साम्यवादियों का समकालीन हिन्दूविरोधी प्रचार !

२४ से ३० जून २०२४ के कालावधी में श्री रामनाथ देवस्थान, गोवा में हुए ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ के उपलक्ष्य में…

१. ‘साम्यवादी’ विचारधारा का भारत में प्रभाव कैसे बढा ?

साम्यवादी अथवा वामपंथी देश के लिए इतने नकारात्मक हैैं कि हमारे लिए उनके विषय में बोलने के लिए कुछ भी नहीं है । मेरा कहने का अर्थ है कि राष्ट्र के प्रति उनका व्यवहार बहुत भयंकर तथा अत्यंत दुखदायी होने के कारण उनके विषय में बोलने की आवश्यकता नहीं है; परंतु इन मार्क्सवादियों के प्रभाव के बहुत ही बुरे परिणाम हम भुगत रहे हैं; इसलिए उनके विषय में बोलना तथा उनके विषय में समझ लेना अत्यंत आवश्यक हो जाता है । वर्ष १८४८ में लंडन स्थित जर्मन अर्थशास्त्री तथा विचारक कार्ल मार्क्स ने उसके मित्र फ्रेडरिक एंजल्स की सहायता से ‘कम्युनिस्ट’ (वामपंथी) घोषणापत्र लिखा अर्थात कार्ल मार्क्स भारत कभी आया ही नहीं था । उसे विश्व की गतिविधियों की जानकारी नहीं थी । उसने स्वयं के ही दृष्टिकोण से विश्व का विचार किया तथा यह विचारधारा लिखी । उस समय की परिस्थिति के कारण यह विचारधारा अत्यंत लोकप्रिय हुई; परंतु वह अधिक समय तक टिक नहीं पाई । वर्ष १९८० में रूस, हंगरी जैसे प्रखर ‘साम्यवादी’ देश टूट गए । ‘सोवियत रूस’ के अनेक टुकडे होकर वहां साम्यवाद समाप्त हुआ; परंतु वह चीन में अभी भी है ।

डॉ. एस.आर. लीला

२. भारतीय ‘साम्यवादी’ तथा चीनी ‘साम्यवादी’ में निहित अंतर

भारतीय ‘साम्यवादी’ तथा चीनी ‘साम्यवादी’, इनमें अंतर है । आज भी चीन पर वहां के ‘साम्यवादी’ दल की सत्ता है । चीनी संस्कृति, उनका इतिहास, उनकी भाषा जैसे अनेक बातों में साम्यवाद स्थापित हुआ है, उदा. चीनी विचारक ‘कन्फ्यूशियस’ की सीख वहां के लोगों को सिखाई जाती है; परंतु भारतीय साम्यवाद इन सभी बातों के विरुद्ध है । यहां वेदांत प्रणाली अथवा दर्शन प्रणाली का प्रसार करनेवाले किसी आचार्य के नाम का भी उच्चारण किया, तो भी उसे सांप्रदायिक प्रमाणित किया जाता है, साथ ही हम सहस्रों वर्ष पीछे चल रहे हैं तथा प्रतिगामी लोग देश को गति से पीछे ले जा रहे हैं, ऐसा व्यर्थ आक्रोश किया जाता है । उसके कारण ही डॉ. आंबेडकर ने साम्यवाद को जंगल की आग की उपमा दी  है । जंगल की आग उसके मार्ग में आनेवाले प्रत्येक को नष्ट कर देती है । दावानल का अर्थ अग्नि नहीं है ।

‘ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् ।’
(ऋग्वेद, मण्डल १, सूक्त १, ऋचा १)

अर्थ : ‘अग्नि यज्ञ का अग्रणी है । यज्ञ का प्रमुख देवता वही है ।’

३. भारतीय साम्यवादी दल का देश पर हुआ निकृष्ट परिणाम

साम्यवाद ‘जंगल की आग’ है । ‘साम्यवादी’ (कम्युनिस्ट) दल के प्रभाव के कारण भारत में उस दल के सबसे घटिया अनुयायी तैयार हुए । साम्यवादी विचारधारा का भारतीय आचारों पर बुरा तथा आश्चर्यचकित करने वाला नकारात्मक परिणाम हुआ है । स्वामी विवेकानंदजी के प्रति हम सभी के मन में नितांत आदर है । एक हिन्दू संन्यासी के रूप में वे संपूर्ण विश्व में विख्यात हुए । पिछली शताब्दी के अंत में हिन्दू संस्कृति तथा हिन्दू तत्त्वज्ञान के लिए आवश्यक प्रेरणाशक्ति प्रदान करनेवाले स्वामी विवेकानंद ही थे । उन्होंने हिन्दू धर्म तथा हिन्दू तत्त्वज्ञान में समाहित उदात्त सिद्धांत, हिन्दू धर्म में निहित वैश्विक सत्य से संपूर्ण विश्व को अवगत कराया; परंतु दुर्भाग्य की बात यह कि बंगाल में स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मठ के लोगों को बलपूर्वक ‘हम हिन्दू नहीं, अपितु अल्पसंख्यक हैं’, ऐसा कहने पर विवश किया गया; अन्यथा ‘सरकार की ओर से उनकी संपत्ति हथिया ली जाएगी’, ऐसा उन्हें बताया गया । हिन्दू भले ही बहुसंख्यक हो; परंतु उन्हें संपत्ति का अधिकार नहीं है । उसके कारण स्वामी विवेकानंदजी जैसे एक श्रेष्ठ हिन्दू आध्यात्मिक गुरु के द्वारा स्थापित रामकृष्ण मठ को ‘हिन्दू’ नहीं, अपितु ‘अल्पसंख्यक’ के रूप में पहचान बनाने पर विवश किया गया । ‘भारतीय साम्यवादी दल’ का यह सबसे बुरा परिणाम है ।

४. साम्यवादी विचारधारा के कारण आधुनिक भारत में सहस्रों हत्याकांड

साम्यवाद, भारत तथा भारतीयों पर थोपा गया । आज कहीं भी उसका अस्तित्व नहीं है । पहले वह बंगाल के कोलकाता तथा केरल के कालीकट में था । अब वे कालीकट, कन्नूर तथा अन्य स्थानों पर हैं तथा अभी भी राज्य कर रहे हैं । हम वैश्विक शहरों के विषय में बात करते हैं; परंतु उनकी बातें आंशिक रूप से गांवों के विषय में होती हैं । वहां के प्रत्येक गांव पर साम्यवादी ‘कम्युनिस्ट’ दल का नियंत्रण है । साम्यवाद के अतिरिक्त किसी भी मनुष्य का अथवा विचारधारा का वहां कोई स्थान नहीं है । साम्यवाद को छोडकर बोलनेवाला एक भी व्यक्ति उनके गांव में पैर नहीं रख सकता । वैसा करने पर उन्हें तुरंत मिटा दिया जाता है । केरल में आज भी जिसका अस्तित्व है, उस साम्यवादी विचारधारा के कारण आधुनिक भारत में भी सहस्रों हत्याकांड हुए हैं । ‘साम्यवादी’ तथा ‘इस्लामी विचारधारा’ एकत्र हुई, तो उससे भारतीय जनता पर कितने भयंकर परिणाम होंगे’, इसे हमें ध्यान में लेना होगा ।

५. ‘इस्लामी तत्त्वज्ञान उदात्त वैश्विक सिद्धांतों  के साथ योग्यतापूर्ण पद्धति से नहीं रह सकता’, इसका डॉ. आंबेडकर को था भान !

हिन्दू राष्ट्र तो भारत में पहले से था । विदेशी भारत में जब आए, तब उन्होंने भी हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू लोग, हिन्दू जनता इत्यादि ऐसे ही माना; परंतु आधुनिक काल में हिन्दू राष्ट्र के विषय में बोलनेवाले केवल डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर थे । ‘पार्टिशन ऑफ इंडिया, थॉट्स ऑफ पाकिस्तान (भारत का विभाजन तथा पाकिस्तान के विचार)’, इस पुस्तक में उन्होंने जनसंख्या के लेनदेन के विषय में लिखा है । वीर सावरकर को भारत का विभाजन स्वीकार नहीं था; इसलिए उन्हें ‘मुसलमान भारत छोडकर चले जाएं’, ऐसा नहीं लगता था । डॉ. आंबेडकर अत्यंत व्यावहारिक थे । उनकी दूरदृष्टि इतनी थी कि इस्लामी तत्त्वज्ञान उदात्त वैश्विक सिद्धांतों के साथ योग्यतापूर्ण पद्धति से नहीं रह सकता’, यह उन्हें ज्ञात था । ‘मुसलमानों का विश्व की ओर देखने का दृष्टिकोण बहुत संकीर्ण है तथा उनके विचार भयंकर हैं; इसलिए वे हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते, ऐसा डॉ. आंबेडकर को लगता था । उन्होंने हिन्दू एवं मुसलमानों का तुलनात्मक अध्ययन किया तथा उसके पश्चात वे इस निष्कर्ष तक पहुंच गए । ‘भविष्य में हिन्दुओं को यदि एक शांत एवं समृद्ध देश चाहिए हो, तो वे उनके पाले में आनेवाले क्षेत्रों से सभी मुसलमानों को जाने दें तथा ऐसा हुआ, तभी वह ‘हिन्दुस्थान’ होगा ।

६. ‘हिन्दू एवं मुसलमानों का सहअस्तित्व देश के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा’, इसकी भविष्यवाणी करनेवाले डॉ. आंबेडकर !

डॉ. आंबेडकर एक विचारक थे । उन्होंने विश्व तथा राजनीतिक परिस्थिति को समझ लिया था । उसके कारण भारत के विभाजन के विषय में उन्होंने कहा था, ‘मुसलमान इतने आक्रामक हैं कि वे अपना हिस्सा लिए बिना नहीं छोडेंगे । इसलिए देश का विभाजन हो । मुसलमानों को मिलनेवाले क्षेत्र में एक भी हिन्दू नहीं होना चाहिए । सभी हिन्दुओं को हिन्दुस्थान में लाया जाए । हमें हिन्दुस्थान में यदि शांत एवं समृद्ध जीवन जीना है, तो सभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजा जाए । हिन्दुस्थान में एक भी मुसलमान नहीं रहना चाहिए ।’ आज यह बात कहने का साहस किसी में नहीं है ।

डॉ. आंबेडकर ने उनकी पुस्तक के अंत में उपसंहार लिखा है । ‘हिन्दू एवं मुसलमानों का सहअस्तित्व देश के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा’, ऐसा दूरदृष्टि से बोलनेवाले डॉ. आंबेडकर एकमात्र थे । वे कांग्रेस के नेताओं के कडे आलोचक थे । ‘भारत में हिन्दू बहुसंख्यक हैं तथा बहुसंख्यकों के विचारों को ध्यान में लेना ही पडेगा । उस समय किसी ने उनकी बात नहीं सुनी । यह सब उन्होंने वर्ष १९४० में अर्थात देश का विभाजन होने के ७ वर्ष पूर्व लिखा है । उस समय लोगों ने उनकी बातों का संज्ञान लिया होता, तो हमारी यह स्थिति नहीं होती । ‘हिन्दुओं की बुद्धि इतनी दुर्बल तथा तेजहीन कैसे हुई कि उन्हें ‘अगले १० वर्ष में क्या होगा ?’, यह देखना भी नहीं आता’, ऐसा बोलते हुए उन्होंने खेद भी व्यक्त किया है । अंत में उन्होंने ऐसा भी कहा है कि हिन्दुओं ने यदि अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया, तो वे नष्ट होंगे ।

७. केवल ‘जनसंख्या’ बनकर रह गया है आज का ‘लोकतंत्र’ !

जो हिन्दू, हिन्दू-मुसलमान एकता के विषय में बोल रहे थे, वैसा कभी हुआ ही नहीं । उसके विपरीत देश का विभाजन हुआ तथा उसके उपरांत अत्यंत भयानक स्थिति निर्माण हुई । आज का ‘लोकतंत्र’ केवल ‘जनसंख्या’ बनकर रह गया है । हम सामान्यरूप से ऐसा कहते हैं कि हमें अपने बच्चों को भगवद्गीता सिखानी चाहिए । अल्पसंख्यक उनके बच्चों को कुरान की शिक्षा देते हैं । उस शिक्षा में प्रत्येक बच्चे को हिन्दुओं को मारना सिखाया जाता है । हमें यह ज्ञात न होने से हम बडी सहजता से उनकी बातों में आ जाते हैं । वर्ष २०४७ तक वे इस्लामिक राज्य बनाने की योजना बना रहे हैं । उसे रोकना हमारे सामने एक बडी चुनौती है ।

– डॉ. एस.आर. लीला (भाजपा की पूर्व विधायक तथा लेखिका), बेंगळूरु, कर्नाटक.