स्वतंत्रता दिवस के निमित्त...
१. अंग्रेजकालीन कानूनों में परिवर्तन
‘भारतीय संसद ने ‘भारतीय दंड संहिता १८६०’, ‘भारतीय साक्ष्य कानून १८७२’ तथा ‘भारतीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता १८८२, सुधारित १९७३’, इन ३ कानूनों में परिवर्तन कर उसे दिसंबर २०२३ में पारित किया । उसके उपरांत २५.१२.२०२३ को इन कानूनों को राष्ट्रपति की मान्यता भी मिल गई । वर्ष १८५७ की सशस्त्र क्रांति के उपरांत अंग्रेजों ने भारतीयों को कानून के दबाव में रखने हेतु अन्य कानूनों सहित उक्त ३ कानून बनाए थे । वर्ष १८३४ में लॉर्ड मैकाले की सदस्यता में एक आयोग का गठन किया गया । उसने वर्ष १८६० में भारतीय दंड संहिता एवं वर्ष १८७२ तथा वर्ष १८८२ में अन्य २ कानून बनाए ।
२. केंद्र सरकार के द्वारा कानूनों में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया आरंभ
अंग्रेजकालीन कानूनों में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया मार्च २०२० से आरंभ हुई । उसके लिए विधि आयोग से सूचनाएं मांगी गईं । केंद्र सरकार ने ‘भारतीय न्याय संहिता’, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ तथा ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’, इन तीनों कानूनों को ११.८.२०२३ को संसद के पटल पर रखा । उसपर आक्षेप, सूचनाएं तथा मत मांगे गए । १०.११.२०२३ को उसपर चर्चा हुई । उसके उपरांत उनका कानून में रूपांतरण होकर ९.१२.२०२३ को ये कानून पारित हुए । २५.१२.२०२३ को उन्हें राष्ट्रपति से मान्यता मिली । वर्ष २०२३ में बनाए गए ये कानून १ जुलाई २०२४ को कार्यान्वित होंगे, ऐसा केंद्र सरकार की ओर से बताया गया था । (वास्तव में भी १ जुलाई २०२४ से इन कानूनों का कार्यान्वयन आरंभ किया गया ! – संपादक) सरकार, अन्वेषण विभाग, पुलिस, अधिवक्ता, न्यायतंत्र तथा जनता को नए कानूनों का अध्ययन करने हेतु पर्याप्त समय मिले, यह उसका उद्देश्य था ।
३. भ्रष्ट तथा जातिवादी राजनीतिक दलों से विरोध
वास्तव में देखा जाए, तो पुराने कानूनों में परिवर्तन लाकर उनमें संशोधन करना औपचारिकता होती है तथा उसपर इतना हंगामा करने की आवश्यकता नहीं होती; परंतु जब से केंद्र में हिन्दुत्वनिष्ठ विचारों की सरकार सत्ता में आई है, तब से भ्रष्ट, जातिवादी तथा धर्मांधों के मतों पर चुनाव जीतनेवाले राजनीतिक दलों ने इन कानूनों के विरुद्ध आक्रोश आरंभ किया । वास्तव में कांग्रेस तथा विभिन्न दलों की सरकारों के कार्यकाल में अनेक कानून बदले गए; परंतु विरोधियों ने ‘सीएए’ तथा कृषि कानूनों का विरोध करने का एकसूत्री कार्यक्रम जारी ही रखा है ।
४. पुलिस, प्रशासन तथा अन्वेषण विभागों का समुपदेशन प्रशिक्षण
इन कानूनों के विषय में पुलिस, प्रशासन तथा अन्वेषण विभागों का समुपदेशन प्रशिक्षण आवश्यक है, इसे ध्यान में रखकर केंद्र सरकार के द्वारा उस दृष्टि से भी प्रयास किए गए । केंद्र सरकार ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ‘वर्ष २०२४-२५ की अवधि में विधि शाखा में प्रवेश लेनेवाले छात्रों की शिक्षा में इन नए कानूनों से संबंधित पाठ्यक्रम अंतर्भूत करने के लिए कहा । ‘लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन एकादमी’ ने सरकारी अधिकारियों तथा भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के साथ अपराध पंजीकरण ब्यूरो तथा न्यायचिकित्सकीय प्रयोगशाला अधिकारियों को प्रशिक्षण लिया, साथ ही इन नए कानूनों के विषय में केंद्र ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों तथा पुलिस प्रमुखों के साथ बैठकें भी की । इन कानूनों के विषय में चंडीगढ में एक ‘एप’ भी जारी किया गया है । केंद्रीय गृहमंत्री शाह ने कहा कि इस संदर्भ में ५ दिन का एक ‘क्रैश कोर्स’ (शीघ्र प्रशिक्षण योजना) लिया जाएगा ।
नए कानूनों की विशेषताए
नए कानूनों के कुछ अनुच्छेद विशेषतापूर्ण हैं । जिस ‘भारतीय दंड संहिता’ को अब‘भारतीय न्याय संहिता’ कहा जाएगा, उसमें समाहित कुछ परिवर्तन ध्यान में लेनेयोग्य हैं ।
अ. मूलरूप से ये कानून महिलाओं, बच्चों एवं सरकार के अधिकार का भान रखकर उनके संरक्षण हेतु बनाए गए हैं । इस नए परिवर्तन के कारण हम बिना पुलिस थाना गए, घर बैठे भी अपराध पंजीकृत कर सकते हैं । उसके तथ्यों की पडताल कर पुलिस के द्वारा यह अपराध पंजीकृत किया जाएगा तथा उनके लिए वह अनिवार्य होगा ।
आ. अनेक बार पुलिस क्षेत्रीय सीमा के नाम पर इस पुलिस थाने से उस पुलिस थाने के चक्कर काटने लगाते हैं; परंतु अब इस प्रकार टालमटोल नहीं की जा सकेगी । उनके लिए ‘जीरो एफ.आई.आर.’ पंजीकृत करना (अपराध कहीं भी हुआ हो, तब भी उसकी शिकायत निकट के पुलिस थाने में पंजीकृत करना) अनिवार्य होगा । उसके उपरांत उसे उचित पुलिस थाने भेजा जाएगा, साथ ही उसकी प्रति पीडित तथा आरोपी को दी जाएगी ।
इ. हम ‘इ-मेल’, ‘वॉट्सएप’, ‘टेक्स्ट मेसेज’ (लघुसंदेश) के माध्यम से भी अपराध पंजीकृत कर सकते हैं ।
ई. देश की एकता, अखंडता, सुरक्षितता, संप्रभुता के विरुद्ध हिंसाचार, आतंकवाद जैसे कृत्य करनेवालों को फांसी देने का प्रावधान किया गया है । आर्थिक अपराध, मादक पदार्थाें की बिक्री, साइबर अपराध, वेश्यावृत्ति, ‘काँट्रैक्ट किलिंग’ (हत्या का ठेका [सुपारी] देना) के संदर्भ में अपराध कर हिंसा फैलानेवालों के विरोध में कठोर दंड का प्रावधान किया गया है । ऐसे व्यक्तियों को १० वर्ष तक के दंड सुझाए गए हैं ।
उ. सडक पर रोककर लूटमार करना, हथियार का भय दिखाकर चोरी करना जैसे अपराधों के लिए ७ वर्ष तक का दंड रखा गया है । केंद्र सरकार ने ४१ अपराधों से संबंधित दंड में वृद्धि की है, साथ ही ८० से अधिक अपराधों में दंड मिला, तो जुर्माने की धनराशि में भी वृद्धि की है ।
ऊ. अभियोग की दृष्टि से साक्ष्यकर्ता सुरक्षा महत्त्वपूर्ण होती है । उसके लिए राज्य सरकारों को एक योजना तैयार करने का आदेश इस कानून में दिया गया है ।
ए . सर्वोच्च न्यायालय अथवा अन्य न्यायालयों द्वारा अंतिम निर्णय देने के उपरांत ३० दिन के अंदर दया का आवेदन दिया जा सकेगा । ऐ. न्यायालय का संपूर्ण कामकाज, निर्णय, आदेश आदि जालस्थल पर रखे जाएंगे । उसके कारण अभियोजन पक्ष, पीडित तथा आरोपी उन्हें ‘ऑनलाइन’ देख सकेंगे ।
ओ. अनेक बार कुछ राज्य सरकारें हिंसक कृत्य करनेवाले तथा निंदनीय कृत्य करनेवाले आरोपियों को छोड देते हैं, साथ ही उनका दंड भी माफ करते हैं । ऐसे समय में पीडितों का विचार होना भी आवश्यक है । उसके कारण उनकी सहमति के बिना ऐसे अपराध वापस नहीं लिए जा सकेंगे अथवा दंड माफ न हो, ऐसा यह कानून कहता है । इसके साथ ही पीडित व्यक्तियों को हानिभरपाई देने के विषय में केंद्र एवं राज्य सरकारें एकत्रित प्रयास कर योजना की कार्यवाही करनेवाले हैं ।
औ. पीडित आरोपी को निर्णय के विषय में अवगत किया जाए । अनेक बार निर्णय होने पर भी अथवा आरोपी के बरी होने पर भी उसे उसकी जानकारी नहीं होती, अतः उसके द्वारा प्रविष्ट चुनौती समयाभाव के कारणवश अपारित होती है ।
अं. फरार आरोपी उपस्थित न होने के कारण अथवा भाग जाने के कारण पहले अभियोग की सुनवाई लंबी खींची जाती थी; परंतु अब आरोपी फरार होते समय भी सुनवाई जारी रखी जाएगी, साथ ही फरार आरोपी की संपत्ति जब्त करना इत्यादि के विषय में कानून में कठोर धाराएं लगाई गई हैं ।
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी
५. महिलाओं पर होनेवाले अत्याचारों के विरुद्ध अनुच्छेद
अ. इस कानून में एक महत्त्वपूर्ण नियम का उल्लेख किया गया है । नौकरी लगाने तथा नौकरी में पदोन्नति देने जैसे झूठे आश्वासन देकर, साथ ही स्वयं की जाति एवं पंथ की पहचान छिपाकर विवाह करनेवाले व्यक्ति को १० वर्ष का दंड तथा जुर्माना लगाया जाएगा । इसके कारण ‘लव जिहाद’ पर लगाम लगाना संभव होगा ।
आ. किसी महिला अथवा लडकी के साथ यदि एक से अधिक व्यक्तियों ने बलात्कार किया, तो उन्हें २० वर्ष तक का दंड हो सकता है । उसी प्रकार जिस आरोपी ने इससे पूर्व भी बलात्कार का अपराध किया हो तथा उसे दंडित किया गया हो, ऐसे आरोपी ;ने पुनः वही अपराध किया, तो उसे आजीवन कारावास अथवाम मृत्यु तक आजीवन कारावास मिल सकता है ।
६. शीघ्र गति से अभियोग चलाने हेतु उपयुक्त
अपराधियों को कानून का भय नहीं रहा है, तो उन्हें कानून का भय लगे तथा उससे अपराध न्यून हों; इसके लिए यह परिवर्तन किया गया है । उसी प्रकार जो छोटे अपराध हैं तथा जिनमें २ महिने से भी अल्प दंड सुनाया गया हो अथवा जुर्माने की राशि भी ३ सहस्र रुपए से अल्प हो, उनके लिए अपील का प्रावधान हटा दिया गया है । नए कानून में ‘इलेक्ट्रॉनिक’ माध्यमों का अधिक से अधिक उपयोग सुझाया गया है, आरोपियों ने जहां अपराध किया है, उस स्थान पर जाकर वहां की वस्तुओं तथा अपराध में उपयोग किए गए हथियारों के पंचनामे करना, साक्ष्यों की साक्ष लेना; इनमें ‘इलेक्ट्रॉनिक’ माध्यमों का (सामग्रियों का) उपयोग सुझाया गया है । आरोपी तथा साक्ष्यों को समंस देने की प्रक्रिया पूर्ण करने हेतु अब ‘इलेक्ट्रॉनिक’ माध्यमों का उपयोग किया जानेवाला है; इसलिए अभियोग शीघ्र गति से चलाए जाएंगे, ऐसी अपेक्षा रखने में कोई आपत्ति नहीं है ।
७. न्यायचिकित्सकीय प्रयोगशालाओं के ब्योरों को अनिवार्य करने के प्रावधान को बंगाल उच्च न्यायालय में दी गई चुनौती
नए कानूनों का विरोध करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय तथा अन्य कुछ उच्च न्यायालयों में याचिकाएं प्रविष्ट की गई थीं । उन्हें विभिन्न कारणों से न्यायालयों ने अस्वीकार किया । इस प्रकार से १.७.२०२४ से इस कानून का कार्यान्वयन आरंभ हुआ । मुंबई एवं देहली के अवैध फेरीवालों के विरुद्ध की गई कार्यवाही भी न्यायालय पहुंची । वहां भी अब नए कानून लागू होंगे । कुछ दिन पहले बंगाल उच्च न्यायालय में एक याचिका प्रविष्ट की गई । उसमें ‘केंद्र एवं राज्य सरकारों की जो प्रयोगशालाएं हैं, उनके संदर्भ में नए कानूनों में न्यायचिकित्सकीय प्रयोगशालाओं के ब्योरों को अनिवार्य बनाए जाने से इन प्रयोगशालाओं पर काम का दबाव आया ’, ऐसा कहा गया है । इसकी सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह में रखी गई है ।
८. कानूनों का विरोध करने के कारण
आधुनिकतावादियों का इन कानूनों को विरोध है । उसमें प्रमुखता से नए कानूनों के कारण सरकार के अधिकार मजबूत होना, विरोधियों को शांत करना, समाचार वाहिनियों का दमन करना, साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से आपातकाल जैसी स्थिति उत्पन्न करना, ये आपत्तियां हैं, साथ ही लोकतंत्र को एकाधिकार तंत्र में परिवर्तन करने का यह षड्यंत्र है, ऐसा भी कहा गया है । इस माध्यम से विरोधी दलों तथा विरोध करनेवाले संगठनों को लक्ष्य बनाया गया है, ऐसा उन्हें लगता है । उनके अनुसार रा.स्व. संघ परिवारों को संरक्षण देना तथा विरोधियों का दमन करना सरकार का उद्देश्य है । ‘सरकार को पुलिसराज स्थापित कर अपनी सत्ता अबाधित रखनी है । संविधान के द्वारा प्रदान किए गए अधिकार इन ३ कानूनों के कारण संकीर्ण होंगे, इस प्रकार का इन कानूनों में प्रावधान है’, ये उनके आरोप हैं ।
९. मुंबई उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश की ओर से नए कानूनों का स्वागत
मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने नए कानूनों का स्वागत किया है । ‘किसी भी परिवर्तन के समय में उसका विरोध करना मानवीय प्रक्रिया है । मैं इन नए परिवर्तनों का स्वागत करता हूं’, ऐसा उन्होंने कहा है । ‘अभियोगों को गति से चलाने हेतु नए कानून लाभकारी सिद्ध होंगे’, ऐसा केंद्र सरकार का मत है । कानून कितने अच्छे, सक्षम तथा कठोर हैं, इसका कोई महत्त्व नहीं है, अपितु उनके कार्यान्वयन की व्यवस्था कैसी है, इसका महत्त्व है । डॉ. आंबेडकर ने भी संविधान के विषय में यही कहा था कि संविधान को चलानेवाले कैसे हैं ?’, इसे ध्यान में लेना पडेगा ।’
श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, मुंबई उच्च न्यायालय (७.७.२०२४)