सभी हिन्दू मंदिर स्वतंत्र होंगे, उस दिन भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करने से कोई नहीं रोक सकता ! – पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी, सर्वाेच्च न्यायालय

‘इस देश में बाबर के नाम से कुछ बने’, यह हिन्दू कदापि नहीं सहेंगे !

सर्वाेच्च न्यायालय ने रामजन्मभूमि के अभियोग में ऐसा भी एक निर्णय दिया है कि मस्जिद के लिए ५ एकड भूमि दी जाए । यह निर्णय सर्वाेच्च न्यायालय का है, इसलिए मैं उसे स्वीकार करता हूं । इस निर्णय के उपरांत मैंने इससे संबंधित एक याचिका भी प्रविष्ट की थी, ‘मुसलमानों को किसी भी प्रकार की भूमि देना अनुचित है । इस आदेश को सर्वथा निरस्त करना चाहिए ।’ मैं ऐसा समझता हूं कि हिन्दुओं को ऐसा लगना चाहिए कि जो मस्जिद बन रही है, वह बननी ही नहीं चाहिए; क्योंकि हिन्दुओं के पैसे, सरकारी पैसे अथवा सरकार की भूमि पर कोई भी मस्जिद नहीं बनाई जा सकती । इस ढांचे के, अर्थात बाबरी के स्थान पर उन्हें थोडी भूमि देनी है, यह बात अत्यंत गलत है । रही बात उस मस्जिद के भूमिपूजन की, तो मुसलमानों में भूमिपूजन किया ही नहीं जाता । निर्माणकार्य वे कभी भी कर सकते हैं । मेरी समझ के अनुसार उसके लिए किसी भी नेता, सरकारी पदाधिकारी, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अथवा किसी भी मंत्री अथवा राज्य सचिव को ऐसे कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए; ‘इस देश में बाबर के नाम पर कुछ बने’, यह हम हिन्दू कदापि नहीं सह सकते और हमें (हिन्दुओं को) उसे सहना भी नहीं है । मेरा निवेदन है कि उसमें कोई भी सम्मिलित न हो और उस कार्यक्रम का संपूर्ण बहिष्कार किया जाना चाहिए ।

– पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी, सर्वाेच्च न्यायालय.

रामजन्मभूमि के अभियोग (मुकदमे) में हिन्दू महासभा की ओर से सर्वाेच्च न्यायालय में पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी ने अभियोग लडा था । इस अभियोग के विषय में, अयोध्या में निर्माण होनेवाले श्रीराम मंदिर और पुन: नए सिरे से बनाई जानेवाली बाबरी मस्जिद के विषय में पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी द्वारा प्रस्तुत भूमिका यहां दे रहे हैं ।

पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी

१. ३० वर्षाें के संघर्ष के उपरांत बाबरी ढांचा हटाया गया !

रामजन्मभूमि के अभियोग में मैंने वर्ष १९८९ से हिन्दू महासभा की ओर से अधिवक्ता के रूप में अभियोग लडा है । जिस समय मैं इस अभियोग में आया, उस समय हिन्दुत्व के विषय में अथवा प्रखर राष्ट्रवाद के विषय में बोलना बहुत कठिन था । रामजन्मभूमि का अभियोग जिस प्रकार तत्कालीन केंद्र सरकार चला रही थी, हमें ऐसी कोई आशा नहीं दिखाई दे रही थी कि कभी ऐसा समय आएगा, जब हमारा सपना पूर्ण होगा और हम भव्य मंदिर बना सकेंगे । हमने वर्ष १९८९ से वर्ष २०१९ तक (३० वर्ष) लगातार संघर्ष किया । हम कानूनी विशेषज्ञों का एक गुट था और मैं भी उस गुट का एक सामान्य भाग था । हम सभी ने मिलकर कुछ ऐसी कानूनी लडाई लडी कि अन्य धर्मियों के दांत खट्टे हो गए । जिला न्यायालय से लेकर सर्वाेच्च न्यायालय तक यह सिद्ध हो गया कि वह जन्मभूमि केवल राममंदिर की है । सर्वाेच्च न्यायालय में भी हमें सफलता मिली । सर्वाेच्च न्यायालय ने उस निर्माण को तोडने का आदेश दिया । हमारा एक सपना था कि वह कलंकित ढांचा हटाया जाना चाहिए ।

२. ‘भगवान राम इस देश के प्राण हैं’, ऐसा इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बताया जाना

मैं आपको एक घटना बताता हूं । जब बाबरी का ढांचा तोडा गया, उसके उपरांत हिन्दुओं को श्रीराम की पूजा-अर्चना करने से प्रतिबंधित किया गया । भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना रोक दी गई थी । उस समय हम लोगों ने तथा मैंने ‘विश्व हिन्दू अधिवक्ता’ संगठन के महासचिव होने के नाते २१ दिसंबर १९९२ को अर्थात ढांचा गिराए जाने के १५ दिन उपरांत इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका प्रविष्ट की । ईश्वर की कृपा से न्यायालय की सर्दियों की छुट्टी होते हुए भी उस याचिका पर सुनवाई हुई तथा उस सुनवाई में एक बहुत अच्छा निर्णय हुआ, जिसके कारण हिन्दू समाज को जो असंभव लगता था, वह संभव हुआ । वह निर्णय था, ‘भगवान श्रीराम इस देश के प्राण हैं । भगवान श्रीराम का एक कानूनी अस्तित्व है । संविधान के पृष्ठों पर उनका चित्र है तथा ‘भगवान राम की पूजा-अर्चना करना, प्रत्येक हिन्दू का दायित्व एवं कर्तव्य है तथा वह उनका अधिकार है ।’ यह निर्णय १.१.१९९३ को आया था । मैं यह भी बताना चाहता हूं कि भगवान श्रीराम का चित्र संविधान के पृष्ठ पर भी छापा गया है । यह बात किसी को ज्ञात नहीं है । इस अभियोग के उपरांत ही सभी को उक्त तथ्य ज्ञात हुआ तथा आज राममंदिर के विषय में जो कुछ भी हो रहा है, वह आपके सामने है । राममंदिर का निर्माण होना, कोई साधारण घटना नहीं है; क्योंकि जब मंदिर के निर्माण की प्रथम प्रक्रिया आरंभ हुई थी, उस समय अभियोग चल रहा था ।

३. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अभियोग लडते समय की स्थिति तथा न्यायालय का निर्णय

राममंदिर के अभियोग में ऐसे बहुत क्षण आए, जिन क्षणों के विषय में मैं सब कुछ नहीं बता सकता; हमें ही ज्ञात नहीं हुआ कि क्या हुआ है ? इनमें कुछ न्यायाधीश ऐसे भी थे, जो किसी के संबंधी थे । इस अभियोग में हमने यह भी आवेदन दिया था कि मा. न्यायाधीशजी, आप उनकी (अभियोजन पक्ष की) बात नहीं सुन सकते; क्योंकि आप अमुक व्यक्ति के संबंधी हैं । उसके उपरांत जैसे-तैसे दूसरी सुनवाई हुई तथा ३.९.२०१० को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हमें अपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें उन्होंने रामजन्मभूमि का ३ भागों में विभाजन किया, जो अत्यंत अनुचित था ।

४. समर्पित भाव से रामजन्मभूमि का अभियोग लडने से विजय प्राप्त होना

मैं तथा मेरे जितने भी हिन्दू अधिवक्ता साथी थे, हिन्दुत्वनिष्ठ थे तथा अभियोजनकर्ता थे; हम सभी ने इस निर्णय को सर्वाेच्च न्यायालय में चुनौती दी । सर्वाेच्च न्यायालय ने ९.१.२०१९ को निर्णय दिया, ‘यह संपूर्ण भूमि हिन्दुओं की है ।’ इस विजय के कारण हमारे श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है । मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि जब कभी हम सतर्क रहकर, विशुद्ध मन से तथा समर्पित भाव से कोई कार्य करते हैं, तो वह पूर्ण होता है । मन से तथा अंतःकरण से उस कार्य को करना आवश्यक होता है । मुझे इस बात की अनुभूति हुई है कि मुझ में प्रचंड आत्मविश्वास जागृत हुआ तथा मुझे इस बात की बडी प्रसन्नता है कि रामजन्मभूमि के अभियोग में हम सफल हुए हैं ।

५. राममंदिर के उपरांत काशी एवं मथुरा की मुक्ति का कार्य आरंभ !

आज श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य पूर्णत्व की ओर बढ रहा है । रामजन्मभूमि के निर्णय के उपरांत मेरी अगली न्यायालयीन लडाई की तैयारी आरंभ हुई । काशी, मथुरा सहित देश में ऐसे मंदिर हैं, जिनकी मुक्ति के लिए कार्य चल ही रहा था । उसके उपरांत हमने सर्वप्रथम मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर का प्रकरण हाथ में लिया । अब यह अभियोग कनिष्ठ न्यायालय से निकलकर उच्च न्यायालय में आया है । मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि के अभियोग की आज की स्थिति यह है कि अब यह प्रकरण इलाहाबाद उच्च न्यायालय में है । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर स्थित ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया है । ‘भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान मुक्त हो’, यह हम सभी की प्रार्थना है । मुझे यह आशा है कि भगवान श्रीकृष्ण निश्चित ही हमारी प्रार्थना सुनेंगे ।

काशी के बाबा भोलेनाथ के ज्ञानवापी परिसर के अभियोग के प्रकरण में न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के अनुसार सर्वेक्षण हुआ । उसमें एक भव्य शिवलिंग प्रकट हुआ है । ‘हिन्दुओं को उस शिवलिंग की पूजा-अर्चना का अधिकार मिले तथा ज्ञानवापी का वह ढांचा, जो गुलामी का प्रतीक है तथा जिसे भगवान शिवजी के मंदिर को तोडकर बनाया गया है; उस ढांचे को हटाया जाना चाहिए’, यह हमारी मांग है । इस दृष्टि से सभी कानूनी प्रयास चल रहे हैं तथा यह आशा है कि बहुत शीघ्र यह कार्य पूर्ण होगा ।

– पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी, सर्वाेच्च न्यायालय

हिन्दुओं को सभी मंदिर पुन: प्राप्त करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए !

काशी, मथुरा एवं अयोध्या, ये तीनों प्रकरण बंद ताले की चाबी वाले मंदिर हैं । उन्हें स्वतंत्र करना ही चाहिए । मैंने पहले आवाहन किया था और अब भी आवाहन करता हूं और करता ही रहूंगा, ‘हिन्दुओ, जागृत होकर जिन-जिन स्थानों पर विदेशी आक्रमणकारियों ने मंदिर गिराकर ढांचा खडा किया है अथवा कहीं भी मंदिर होने के प्रमाण मिल रहे हैं, फिर वे एकदम छोटे ढाई से तीन इंच की झोपडी हो अथवा अन्य किसी दूसरे नाम से हो, उन सभी मंदिरों को पुन: प्राप्त करने की प्रतिज्ञा हिन्दुओं को करनी चाहिए । हिन्दुओं को निर्भयता से और बिना दबे, यह कार्य करना चाहिए । जिस दिन समस्त हिन्दू मंदिर स्वतंत्र हो जाएंगे, उस दिन इस देश को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनने से कोई भी नहीं रोक सकता ।

– पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैन, सर्वाेच्च न्यायालय.