ब्रिटेन में भारतीय वंश के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकार होते हुए अभी-अभी हिन्दुओं के लिए एक खेदजनक समाचार सामने आया है । वहां भारतीय पुजारियों का वीसा अस्वीकार किया जा रहा है । पुजारियों के अभाव में वहां ५०० में से ५० मंदिर बंद कर दिए गए हैं । ५० कोई छोटी संख्या नहीं है । आज पूरे विश्व में हिन्दू तथा हिन्दुत्व के लिए सम्मानजनक वातावरण होते हुए ब्रिटेन की यह घटना निश्चित ही हिन्दुओं को व्यथित करती है । यह हिन्दुओं के लिए अपमानजनक है । पुजारी न होने से मंदिरों के अनेक कार्य रुक गए हैं । पुजारी न होने से मंदिरों में होनेवाले कार्यक्रम, विवाह-विधि आदि की दृष्टि से अडचन हो रही है । ‘ब्रिटिश सरकार को ‘वीसा’ देने की प्रक्रिया में गति लाने की आवश्यकता है । बर्मिंघम के लक्ष्मीनारायण मंदिर के सहायक पुजारी सुनील शर्मा ने कहा, ‘ऐसी अपेक्षा थी कि हिन्दू होने से ऋषि सुनक हमारी समस्याएं समझेंगे’, किंतु सरकार उसमें विफल रही है ।’ इस घटना पर सुनक सरकार ने अभीतक कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी है ।
मंदिर प्रत्येक हिन्दू के लिए आत्मीयता और धार्मिक आस्था एवं भावनाओं के स्रोत हैं । हिन्दू बहुल होने से भारत में लाखों मंदिर हैं; किंतु श्रद्धालु हिन्दुओं के लिए ब्रिटेन जैसे देश में ५०० मंदिर होना भी महत्त्वपूर्ण है । ऐसे में उनमें से ५० मंदिर बंद कर देना हिन्दुओं पर बडा आघात ही है । इसलिए यहां के हिन्दू संतप्त होकर सुनक सरकार के प्रति खेद तथा क्षोभ व्यक्त कर रहे हैं । ‘देवालय ही बंद होने लगें, तो हिन्दू कहां जाएं ?’ सुनक सरकार हिन्दुओं को इसका उत्तर दे । कुछ समय पूर्व सुनक ने स्वयं कहा था, ‘ये मंदिर भारतीय मूल्य, संस्कृति एवं विश्व में योगदान को दर्शानेवाले महत्त्वपूर्ण धरोहर (विरासत) हैं । पर ये चिह्न ही मिटाए जा रहे हों, तो उसे क्या कहा जाए ? मंदिरों के प्रति धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील सुनक से हिन्दुओं को यह अपेक्षित ही नहीं है । इसके विपरीत यह अपेक्षा की गई कि हमारे देश में वर्तमान मंदिराें के संरक्षण के साथ-साथ और अधिक मंदिरों को बढाने के प्रयास किए जाएं तथा उनके माध्यम से धार्मिकता को विकसित करने का प्रयास किया जाए; किंतु दुर्भाग्य से वैसा हुआ ही नहीं । ब्रिटेन में भारतीय हिन्दुओं की आबादी २० लाख है । कुछ सहस्र हिन्दू ५० मंदिराें में जाते रहे होंगे । अब वे कहां जाएं? इन मंदिराें पर निर्भर लोग आजीविका का साधन कहां ढूंढें ? आज ५० मंदिर बंद किए गए, भविष्य में उसमें बढोत्तरी हुई, तो आगे चलकर वहां के हिन्दुओं का अस्तित्व ही संकट में पड सकता है । ऐसे गंभीर परिणामाें पर गंभीरता से विचार होना चाहिए । यह सब देखते हुए सरकार पुजारियों को वीसा दिलाने का प्रयास करे, अथवा वीसा मिलने की प्रक्रिया में आ रही अडचनें दूर करे !
ब्रिटेन के कुछ मंदिराें की विशेषता यह है कि वे सहस्रों वर्ष पुराने हैं । उनका पता विगत कुछ वर्षाें में लगा है । इससे पता चलता है कि ब्रिटेन में मंदिर संस्कृति सहस्रों वर्ष से अस्तित्व में थी । इसे ध्यान में रखते हुए मंदिर की धरोहर को संरक्षित और सुरक्षित रखकर उसका संवर्धन करना ब्रिटिश सरकार, साथ ही वहां के हिन्दुओं का दायित्व तथा धार्मिक कर्तव्य है । उसे क्रियान्वित करना समयानुकूल होगा !
प्रधानमंत्री के विधान एवं वास्तविकता !
ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री पद पर विराजमान होना हिन्दू और हिन्दू धर्म के लिए आशादायी था । वर्ष २०२३ में नई देहली आने पर वे बोले थे, ‘मुझे अपने भारतीय वंश पर तथा भारत के साथ विशेष संबंध पर गर्व है । ‘गौरवान्वित हिन्दू’ का अर्थ है कि भारत और भारत के लोगों से सदैव मेरे संबंध बने रहेंगे ।’ भारतीय वंश पर गर्व है, तो उन्हें मंदिरों के प्रति संवेदनशीलता और आदर प्रतीत होना चाहिए । भारतीय पुजारियों को न्याय देने के लिए वीसा मिलता है; किंतु वैसा नहीं होने से कहा जा सकता है कि इस विषय में कुछ सीमा तक सुनक असफल रहे । प्रधानमंत्री होने से पहले भी सुनक ने कहा था, ‘जनता क्या चाहती है, वह मैं नहीं दूंगा, अपितु राष्ट्रहित में निर्णय लूंगा ।’ राष्ट्रहित में धर्महित समाहित रहता है । इसलिए उन्हें दोनों पक्षों को समझकर सक्रिय रहना चाहिए । ‘मुझे मेरे ब्रिटिश होने के साथ हिन्दू होने का अभिमान है । मेरे परिजन हवन, पूजा और आरती करते हैं । मैं रामायण, भगवद्गीता तथा हनुमान चालीसा पढता हूं । मेरे कार्यालय के पटल पर सोने की श्री गणेशमूर्ति है । कोई भी कृति करने से पूर्व श्री गणेश मुझे सुनने एवं चिंतन करने की सीख देते हैं’, ये शब्द भी सुनक के ही हैं ! ब्रिटेन में मंदिरों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सुनक के शब्दों में कुछ विसंगति दिखाई देती है, जो हिन्दुओं को अपेक्षित नहीं थी । उनके प्रधानमंत्री बनने पर ब्रिटेन में हिन्दुत्व का बडी मात्रा में उद्घोष किया गया था । हिन्दुओं को भी वहां सुरक्षित एवं अच्छे भविष्य की दिशा मिली थी; किंतु मंदिरों पर प्रतिबंध लगने से कुछ सीमा तक इसे नापसंद किया जा रहा है ।
२० लाख हिन्दुओं का उद्घोष चाहिए !
वर्तमान स्थिति में भारत हो अथवा विदेश, पृथ्वी पर कहीं भी ‘हिन्दू’ कहा, तो एक तो वह दुर्लक्षित रहता है अथवा उससे द्वेष किया जाता है । इस कारण हिन्दुओं की समस्या का समाधान नहीं होता । ऐसे में यदि मंदिर बंद होने लगें, तो यह हिन्दुओं के लिए धार्मिक दंड ही होगा । ब्रिटेन में हिदुओं को यह दंड सहन न कर इसके विरुद्ध बोलना चाहिए । पुजारियों को संगठित होकर सरकार से वीसा देने की तथा तत्काल मंदिर खोलने की मांग करनी चाहिए । इन ५० मंदिरों को बचाने के लिए ब्रिटेन के २० लाख हिन्दुओं को संगठित होना चाहिए । न केवल ब्रिटेन, अपितु हिन्दू बहुल भारत के हिन्दू एवं हिन्दू संगठनों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी ब्रिटेन की घटनाओं को ध्यान में लेकर मंदिरों को खोलने के लिए ब्रिटिश सरकार से संपर्क करना चाहिए । मंदिर की रक्षा के लिए बडा आंदाेलन चलाकर ब्रिटिश सरकार का भी विरोध करना चाहिए । यदि वैसा हुआ तो सरकार भी मंदिर बंद करने का विचार पुन: नहीं करेगी तथा बंद किए गए मंदिरों को वापस खोल दिया जाएगा ।
अयोध्या में श्री रामलला का ५०० वर्षाें से चल रहा संघर्ष वर्ष २०२४ में समाप्त हुआ तथा मंदिर में श्री रामलला की मूर्ति विराजमान हुई । उसकी नित्योपासना एवं पूजा भी होने लगी । वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में व्यास तलघर में ३१ वर्षाें से प्रतिबंधित पूजा होने लगी । भारत में यह सब होते हुए ब्रिटेन में मंदिर बंद करने की विवशता, इसे हिन्दू धर्म का अपमान ही कहेंगे । समय रहते ‘सुनक सरकार जगकर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को संरक्षित करने के लिए भारतीय पुजारियों की वीसा प्रक्रिया में तेजी लाए’, पूरे विश्व के हिन्दुओं की यही अपेक्षा है !
भारत में ५०० वर्षाें के उपरांत मंदिर में श्रीरामलला के विराजमान होने पर ब्रिटेन में ५० मंदिरों का बंद होना, हिन्दुओं को व्यथित कर रहा है ! |