विवेकहीन हिन्दू !

‘जैसे बच्चे धनी पिता की संपत्ति उडा देते हैं, वैसा हिन्दुओं ने किया है । सत्य, त्रेता, तथा द्वापर युग से चले आ रहे हिन्दू धर्म के ज्ञान को तुच्छ मानकर हिन्दू धर्म की स्थिति दयनीय बना दी है ।’

हिन्दू धर्म की अद्वितीयता दर्शानेवाली वास्तविकता !

‘अधिकांश अन्य पंथी धन का प्रलोभन देकर, कपट अथवा बलपूर्वक हिन्दुओं को अपने पंथ में खींचकर लाते हैं । इसके विपरीत हिन्दू धर्म में बताई साधना का महत्त्व समझ में आने पर समझदार अन्य पंथी हिन्दू धर्म का पालन करते हैं ।’

हिन्दुओं की रक्षा हेतु हिन्दू राष्ट्र ही आवश्यक है !

‘भारत के हिन्दू अपनी और सरकार हिन्दुओं की रक्षा नहीं कर सकती । ऐसे हिन्दू और सरकार क्या कभी पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के हिन्दुओं की रक्षा कर पाएगी ? हिन्दुओं की रक्षा के लिए हिन्दू राष्ट्र ही आवश्यक है ।’

रोग का उपचार करने की अपेक्षा रोग न हो, इसके लिए उपाय करना आवश्यक है, यह भी न समझनेवाले आज तक के शासनकर्ता !

‘बचपन से सात्त्विकता बढानेवाली साधना न सिखाने के कारण सर्वत्र भ्रष्टाचार, बलात्कार, गुंडागिरी, हत्या इत्यादि बढ गए हैं, यह भी सरकार को समझ में नहीं आता !’

प्रकृति के अनुसार साधना, यह हिन्दू धर्म की अद्वितीयता !

डॉक्टरों में छोटे बच्चों के डॉक्टर, स्त्रियों के डॉक्टर, आंखों के डॉक्टर, हृदयविकार विशेषज्ञ, मनोविकारत विशेषज्ञ ऐसे अनेक प्रकार हैं, उसी प्रकार साधना में भी आयु, स्त्री-पुरुष, वर्ण इत्यादिन के अनुसार भेद हैं । साधना के संदर्भ में इतने भेद होना, हिन्दू धर्म की अद्वितीयता दर्शाता है ।

अध्यात्म विहीन विज्ञान का मूल्य शून्य है !

‘मानव को साधना एवं अध्यात्म सिखाए बिना वह ‘सुखी जीवन जी सके’, इसके लिए विविध उपकरण देनेवाले विज्ञान का मूल्य शून्य है ।’

ऐसा हो जाए, तो आश्चर्यचकित न हों !

‘कश्मीर के उपरांत भारत के जिन-जिन गांवों में धर्मांध बहुसंख्यक हैं, वहां वे ‘हमें पाकिस्तान से जोडें’, ऐसी मांग करें, तो आश्चर्य नहीं होगा !’

साधना का अनन्य महत्त्व !

‘साधना के कारण ‘भगवान चाहिए’, ऐसा लगने लगे, तो ‘पृथ्वी पर और कुछ चाहिए’, ऐसा नहीं लगता । इस कारण किसी से ईर्ष्या-द्वेष नहीं लगता साथ ही अन्यों के साथ दूरियां, झगडे नहीं होते ।’

देह प्रारब्ध पर छोडकर चित्त को चैतन्य से जोडनेवाले श्री. सत्यनारायण रामअवतार तिवारी (आयु ७४ वर्ष) सनातन के १२४ वें संतपद पर विराजमान

पू. सत्यनारायण तिवारीजी गत २ वर्ष से बीमार हैं, इसलिए उन्हें सतत लेटे रहना पडता है । ऐसी स्थिति में भी उन्होंने आंतरिक साधना के बल पर सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा से संतपद प्राप्त किया ।