हिन्दू पक्ष ने वर्ष १९०२ में हुए सर्वेक्षण की वैज्ञानिक पद्धति से जांच करने की मांग की है !
इंदौर (मध्य प्रदेश) – राज्य के धार जिले में स्थित ऐतिहासिक भोजशाला का सर्वेक्षण करने की हिन्दुओं की मांग पुनः एकबार तेज हो गई है । इस संदर्भ में ७ जनहित याचिकाओं पर १९ फरवरी को इंदौर के उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई । इस समय वर्ष १९०२ में हुए भारतीय पुरातत्व विभाग के भोजशाला की जांच का उदाहरण देते हुए हिन्दू पक्ष ने नए ढंग से सर्वेक्षण करने की मांग की है । न्यायालय ने अपना निर्णय घोषित नहीं किया है ।
१. हिन्दू पक्ष के पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैन ने कहा, ‘वर्ष १९०२ में हुए भोजशाला के सर्वेक्षण में भारतीय वास्तुकला, श्रीविष्णु की प्रतिमा, हिन्दू चिह्न, संस्कृत शब्द आदि प्रमाण प्राप्त हुए हैं । इन सबकी जांच वैज्ञानिक पद्धति से की जाए । इससे विषय सुस्पष्ट हो सकेंगे । हमारी याचिका में मांग की गई है कि भोजशाला में हिन्दुओं को नियमित पूजा करने का अधिकार है । वहां मुसलमान समाज भी नमाजपठन करता है । उनका पठन प्रतिबंधित करना चाहिए ।
२. मुसलमान पक्ष ने कहा, ‘जबलपुर के न्यायालय में इस प्रकरण की सुनवाई चालू है । इस कारण इंदौर उच्च न्यायालय द्वारा उस याचिका की जानकारी भी मंगाई गई है ।’
भोजशाला का घटनाक्रम !
वर्ष १९०२ : लॉर्ड कर्जन धार एवं मांडू के दौरे पर थे । उस समय उन्होंने भोजशाला की देखभाल-दुरुस्ती के लिए ५० सहस्र रुपए व्यय करने की अनुमति दी थी । उस समय भोजशाला का सर्वेक्षण भी किया गया था ।
वर्ष १९५१ : भोजशाला को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में घोषित किया गया । उस समय जारी किए सरकारी पत्र में भोजशाला एवं कमाल मौला मस्जिद का उल्लेख पाया गया है ।
वर्ष १९९५ : इस काल में हुए विवाद के उपरांत सरकार ने मुसलमानों को प्रत्येक शुक्रवार नमाजपठन करने की अनुमति दी, जबकि हिन्दुओं को वसंतपंचमी के दिन पूजन करने की अनुमति दी गई । जब जब वसंतपंचमी शुक्रवार को आई, तब तब धर्मांध मुस्लिमों ने हिन्दुओं पर आक्रमण किया । वर्ष २०१३ में पुलिस ने हिन्दुओं पर लाठीचार्ज भी किया था । आगे हिन्दुओं को प्रत्येक मंगलवार पूजा के लिए, तो मुसलमानों को प्रत्येक शुक्रवार नमाजपठन करने की अनुमति दी गई ।