संपादकीय : वक्फ कानून रद्द करें !

केंद्र सरकार के द्वारा लोकसभा में असीमित अधिकार प्राप्त वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन का विधेयक रखते ही विरोधियों द्वारा, ‘यह संघराज्य व्यवस्था पर किया गया आक्रमण है’, ‘भाजपा सरकार मुसलमानों की शत्रु है’, ‘जिलाधिकारियों को अधिकार दिए गए, तो वे उन्मत्त होंगे’, इस प्रकार के आक्रोश दिखाते हुए विरोधी दलों ने उसका तीव्र विरोध किया । अर्थात इसमें मुसलमानों का तुष्टीकरण करनेवाली कांग्रेस, एम.आई.एम., राष्ट्रवादी कांग्रेस, समाजवादी दल, माकपा एवं द्रमुक, ये राजनीतिक दल अग्रणी हैं; क्योंकि मुसलमानों के साथ किए जा रहे असीमित लाड-प्यार अब सबके सामने आ गए हैं । अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा वक्फ कानून में संशोधन करनेवाला यह विधेयक रखे जाने पर उसके लिए हुए विरोध के कारण अब उसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाएगा । अब इस विधेयक में क्या परिवर्तन होंगे ? तथा उसे पुनः कब सदन में रखा जाएगा ? इस विषय में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता । उसके कारण संशोधन की दृष्टि से रखा गया यह पहला कदम कुछ समय के लिए तो रुक गया है; परंतु तब तक सरकार को वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकारों पर रोक लगाने का प्रावधान करने की आवश्यकता तो है ही !

मध्य प्रदेश के न्यायाधीश गुरुपाल सिंह अहलुवालिया द्वारा उसकी आलोचना भी वक्फ कानून के मर्मस्थल पर उंगली उठानेवाली है । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग विरुद्ध वक्फ बोर्ड अभियोग के समय न्यायाधीश अहलुवालिया ने वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता को डांट लगाते हुए कहा, ‘केवल नोटिस देकर किसी की भी संपत्ति वक्फ की संपत्ति कैसे हो सकती है ? इसके लिए आप किन नियमों का उपयोग करते हैं, वह बताइए । भविष्य में आप लाल किला तथा ताजमहल सहित संपूर्ण भारत को वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर देंगे !’ तथा उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के द्वारा इस प्रकार का गंभीर वक्तव्य दिए जाने से वक्फ बोर्ड के रूप में चल रहे ‘लैंड जिहाद’ की विभीषिका की कल्पना की जा सकती है ।

ऐसे कैसे हो सकता है ?

भारत में लोकतंत्र है । ऊपर से देखने पर सभी को ऐसा लगता है कि लोकतंत्र में बहुसंख्यकों को अधिक अधिकार होंगे ही ! जिन लोगों में यह अवधारणा है, उनमें सर्वाधिक हिन्दू ही हैं; परंतु कानून, सुविधाएं एवं योजनाओं का अध्ययन किया जाए, तो बडी सहजता से यह ध्यान में आता है कि संख्या में अल्प मुसलमानों को ही सदैव सर्वाधिक तथा असीमित अधिकार दिए गए हैं तथा वह भी बडी सहजता से हिन्दुओं को मूर्ख बनाकर ! अभी तक भिन्न-भिन्न प्रकार से बहुसंख्यक हिन्दुओं पर अन्याय-अत्याचार हुए तथा हो भी रहे हैं । भूमि हिन्दुओं की, कानून का सामना करना पडता है हिन्दुओं को, कर भरें हिन्दू; परंतु लाभ उठाएं मुसलमान ! अल्पसंख्यक के नाम पर सभी सुविधाओं का लाभ उठाएंगे; परंतु तब भी ‘खतरे में कौन, इस्लाम ?’, ऐसा कैसे होगा ?

वक्फ कानून के कारण इच्छित भूमि पर अधिकार जताने का दावा सीधे-सीधे ‘लैंड जिहाद’ को प्रोत्साहित करनेवाला है । लोकतंत्रवाले भारत में ऐसा कानून बन ही कैसे सकता है ? यही प्रश्न है ।

संशोधन में समाहित बचाव के मार्ग

सरकार द्वारा इस कानून में प्रस्तावित संशोधनों में से मुख्य रूप से ५ सूत्रों का विरोध किया जा रहा है । पहला सूत्र यह है कि वक्फ बोर्ड जिस भूमि पर दावा कर रहा है, उसके लिए राजस्व न्यायालय, दिवानी न्यायालय तथा उच्च न्यायालय तक भी जाने का अधिकार होगा; परंतु अभी तक के वक्फ बोर्ड के कामकाज को देखा जाए, तो हिन्दुओं को अपनी ही भूमि के लिए न्यायालय में वर्षाें तक लडाई करनी पडेगी । नए संशोधन के अनुसार ‘वक्फ ट्रिब्युनल’ के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी; परंतु उसके लिए भी हिन्दुओं को ही अपना समय, परिश्रम तथा पैसा खर्च करना पडेगा । तीसरा संशोधन यह है कि वक्फ बोर्ड किसी भी भूमि पर दावा नहीं कर सकेगा । वक्फ बोर्ड को किसी ने भूमि दान में दी, तभी वह वक्फ बोर्ड की हो सकती है; परंतु वर्तमान समय में जैसे बलपूर्वक धर्मांतरण हो रहा है, उसी प्रकार भविष्य में भूमि दान देने हेतु बलप्रयोग होने की संभावना तो रह ही जाती है । चौथे संशोधन के अनुसार वक्फ बोर्ड में २ मुसलमान महिलाओं तथा अन्य धर्म के २ लोगों की नियुक्ति करने का प्रावधान है । चयन किसी का भी हो; परंतु काम होगा इस्लामिक पद्धति से ही ! इसलिए यह चयन केवल कागद पर बना रह सकता है । संशोधन का पांचवा सूत्र यह है कि वक्फ संपत्ति से संबंधित विवाद की घटनाओं में संपत्ति के सर्वेक्षण का अधिकार दिया जाना ! इसमें भी भ्रष्टाचार के लिए प्रचुर अवसर हैं । इसलिए इस कानून में चाहे संशोधन किए भी गए, तब भी संपत्ति से संबंधित विवादित विषयों में संपत्ति के सर्वेक्षण का अधिकार जिलाधिकार को देने में भी भ्रष्टाचार के लिए सहज अवसर है । अतः संशोधन किए भी गए, तब भी उससे बहुसंख्यक हिन्दुओं को ही कष्ट झेलने पडेंगे तथा यदि ऐसा है तो इस कानून में संशोधन से लाभ क्या होगा ?

अभी तक वक्फ बोर्ड द्वारा हडपी गई भूमि का उपयोग देश विरोधी गतिविधियों के लिए होगा, यह तो निश्चित है । इसलिए वक्फ कानून का तथा उनमें प्रस्तावित संशोधनों के परिणामों पर गहन तथा गंभीरता से विचार होना चाहिए । कानून में संशोधन करने में किसी को आपत्ति नहीं है, जबकि कानून ही रद्द किया, तो इस समस्या का बडी सहजता से समाधान हो जाएगा ।

वक्फ कानून के माध्यम से समानांतर न्यायतंत्र चलाना तथा हलाल प्रमाणपत्र के माध्यम से समानांतर अर्थव्यवस्था चलाना तो ‘गजवा-ए-हिन्द’ की दिशा में आगे बढने का तीव्र गति महामार्ग है । अन्य छोटे-मोटे जिहादी षड्यंत्र चलाए जाते हैं, वह तो अलग ही बात है ! यह सब विगत अनेक दशकों से योजनाबद्ध पद्धति से चल रहा है । अब जो दिखाई दे रहे हैं, वो केवल ऊपर से दिखाई दे रहे परिणाम हैं । वास्तव में इस कानून का उद्देश्य भी यदि समझ लिया जाए, तो रूह कांप उठेगी, यह षड्यंत्र इतना भयानक है ।

हिन्दुत्वनिष्ठ हिन्दुओं के लिए निरंतर आवाज उठाते रहते हैं; इसलिए भारत में हिन्दू टिके हुए हैं । अन्य धर्मियों ने लालच, बलप्रयोग, हिंसा जैसे विभिन्न पैंतरे चलाकर हिन्दुओं को मिटाने का प्रयास चला रखा है । वर्तमान स्थिति में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा अब बांग्लादेश, इनमें से किसी भी देश में स्थिर लोकतंत्र नहीं है, जो केवल भारत में है तथा उसका कारण है यहां के बहुसंख्यक हिन्दू ! भारत को जहां चारों ओर से अस्थिर बनाने के भरपूर प्रयास हो रहे हैं, तो ऐसे में सरकार द्वारा लिए गए ठोस निर्णय ही भारत को सशक्त बना सकते हैं । अत: हिन्दूहित के लिए बाधा बने कानूनों तथा नियमों को तुरंत ढूंढकर केंद्र स्तर पर उन्हें रद्द किया जाए । इसी परिप्रेक्ष्य में वक्फ कानून में केवल संशोधन ही नहीं, अपितु उसे तत्काल रद्द किया जाना चाहिए । ऐसा किया गया, तभी हिन्दुओं की भूमि उनके नियंत्रण में रह पाएगी ।