MP HC On Hindu Muslim Marriage : मुसलमान युवक एवं हिन्दू युवती का विवाह वैध प्रमाणित नहीं हो सकता !

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय

  • ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के अनुसार विवाह कानून में अमान्य !

जबलपुर (मध्य प्रदेश) – मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि मुसलमान युवक एवं हिन्दू युवती के बीच विवाह मुसलमान कानून के अनुसार, अर्थात ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के अनुसार वैध प्रमाणित नहीं हो सकता । विशेष विवाह कानून के अंतर्गत अंतर्धर्मीय विवाहों को पुलिस सुरक्षा देने की मांग भी न्यायालय ने अस्वीकार कर दी है ।

विशेष विवाह कानून के अंतर्गत विवाह भले ही पंजीकृत हो, तब भी वह वैध माना नहीं जाएगा !

उच्च न्यायालय ने कहा है कि मुसलमान युवक एवं हिन्दू युवती भले ही विशेष विवाह कानून के अनुसार करें, तब भी ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के अनुसार (मुसलमान व्यक्तिगत कानून के अनुसार) वह अनियमित विवाह माना जाएगा । मुसलमान कानून के अनुसार मुसलमान युवक का मूर्तिपूजक एवं अग्निपूजक युवती से विवाह वैध नहीं है । यद्यपि विवाह विशेष विवाह कानून के अंतर्गत पंजीकृत हो, तथापि उसे वैध माना नहीं जाएगा ।

उच्च न्यायालय में प्रविष्ट की गई याचिका में हिन्दू युवती एवं मुसलमान पुरुष ने विशेष विवाह कानून के अंतर्गत विवाह करने की इच्छा व्यक्त की थी । ‘विवाह के उपरांत भी वे अपने धर्म का पालन करते रहेंगे । वे एकदूसरे का धर्म स्वीकार करने की इच्छा नहीं रखते हैं । ऐसी परिस्थिति में युगल को पुलिस सुरक्षा दी जानी चाहिए, जिससे वे विशेष विवाह कानून के अंतर्गत उनके विवाह का पंजीकरण कर सके ।

पर्सनल लॉ के अंतर्गत दो भिन्न धर्म के लोग विवाह नहीं कर सकते; परंतु विशेष विवाह कानून के अंतर्गत वह कानूनी होगा’, ऐसा उनके अधिवक्ता ने न्यायालय में कहा है ।

उच्च न्यायालय ने कहा है कि व्यक्तिगत कानून के अनुसार अवैध विवाह, विशेष विवाह कानून के अनुसार भी वैध नहीं हो सकता । विशेष विवाह कानून के धारा ४ के अनुसार यदि दोनों में से एक अपने जीवनसाथी का धर्म स्वीकारता है, तभी विवाह हो सकता है ।

संपादकीय भूमिका

पुलिस एवं कनिष्ठ न्यायालयों के इस आदेश के अनुसार ही ऐसे प्रकरणों की ओर देखा जाएं, यही हिन्दुओं की अपेक्षा है !