Former SC Justice On HINDU RASHTRA : (और इनकी सुनिए…) ‘हिन्दू राष्ट्र के विषय में बोलने पर प्रतिबंध नहीं, परंतु संविधान उसकी अनुमति नहीं देता !’ – भूतपूर्व न्यायमूर्ति मदन भीमराव लोकुर

सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायमूर्ति मदन भीमराव लोकुर का वक्तव्य

सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायमूर्ति मदन भीमराव लोकुर

नई देहली – क्या ´हिन्दू राष्ट्र´ की मांग को संविधान का आधार है ? क्या यह संभव है ? यदि कोई कहता है कि ´हिन्दू राष्ट्र´ हाेना चाहिए, तो यह उसकी मानसिकता है । संविधान इसे अनुमति नहीं देता । तब भी यदि कोई कहता है कि ´हिन्दू राष्ट्र´ होना चाहिए तो उसका ऐसा अर्थ नहीं होता कि उसे कारागृह में डालें । यदि लोग भडकाने का काम करते हैं, तो यह चूक है । चर्चा के लिए वे बोलते हैं तो चर्चा कऱ सकते है । सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायमूर्ति मदन भीमराव लोकुर ने ऐसा वक्तव्य दिया । (लोकहितकारी हिन्दू राष्ट्र की मांग का तथा भडकाने का दूर दूर तक कोई संबंध नहीं । जिहादियों द्वारा भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने की मांग करने के बारे में माननीय भूतपूर्व न्यायमूर्ति क्यों नहीं बोलते ? – संपादक) हाल-ही-में एक हिन्दी समाचारपत्र को दिए साक्षात्कार में वे बोल रहे थे । न्यायमूर्ति लोकुर की संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत न्याय परिषद के अध्यक्षपद पर चयन हुआ है । उनका कार्यकाल वर्ष २०२८ तक है । वे सर्वोच्च न्यायालय में ६ वर्ष थे ।

न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि,

१. १५०-२०० वर्षों से ‘न्यायदेवता की मूर्ति’ की आंखों पर पट्टी बांध रखी थी । उसे क्यों निकाला वही (सरकार) बता सकती है । चाहे न्यायमूर्ति हो अथवा साधारण मनुष्य, न्याय सभी के लिए समान होना चाहिए । पट्टी निकालने पर संभवत: यह बडा मनुष्य अथवा राजनीतिक नेता है, यह आपको दिखेगा । इसके पक्ष में निकाल घोषित हो । (न्यायदेवता की आंखों पर पट्टी रहने पर भी चाहे वह राजनीतिक नेता हो अथवा साधारण हो, उन्होंने अनेक बार पैसा तथा पद का आधार लेकर न्याययंत्रणा की सुविधाओं का अपलाभ उठाया है, यह विश्वविख्यात है, यह भी नहीं भूलना चाहिए ! – संपादक)

२. आपराधिक न्याय तथा दूरसंचार के संबंध में नए कानूनों पर, न्यायमूर्ति ने कहा कि इसका परिणाम यह होगा कि साधारण जनता को संविधान द्वारा दिए गए मूलभूत अधिकारों पर प्रतिबंध आएगा । (जनता द्वारा चुन कर लाई गई सरकार द्वारा संसद में ये कानून पारित किए गए हैं, तब भी माननीय भूतपूर्व न्यायमूर्ति द्वारा ऐसा वक्तव्य देना उनका लोकतंत्र पर अविश्वास दिखाता है, ऐसा कहना चूक नहीं होगी ? – संपादक)

संपादकीय भूमिका 

  • हिन्दू राष्ट्र की मांग अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के समर्थन में है तथा इसके लिए लोकतंत्र पद्धति से प्रयास करना संविधान के अनुसार ही है,इसका विस्मरण नहीं होना चाहिए !
  • वर्ष १९७६ में आपात्काल की कालावधि में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने असंवैधानिक पद्धति से संविधान में ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द जोड़ दिया । वास्तव में माननीय भूतपूर्व न्यायमूर्ति को प्रथम इस पर बोलना चाहिए !