* नगर नियोजन के अंतर्गत प्रस्तावित रास्ते के लिए सार्वजनिक स्थान पर निर्माण किए गए मंदिर गिराने का आदेश !
नई देहली – मंदिर निर्माण करना यह भारत में सार्वजनिक भूमि हडपने का दूसरा मार्ग बना है, ऐसा निरीक्षण गुजरात उच्च न्यायालय ने कर्णावती में कुछ स्थानीय हिन्दुओं द्वारा प्रविष्ट की एक याचिका पर सुनवाई के समय किया । याचिका में प्रशासन के विरोध में दावा किया गया था कि नगर नियोजन के अंतर्गत सार्वजनिक रास्ता बनाने के लिए मंदिर गिराया गया ।
१. उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश सुनीता अगरवाल ने कहा कि इस प्रकार से लोग सभी को भावना के स्तर पर ‘ब्लैकमेल’ करते हैं ।
२. इस प्रकरण में ९३ घरों के लोगों ने इस क्षेत्र में नगर नियोजन के अनुसार हो रहे रास्ते के निर्माण का विरोध किया है । न्यायमूर्ति ने इस रास्ते के काम को दी चुनौती नकार दी है । महानगरपालिका ने न्यायालय को बताया कि इस नगर नियोजन में एक भी व्यक्ति का घर नहीं गिराया जाएगा ।
३. लेकिन स्थानीय नागरिक प्रस्तावित रास्ते के मार्ग में आने वाले मंदिर को बचाने के लिए आगे आए हैं । यह मंदिर हमने चंदा जमा कर बनाया है और हम इससे भावना के स्तर पर जुडे हैं, ऐसा उनका कहना है ।
४. न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि जिस स्थान पर मंदिर निर्माण किया गया है, यह स्थान याचिकाकर्ता के अधिकार का नहीं है । अपने घर के एक कक्ष में मंदिर निर्माण करें अन्यथा मंदिर गिराया जाएगा, ऐसा अंतरिम आदेश इस समय न्यायालय ने दिया । (अल्पसंख्यकों के प्रार्थना स्थल के विरोध में ऐसा आदेश दिया गया होता, तो संपूर्ण कर्णावती शहर में क्या हुआ होता, ऐसा प्रश्न सामान्य जनता के सामने खडा हुआ है ! – संपादक) इस प्रकरण में अब अगली सुनवाई ११ मार्च के दिन होने वाली है ।
संपादकीय भूमिकाहिन्दुओं के मंदिर सार्वजनिक स्थानों पर होने से हिन्दू हमेशा ही सामंजस्य की भूमिका लेकर मंदिर के स्थानांतरण के लिए तैयार रहते हैं, दूसरी ओर देश के अधिकांश शहरों में स्थान-स्थान पर रास्तों के बीचों-बीच दरगाह बनाई गई हैं । स्थानीय प्रशासन उनका समय पर विरोध करने का साहस नहीं करता, यह वस्तुस्थिति है । न्यायालय को ऐसी घटनाओं की ओर भी ध्यान देना चाहिए, ऐसी सामान्य जनता की अपेक्षा है ! |