सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

युवावस्था में ही साधना करने का महत्त्व !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

‘वृद्ध होने पर यह अनुभव होता है कि ‘वृद्धावस्था क्या होती है ?’ वह अनुभव करने पर लगता है कि ‘वृद्धावस्था देनेवाला पुनर्जन्म नहीं चाहिए ।’ परंतु उस समय साधना कर पुनर्जन्म से बचने का समय बीत चुका होता है । ऐसा न हो; इसके लिए युवावस्था में साधना करें ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले