यौन शोषण करनेवाले पादरियों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए प्रतिबद्ध !
पूर्व पोप बेनिडिक्ट द्वारा दोषी पादरियों पर कार्यवाही न किए जाने के उन पर लगे आरोपों के उपरांत अब वर्तमान पोप फ्रान्सिस का स्वयं के बचाव का प्रयास !
पूर्व पोप बेनिडिक्ट द्वारा दोषी पादरियों पर कार्यवाही न किए जाने के उन पर लगे आरोपों के उपरांत अब वर्तमान पोप फ्रान्सिस का स्वयं के बचाव का प्रयास !
पादरियों के द्वारा विगत कई दशकों से बालकों का यौन शोषण होने के आरोप लग रहे हैं तथा इस प्रकरण में पूर्व के पोप ने क्षमायाचना भी की है, साथ ही पीडितों को करोडों रुपए की हानिभरपाई भी दी जा चुकी है; परंतु तब भी ऐसी घटनाएं न रुकने के पीछे दोषी पादरियों पर कठोर कार्यवाही न की जाना ही मुख्य कारण है, यह स्पष्ट होता है !
भारत के देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियों की तस्करी होना, पुरातत्व विभाग के लिए लज्जाजनक है ! प्राचीन मूर्तियों एवं धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए स्थापित यह विभाग यदि क्षमता से काम नहीं कर रहा है, तो यह विभाग बंद कर देना चाहिए !
मस्जिद बंद करने के आधिकारिक कागजातों में कहा गया है कि ‘इमाम ने जिहाद को एक कर्तव्य’ कहा तथा जिहादियों को ‘इस्लाम के नायक’ के रूप में वर्णित किया । साथ ही, इमाम ने मुसलमानों के अतिरिक्त अन्य पंथियों को शत्रु घोषित कर दिया ।
पिछले वर्ष कोरोना की दूसरी लहर में भारत में कोरोना गति से फैलने से पश्चिमी मीडिया ने किसी भी प्रकार से भारत की खिंचाई की थी । अब युरोप के मृतप्राय स्थिति में आने से वहां की मीडिया मौन धारण किए हुए है । यह उनका दोहरापना है, यह ध्यान दें !
गुनहगारों का बचाव करने के विषय में विश्वभर के मुसलमान चुप क्यों ?
‘प्रलोभन देकर दरिद्रों एवं आदिवासियों का धर्मांतरण करना, तदुपरांत उन्हें ठगाना, कॉन्वेंट स्कूलों में हिन्दू छात्रों को उनके धर्म के अनुसार आचरण करने से रोकना, यह भी ईश्वर का ही अपमान है’, ऐसा पोप फ्रान्सिस कब कहेंगे तथा ईसाई मिशनरियों को ऐसा करने से कब रोकेंगे ?
‘आर्ट रिकवरी इन्टरनैशनल’, इस संस्था के संस्थापक मारिनेलो को यह मूर्ति एक महिला से, उसके पति की मृत्यु के पश्चात, घर की वस्तुएं विक्रय करते हुए मिली थी।
विशेषज्ञोंद्वारा बताया जा रहा है कि, एस्ट्रेजेनिका की मात्रा ओमिक्रॉन के विरोध में ७६ प्रतिशत ही लाभदायक सिद्ध हो रही है। भारत में यही एस्ट्रोजेनेका का टीका, ‘कोविशिल्ड’ नाम से दिया जाता है !
ऐसा होगा, तो इसके लिए ‘स्वतंत्रता के ७४ वर्षों बाद भारत ने की प्रगति’, ऐसा कहेंगे क्या ? साथ ही, विदेशी संस्था की ओर से प्रकाशित की गई इस प्रकार की रिपोर्ट पर कितना विश्वास रखना चाहिए ?, इसका भी विचार करने की आवश्यकता है !