Patanjali Case : पतंजलि मामले में ‘आपको फाड डालेंगे’ कहनेवाले सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पर कुछ भूतपूर्व न्यायमूर्तियों द्वारा टिप्पणी !

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और योगऋषी बाबा रामदेव

नई देहली – पतंजलि प्रतिष्ठान ने लागों को दिशाहीन करनेवाले विज्ञापन प्रसारित किए । इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही है । इस मामले में योगऋषी बाबा रामदेव और आचार्य बाळकृष्ण ने न्यायालय में बिना किसी शर्त क्षमायाचना की थी; परंतु न्यायालय ने इसका स्वीकार करने के लिए नकार दिया था । इस समय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायमूर्ति हिमा कोहली के खंडपिठ ने इस मामले में कार्यवाही करने में निष्क्रिय रहे उत्तराखंड अनुमति प्राधिकरण के बारे में अप्रसन्नता व्यक्त की । इस समय न्यायालय ने वहां उपस्थित प्राधिकरण के अधिकारी से ‘आपको फाड डालेंगे’, ऐसा वक्तव्य दिया था । सर्वोच्च न्यायालय के इस वक्तव्य पर भूतपूर्व सरन्यायाधीश और न्यायमूर्ति ने प्रश्न उपस्थित कर सर्वोच्च न्यायालय की इस भूमिका पर टिप्पणी की है । यह समाचार ‘हिंदुस्थान’ के जालस्थल पर आया है ।

१. इस समाचार में भूतपूर्व न्यायामूर्ति ने कहा है कि न्यायालयीन सुनवाई के समय संयम के आदर्श सदा के लिए स्थापित किए गए हैं और उनका उपयोग निष्पक्ष वादविवाद के लिए किया गया है । ‘हम आपको फाड डालेंगे’ ऐसा कहने की यह भाषा सडक छाप है और यह संकटजनक है । ऐसे शब्द संवैधानिक न्यायालय के न्याय के शब्दकोश का भाग नहीं हो सकते ।

२. भूतपूर्व न्यायामूर्ति ने सुझाया है कि न्यायमूर्ति अमानुल्ला को न्यायालयीन वर्तन का अपनेआप को परिचय करवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के २ निर्णय देखने चाहिए, जो इस प्रकार हैं – कृष्ण स्वामी विरुद्ध युनियन ऑफ इंडिया (वर्ष १९९२) और सी. रविचंद्रन् अय्यर विरुद्ध न्यायमूर्ति ए.एम्. भट्टाचारजी (वर्ष १९९५) ।

३. कृष्ण स्वामी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधिशों का वर्तन समाज के सामान्य लोगों की तुलना में अच्छा होना चाहिए । न्यायिक वर्तन के आदर्श खंडपिठ पर और बाहर भी सामान्यतः उच्च होते हैं । न्यायाधिश को चरित्र, सत्यनिष्ठा अथवा निष्पक्षता पर जनता का विश्वास अल्प करनेवाले आचरण का त्याग करना चाहिए ।

४. रविचंद्रन् मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि न्यायालयीन कार्यालय एक सार्वजनिक न्यास है । इसलिए न्यायाधीश निष्ठावान, तत्त्वनिष्ठ और नैतिक सामर्थ्य से युक्त होना चाहिए । ऐसी अपेक्षा करने का समाज को अधिकार है ।