर हत्या की गई । शैतान भी लज्जित हो जाए, ऐसा नंगानाच धर्मांध मुसलमानों ने बांग्लादेश में किया । इस नरसंहार की निंदा करने के लिए भारतभर में जगह-जगह हिन्दुओं ने आंदोलन किए । महाराष्ट्र में भी उसकी गूंज उठी । नाशिक में आंदोलनकर्ता हिन्दुओं पर मुसलमानों ने आक्रमण किया । इसमें सदैव की भांति मुसलमानों ने पुलिस को भी मारा । यहां हिन्दुओं को मुसलमानों के आक्रमण का सामना करना पडा तथा पुलिस के डंडे भी खाने पडे । प्रश्न यह है कि हिन्दू और कहां-कहां दबेंगे ? बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार हुए, इसलिए हिन्दुओं ने भारत के मुसलमानों की हत्या नहीं की । बहुसंख्यक हिन्दुओंवाले भारत में भी बंधुओं के नरसंहार की सामान्य निंदा भी यदि हिन्दू नहीं कर पा रहे हों, तो छत्रपति शिवाजी महाराज का जयघोष करने में क्या अर्थ है ? बहुसंख्यक समाज पर अल्पसंख्यक आक्रमण करने का साहस करते हैं, यह अल्पसंख्यकों का शौर्य नहीं अपितु हिन्दुओं की नपुंसकता है । गत अनेक वर्षाें से कानून ने, पत्रकारिता ने, समाज सुधार एवं आधुनिकतावाद के नाम पर एवं संविधान की आड में हिन्दुओं को योजनाबद्ध नपुंसक बनाने का काम कांग्रेस ने किया । इसलिए मुसलमान बहुसंख्यक हिन्दुओं पर आक्रमण करने का साहस कर सकते हैं । मुसलमानों के आक्रमण का यदि हिन्दुओं ने समय पर अपनी रक्षा हेतु सटीक उत्तर नहीं दिया, तो भविष्य में बंगाल, केरल, कश्मीर आदि मुसलमानबहुल क्षेत्रों में बांग्लादेश के समान स्थिति उत्पन्न होने में समय नहीं लगेगा, ऐसी दुरावस्था आज भारत में है । बांग्लादेश, पाकिस्तान में हिन्दू ‘अल्पसंख्यक’ के रूप में, जबकि भारत में हिन्दू धर्मनिरपेक्ष के रूप में मार खाते हैं । इसलिए भविष्य में भी मार खानी हो, तो हिन्दू धर्मनिरपेक्ष ही बने रहें और मुसलमानों के आक्रमण का स्वरक्षा हेतु प्रत्युत्तर देना हो, तो हिन्दू बनना नहीं अपितु धर्माभिमानी हिन्दू बनना ही हिन्दुओं का अस्तित्व बनाए रखने का एकमात्र मार्ग है ।

‘हिन्दू स्वयं धर्मनिरपेक्ष हैं’, इसलिए वे मुसलमानों को धर्मनिरपेक्ष मानने की भूल न करें । इससे पूर्व वर्ष २०१२ में म्यांमार में मुसलमानों पर आक्रमण होने का शोर मचाकर मुंबई के आजाद मैदान पर मुसलमानों ने मोर्चा निकाला एवं कोई संबंध न होते हुए भी हिन्दुओं पर आक्रमण किया । यहां की सार्वजनिक संपत्ति की तोडफोड की एवं पुलिस पर आक्रमण करने में भी वे पीछे नहीं रहे । म्यांमार के कथित आक्रमण से मुसलमान महाराष्ट्र में हिंसा करें; परंतु बांग्लादेश में हिन्दू बंधुओं पर नरसंहार होकर भी हिन्दुओं द्वारा भारत में निषेध के नारे लगाने पर यदि मुसलमानों की भावनाएं आहत होती हों, तो ऐसी धर्मनिरपेक्षता हिन्दुओं का अस्तित्व शेष नहीं रखेगी । इसलिए धर्मनिरपेक्ष रहना, अर्थात भविष्य में धर्मांधों के हाथों मरने के समान है, यह हिन्दुओं को निश्चित समझ लेना चाहिए ।

मुसलमान समर्थकों का धर्मनिरपेक्षता का उपदेश !

भारत स्वतंत्र होने पर जिस कांग्रेस ने भारत की सत्ता हाथ में ली, उन्हें वास्तविक रूप से धर्मनिरपेक्षता का पालन करना चाहिए था । राज्य करते समय राजा के रूप में संपूर्ण प्रजा को समान अधिकार, समान न्याय एवं समान वर्तन दिया होता, तो वह वास्तविक धर्मनिरपेक्षता होती; परंतु कांग्रेस ने मुसलमानों की चापलूसी के लिए कानून बनाए एवं कानून झुकाए । म. गांधी, नेहरू एवं कांग्रेस का नेतृत्व करनेवाले गांधी खानदान के नेताओं ने अपना संपूर्ण जीवन मुसलमानों की चापलूसी में बिताया एवं हिन्दुओं को सदैव धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढाया । धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है अन्य धर्मियों की भावनाओं का आदर करने के लिए स्वयं का धर्म उजागर न करना एवं अन्यों के धर्म का आदर करना, ऐसी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता कांग्रेस, साम्यवादी एवं उनका साथ देनेवाले आधुनिकतावादी आदि ने इतने वर्षाें से हिन्दुओं के गले उतारी है । इसकी इतनी अति हो गई है कि हिन्दुओं को स्वयं को हिन्दू कहने में लज्जा आने लगी है । ‘सार्वजनिक स्थानों पर स्वयं की हिन्दू के रूप में पहचान दिखाना अर्थात मुसलमानों की भावनाएं आहत करना, हिन्दुओं में धर्मनिरपेक्षता की भावना इतनी दृढ हो गई है । धर्मनिरपेक्षता की यह दृढ भावना यदि इसी प्रकार चलती रही, तो भविष्य में हिन्दुओं का विनाश अटल है । इसलिए धर्मनिरपेक्षता की दृढ भावना पर ‘हिन्दू धर्माभिमान’ ही रामबाण उपाय है । इसलिए धर्म की जड पर आघात करनेवाली धर्मनिरपेक्षता को लात मारें । संसार में मुसलमान, ईसाई आदि पंथ केवल उनके ही पंथ एवं प्रेषित को मानते हैं । इसके विपरीत, हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है, जो प्रत्येक उपासना का आदर करता है । इसलिए धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता हिन्दुओं को नहीं, अपितु अन्य धर्मियों को है ।

स्वधर्म का समर्थन ही एकमात्र मार्ग है !

भारत में धर्मनिरपेक्षता की भावना इतनी दृढ हो गई है कि बांग्लादेश में हिन्दुओं का नरसंहार होने पर भी हिन्दुत्वनिष्ठ के रूप में पहचाने जानेवाले दल भी हिन्दुओं के पक्ष में उजागर भूमिका नहीं ले पाते, ऐसी स्थिति हो गई है । भाजपा, शिवसेना अथवा अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ दल कदाचित हिन्दुओं के पक्ष में भूमिका लें, तो तथाकथित आधुनिकतावादी एवं कांग्रेस जैसे मुसलमान समर्थक दल उन्हें ‘जातीयवादी’ कहकर खिजाते हैं । हिन्दुत्वनिष्ठ दलों में भी हिन्दुओं के पक्ष में कोई ठोस भूमिका ले, तो इस कारण अल्पसंख्यकों की भावनाएं आहत होकर उन्हें उनके मत नहीं मिलेंगे’, इसका भय दल के नेताओं को लगता है । इसलिए उन्हें दल द्वारा प्रत्याशी नहीं बनाया जाता । इसके साथ ही हिन्दुओं के पक्ष में ठोस भूमिका लेने पर धर्मनिरपेक्ष हिन्दू समाज उन्हें मतदान करेगा ही, इसका भरोसा नहीं है । इतना झंझट धर्मनिरपेक्षता ने करके रखा है । अतः ‘इस तथाकथित धर्मनिरपेक्षता को तिलांजली देकर हिन्दुओं को स्वधर्म का समर्थन करना चाहिए, हिन्दुओं का अस्तित्व बनाए रखने का यही एकमात्र मार्ग है ।

कांग्रेस ने मुसलमानों को अल्पसंख्यक कहकर बडा बनाया, इसलिए वे अब हिन्दुओं के सिर चढकर बोल रहे हैं । गला काटने पर हिन्दुओं के मुर्दाे को भी धर्मनिरपेक्षता संजोने का तत्त्वज्ञान देने में भी आधुनिकतावादी पीछे नहीं हटेंगे; परंतु भविष्य में हिन्दुओं को अपना अस्तित्व बनाए रखना है, तो छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा बताया धर्माभिमानी बनने का मार्ग ही हिन्दुओं को अपनाना पडेगा ।

धर्मनिरपेक्षता ने हिन्दुओं को नपुंसक बनाया तथा हिन्दुत्व ने छत्रपति शिवाजी महाराज बनाए, इससे धर्म कहां सुरक्षित है ? यह हिन्दू निश्चित करें !