उत्तरकाशी (उत्तराखंड) में हुई सुरंग की दुर्घटना से क्या आध्यात्मिक स्तर पर बोध लेंगे ?

उत्तराखंड सुरंग दुर्घटना

देवभूमि उत्तराखंड के उत्तरकाशी में १२ नवंबर को सिल्कियारा सुरंग का कुछ अंश गिरने की दुर्घटना में सुरंग में फंसे ४१ श्रमिक १७ दिन उपरांत बाहर निकले । संपूर्ण देश में चर्चा का केंद्र बने इस दुर्घटना में फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने के प्रयासों को सफलता मिली तथा सभी ने राहत की सांस ली । इस राहतकार्य में विभिन्न आधुनिक यंत्रों की सहायता से किया गया खुदाई का काम हो, अंदर फंसे श्रमिकों को खाने-पीने की जीवनावश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करना हो, साथ ही इस प्राणघातक संकट से बचने हेतु उनकी मानसिक स्थिति मजबूत रहने के लिए किए गए प्रयास हों तथा सभी व्यवस्थाओं के असफल सिद्ध होने पर ‘रैट माइनर्स’ के श्रमिकों के द्वारा (चूहों की भांति अल्प भूमि में खुदाई का विशिष्ट कौशलप्राप्त श्रमिक) हाथ से खुदाई कर श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकाला जाना हो, इस प्रत्येक चरण पर सभी संबंधित व्यवस्थाओं ने बहुत अच्छे ढंग से अपना काम पूर्ण किया । घटना की गंभीरता को ध्यान में रखकर, दुर्घटनाग्रस्तों को बाहर निकालने हेतु अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सुरंग विशेषज्ञ अर्नाेल्ड डिक्स को ऑस्ट्रेलिया से बुलवाया गया था । इस बचावकार्य में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । अर्नाेल्ड डिक्स का सिल्कियारा सुरंग के प्रवेशद्वार के पास अस्थायी रूप से निर्मित छोटे मंदिर में पूजा करने का वीडियो प्रसारित हुआ । इस कारण भी वे अधिक चर्चा में रहे । अगले कुछ दिनों तक इसके संदर्भ में सामाजिक माध्यमों पर अनेक विषयों पर चर्चा हुई, लेख प्रकाशित किए गए, आपदाग्रस्त श्रमिकों से भेंटवार्ताएं की गईं तथा सहायताकार्य में कार्यरत श्रमिकों की प्रशंसा भी हुई; परंतु संबंधित घटना की गहराई में जाने पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ध्यान में आए कुछ सूत्र यहां दे रहे हैं ।

श्री. संदेश नाणोसकर

१. विकास के साथ धार्मिक बातों को भी प्रधानता दी जाए !

प्रत्येक देश ही राष्ट्र के विकास के लिए प्रयासरत होता है; परंतु धार्मिक बातों को एक ओर रखकर की जानेवाली विकास की परियोजनाएं कालांतर में निष्फल सिद्ध होती हैं अथवा कोई दुर्घटना हो जाने के उपरांत हमें उसका भान होता है । भगवान को न माननेवाले, केवल विज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ माननेवाले तथा अपनी बुद्धि पर विश्वास कर अधर्म का ढिंढोरा पीटनेवाले आधुनिकतावादी इस बात को पचा नहीं पाएंगे; परंतु तब भी सामान्य श्रद्धावान व्यक्ति इस बात को निश्चित रूप से मानता है; क्योंकि उसे कभी न कभी इस बात की प्रतीति होती है । धार्मिक आस्था एवं विश्वास के कारण भगवान पर उसकी दृढ श्रद्धा होती है । उत्तरकाशी की सुरंग दुर्घटना के उपरांत सामने आए कुछ तथ्यों से यही बात स्पष्ट रूप से ध्यान में आती है ।

२. स्थानीय देवता का मंदिर गिराने से दुर्घटना (?)

जब सिल्कियारा में इस सुरंग का निर्माण आरंभ हुआ, उस समय वहां निर्माणकार्य करनेवाले प्रतिष्ठान ने वहां का बाबा बौखनाग देवता का मंदिर गिराया था । वर्ष २०१९ में जब इस सुरंग का निर्माणकार्य आरंभ हुआ, तभी संबंधित निर्माणकार्य प्रतिष्ठान ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करने का आश्वासन दिया था । स्थानीय लोगों ने इस प्रतिष्ठान को अनेक बार इसका स्मरण कराया; परंतु तब भी किसी भी अधिकारी ने उसका गंभीरता से संज्ञान नहीं लिया । अंततः सुरंग का एक भाग ढह गया, जिसमें श्रमिक फंसने की दुर्घटना हुई । बाबा बौखनाग सिल्कियारा सहित परिसर के ३ पट्टों के प्रमुख देवता के रूप में जाने जाते हैं । मंदिर के अंदर नागराज की मूर्ति है । बाबा बौखनाग इस क्षेत्र के संरक्षक माने जाते हैं; इसलिए स्थानीय लोगों ने इसे ‘देवता का प्रकोप’ कहा ।

३. श्रमिकों को बाहर निकालने के प्रयास असफल; परंतु आध्यात्मिक मार्ग अपनाने पर समस्याएं हुईं दूर !

दुर्घटना के उपरांत के सहायताकार्य के लिए अमेरिका से लाया गया अत्याधुनिक ऑगर यंत्र खुदाई करते समय पल्ला फंस जाने के कारण खराब हो गया । विभिन्न अत्याधुनिक यंत्रों का उपयोग करने पर भी प्रत्येक बार नई चुनौती खडी हुई । इस कारण श्रमिकों तक पहुंचने में समस्याएं आ रही थीं । ‘श्रमिकों को बाहर निकालने के सभी प्रयास असफल सिद्ध हो रहे हैं’, यह बात ध्यान में आने पर संबंधित निर्माणकार्य प्रतिष्ठान ने सिल्कियारा सुरंग के मुख पर एक ओर अस्थायी मंदिर बनाया । निर्माणकार्य प्रतिष्ठान के अधिकारियों ने मंदिर के पुजारियों से संपर्क कर क्षमायाचना की तथा श्रमिकों को बचाने का कार्य सफल होने हेतु उनसे पूजा करने का अनुरोध कर, वहां प्रार्थना की । उस समय पुजारियों ने बताया था कि ‘३ दिन में सुरंग में फंसे श्रमिक बाहर निकलेंगे ।’ वास्तव में भी ३ दिन में इस कार्य को सफलता मिली और श्रमिक सुरक्षित बाहर निकल पाए ।

४. अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सुरंग विशेषज्ञ हुए नतमस्तक !

 

भारत सरकार ने दुर्घटनाग्रस्त श्रमिकों की सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सुरंग विशेषज्ञ (टनल एक्सपर्ट) ऑस्ट्रेलिया के अर्नाेल्ड डिक्स को बुलवाया था । वे प्रतिदिन सुरंग के बाहर अस्थायी रूप से बनाए गए बाबा बौखनाग के मंदिर में नतमस्तक होकर श्रमिकों को बाहर निकालने के प्रयासों को सफलता मिलने हेतु प्रार्थना कर रहे थे । ऐसी कठिन स्थिति में एक विदेशी व्यक्ति को स्थानीय देवता का महत्त्व ध्यान में आना तथा उसके द्वारा देवता के चरणों में शरणागत होकर श्रमिकों की मुक्ति हेतु मनोभाव से प्रार्थना करना, आज के विज्ञानयुग में विज्ञान की मर्यादाएं स्पष्ट करने के साथ ही अध्यात्म की श्रेष्ठता सिद्ध करता है ।

श्रमिकों की मुक्ति के उपरांत प्रसारमाध्यमों से बातचीत करते हुए अर्नाेल्ड डिक्स ने कहा, ‘‘अब मुझे सुरंग के बाहर बनाए गए मंदिर में जाकर आभार प्रकट करना होगा । श्रमिकों की सुरक्षित मुक्ति चमत्कार ही है । जो कुछ भी हुआ, उसके लिए मैंने आभार प्रकट करने का वचन दिया है ।’’ डिक्स ने आगे कहा, ‘‘क्या आपको इसका स्मरण है कि मैंने आपसे कहा था कि ये श्रमिक क्रिसमस तक बाहर आ जाएंगे । किसी को भी कोई भी चोट नहीं आएगी । क्रिसमस निकट आ रहा है । हम बचाव का काम करते हुए शांत थे । ‘इसके आगे किस प्रकार से आगे बढना है ?’, इस विषय में हम स्पष्ट थे । एक बचाव दल के रूप में हमने बहुत अच्छा काम किया । भारत में विश्व के अभियंता हैं । इस सफल अभियान का मैं एक अंश था, इसका मुझे आनंद है ।’’

श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के उपरांत उन्होंने इस अवधि में भारत में मिलनेवाले शाकाहारी पदार्थाें की भी प्रशंसा की । उच्चपद पर कार्यरत किसी विदेशी व्यक्ति की देवताओं के प्रति श्रद्धा, भारतीयों तथा यहां की संस्कृति के प्रति उनकी आत्मीयता, साथ ही उनके द्वारा की गई प्रशंसा भारतीयों के लिए निश्चित रूप से गर्व का विषय है !

५. सुरंग दुर्घटना के विषय में ध्यान में आए सूत्र

५ अ. धार्मिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड राज्य का महत्त्व ! : उत्तराखंड देवभूमि है । अनेक धार्मिक ग्रंथों में भी इसका समय-समय पर उल्लेख मिलता है । अनेक अवतारों ने यहां जन्म लिया है । ऋषि-मुनियों के वास से यह भूमि पावन बन गई है । केदारनाथ, ब्रदीनाथ जैसे प्रमुख चार धाम इसी राज्य में हैं । इस राज्य में हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं तथा गंगा-यमुना, इन नदियों का उद्गम भी इसी राज्य में हुआ है । संपूर्ण वर्ष में लाखों श्रद्धालु यहां आकर मंदिरों में दर्शन करते हैं । इस कारण धार्मिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड का अनन्य महत्त्व है । ऐसे सात्त्विक वातावरण में रहने का अवसर मिलना वहां रहनेवाले लोगों का भी सौभाग्य है ।

५ आ. स्थानीय देवता के प्रति भाव : उत्तराखंड में किसी भी नए पुल, सडक अथवा सुरंग का निर्माण करने से पूर्व स्थानीय देवता का छोटा मंदिर बनाने की प्रथा है । स्थानीय लोगों की यह आस्था है कि मंदिर के देवता से आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरांत ही कोई भी कार्य संपन्न होता है । स्थानीय लोगों ने यह भावना व्यक्त करते हुए कहा था कि सिल्कियारा में सुरंग का निर्माणकार्य आरंभ होने से पूर्व संबंधित निर्माणकार्य प्रतिष्ठान ने स्थानीय देवता बाबा बौखनाग का मंदिर गिराकर बहुत बडी चूक की है ।

५ इ. विकास के कार्य करते समय धार्मिकता की दृष्टि से किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? : कुछ विकसित देशों में विभिन्न इमारतों को जोडनेवाले फ्लाईओवर के स्वरूप की सडकों, मेट्रोरेल इत्यादि का निर्माण कार्य करते समय परियोजना में कुछ लोगों द्वारा अपनी भूमि देने का विरोध किए जाने से उस वास्तु को बिना क्षति पहुंचाए वैकल्पिक मार्ग बनाए जाने के अनेक उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं । एक ओर विदेश में मानव द्वारा आपत्ति दर्शाए जाने पर संबंधित प्रतिष्ठान इतना बडा समझौता करता है, तो दूसरी ओर भारत जैसे धार्मिक देश में किसी परियोजना के लिए किसी देवता का मंदिर गिराया जाता है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है ।

वास्तव में देखा जाए, तो बडी निर्माण परियोजनाएं बनाते समय सरकार की ओर से उस क्षेत्र के लोगों के लिए वैकल्पिक योजनाएं बनाई जाती हैं । संबंधित क्षेत्र के लोगों को परियोजना का महत्त्व समझाकर संबंधित लोगों का स्थानांतरण इत्यादि किया जाता है । सरकार को केवल यहीं तक ही न रुककर संबंधित क्षेत्रों में स्थित मंदिरों, साथ ही अन्य धार्मिकस्थलों को क्षति न पहुंचे; इसका ध्यान रखना आवश्यक है । किसी कारणवश ऐसे किसी स्थान को गिराना आवश्यक ही हो, तो इस संदर्भ में धार्मिक क्षेत्र के अधिकारी व्यक्तियों से इस संबंध में धर्मशास्त्र के अनुसार क्या करना होगा ?, यह जानकर मंदिर की पुनर्स्थापना करनी चाहिए तथा उसके उपरांत ही निर्माणकार्य आरंभ करना चाहिए ।

५ ई. धर्मशास्त्र एवं वास्तुशास्त्र के अनुसार किया जानेवाला निर्माणकार्य ! : भारत के विभिन्न राज्यों में धर्मशास्त्र के अनुसार तथा वास्तुशास्त्र के अनुसार निर्मित अनेक सुप्रसिद्ध एवं भव्यदिव्य प्राचीन मंदिर हैं । प्राचीन काल में राजा-महाराजा मंदिरों अथवा कोई भी निर्माणकार्य करते समय उसके लिए वास्तु का चयन करने से लेकर उसका निर्माणकार्य संपन्न होने तक चरणबद्ध पद्धति से धर्मशास्त्र के अनुसार ही सभी कार्य करते थे । उसके कारण निर्माणकार्य परिपूर्ण एवं उत्कृष्ट होने के साथ उसे देवताओं के आशीर्वाद प्राप्त होने से वो अनेक वर्षाें तक टिके रहते थे । वहां देवताओं, ऋषि-मुनियों तथा साधु-संतों का वास होता था, जिससे वास्तु एवं वहां के परिसर में अच्छे स्पंदन उत्पन्न होकर सभी को उसका लाभ मिलता था । इसके विपरीत आज के आधुनिक काल के निर्माणकार्य देखे जाएं, तो कब कौनसा निर्माणकार्य गिर जाएगा, सडकें कितने समय तक टिकी रहेंगी; यह बताया नहीं जा सकता अथवा उसके संदर्भ में सुनिश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता । संबंधित कार्य करते समय किए जानेवाले घोटालों एवं भ्रष्टाचार के कारण ऐसी वास्तुओं में स्पंदन भी अच्छे नहीं होते ।

६. धार्मिक अधिष्ठान प्राप्त कार्य सफल होता है, इसे ध्यान में रखकर कृति करना आवश्यक !

आज के आधुनिक विज्ञानयुग में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं का भौतिक विकास साध्य करने की ओर ही अधिक ध्यान दे रहा है । जनसंख्यावृद्धि के कारण लोगों की सुविधाओं के लिए प्रकृति पर आघात कर विकास की परियोजनाएं बनाई जा रही हैं । केवल भौतिक विकास को ही प्रधानता देने से ऐसी परियोजनाएं क्षणिक सुखदायी सिद्ध हो रही हैं । अधर्माचरण के कारण व्यक्ति अपना मानसिक स्वास्थ्य, स्थिरता एवं आनंद गंवा रहा है ।

उत्तराखंड में कुछ वर्ष पूर्व बाढ के कारण हुई हानि हमने अनुभव की है । समय-समय पर वहां होनेवाली भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण होनेवाले भीषण परिणाम भी हमने देखे हैं । अब उत्तराखंड के सिल्कियारा में हुई सुरंग दुर्घटना से सीख लेकर सरकार को कोई भी विकास परियोजना बनाते समय मंदिर गिराने जैसे पापकर्म न कर, धार्मिक बातों को प्रधानता देकर, धर्मशास्त्र के अनुसार सभी काम करने चाहिए । जिस कार्य को भगवान का अधिष्ठान होता है, वही कार्य सफल होता है तथा निर्विघ्न रूप से संपन्न होता है, यही इससे ध्यान में आता है !

– श्री. संदेश नाणोसकर, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (७.१२.२०२३)