Article 370 : अनुच्छेद ३७० रद्द करना उचित !

  • सर्वोच्च न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय !

  • लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश बना रहेगा !

  • जम्मू-कश्मीर में ३० सितंबर २०२४ तक विधानसभा के चुनाव कराने का आदेश

नई देहली – सर्वाेच्च न्यायालय की ५ सदस्यीय खंडपीठ ने केंद्र सरकार के ५ अगस्त २०१९ को जम्मू-कश्मीर के लिए लागू अनुच्छेद ३७० को रद्द करने के निर्णय को उचित प्रमाणित किया है, साथ ही ३० सितंबर २०२४ तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव कराने की तथा बहुत शीघ्र उसे पुनः राज्य की श्रेणी प्रदान करने का आदेश भी न्यायालय ने केंद्र सरकार को दिया है । केंद्र सरकार के इस अनुच्छेद को रद्द करने के निर्णय को चुनौती देनेवाली याचिका पर ४ वर्ष ४ महिने उपरांत यह निर्णय आया है । इसी वर्ष ५ सितंबर को सुनवाई पूर्ण कर अपना निर्णय सुरक्षित रखा था । उसके उपरांत ११ दिसंबर को न्यायालय ने यह निर्णय दिया । इस प्रकरण में कुल ३ निर्णय दिए गए हैं । उनमें से एक निर्णय स्वयं मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड, न्यायाधीश गवई तथा न्यायाधीश सूर्यकांत शर्मा ने दिया है । न्यायाधीश एस्. के. कौल ने स्वतंत्र निर्णय दिया है, जबकि न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इन दोनों निर्णयों से अपनी सहमति जताई है ।

जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाना तथा उसके उपरांत उसे आगे बढाने के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय नहीं दिया  है । याचिकाकर्ताओं ने उसके संदर्भ में सीधे चुनौती न दिए जाने के कारण उसके संदर्भ में निर्णय देना सर्वोच्च न्यायालय ने अस्वीकार किया है । ‘राष्ट्रपति शासन के समय में राज्य की ओर से केंद्र सरकार के द्वारा लिए गए प्रत्येक निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती तथा उसके कारण राज्य का प्रशासन ठप्प रह सकता है’, यह न्यायालय ने स्पष्ट किया ।

(सौजन्य : ANI News) 

सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा निर्णय देते हुए रखे हुए सूत्र !

अस्थाई था अनुच्छेद ३७० !

जम्मू-कश्मीर को विशेष श्रेणी प्रदान करनेवाला अनुच्छेद ३७० संविधान में अस्थाई रूप में था । तत्कालिन युद्धजन्य स्थिति के कारण की गई वह एक अस्थाई स्वरूप की व्यवस्था थी । कागदपत्रों में भी उसके संदर्भ में उल्लेख किया गया है ।

केंद्रशासित प्रदेश बनाने की कृति वैध !

कश्मीर का विभाजन २ केंद्रशासित प्रदेशों में करने की कृति वैध है । केंद्र सरकार शीघ्र ही जम्मू-कश्मीर की ‘राज्य’ की श्रेणी को पुनर्स्थापित करनेवाली है । केंद्र सरकार ने बताया है कि यह केंद्रशासित प्रदेश की श्रेणी अस्थाई रूप से दी गई है । अतः २ केंद्रशासित प्रदेश बनाने की कृति उचित थी अथवा अनुचित ?, इस पर हमें निर्णय देने की आवश्यकता नहीं लगती ।

राष्ट्रपती शासन लगाने के लिए विधानसभा की सहमति आवश्यक नहीं थी !

राष्ट्रपती शासन लगाने के निर्णय के लिए विधानसभा के अनुशंसाएं अनावश्यक थीं । जम्मू-कश्मीर विधानसभा विसर्जित करने के उपरांत भी राष्ट्रपति का यह अधिकार अबाधित था । जम्मू-कश्मीर संवैधानिक पुनर्रचना कार्यकारिणी एक अस्थाई स्वरूप की व्यवस्था थी । राष्ट्रपति शासन में राज्य में उसके अनुसार निर्णय लेना वैध ही था ।

कश्मीर में अकस्मात ही संविधान लागू नहीं हुआ है !

इतिहास से यह दिखाई दिया है कि जम्मू-कश्मीर में चरणबद्ध पद्धति से संवैधानिक अंतर्भाव करने की प्रक्रिया चल रही थी । यह ऐसा कुछ नहीं है कि ७० वर्ष उपरांत अकस्मात ही देश का संविधान कश्मीर में लागू हुआ हो । यह धीरे-धीरे संपन्न हुई प्रक्रिया है । इसलिए हम यह स्पष्ट करते हैं कि संविधान के सभी तत्त्व एवं अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर में लागू किए जा सकते हैं ।

जम्मू-कश्मीर को पहले से ही आंतरिक स्वायत्तता नहीं थी !

भारतीय संघराज्य में कश्मीर का समावेश करते समय राज्य को आंतरिक स्वायत्तता नहीं थी । कश्मीर के महाराज ने ‘संविधान सर्वोच्च होगा’, यह शपथपत्र में स्वीकार किया है । साथ ही संवैधानिक व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता होने का कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है । स्वयं जम्मू-कश्मीर के संविधान में भी स्वायत्तता के संदर्भ में किसी भी प्रकार का उल्लेख नहीं है । जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों की अपेक्षा किसी भी प्रकार की भिन्न आंतरिक स्वायत्तता नहीं है ।

लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश बना रहेगा !

जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर लद्दाख को स्वतंत्र केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया था । न्यायालय ने यह निर्णय वैध प्रमाणित किया । ‘अनुच्छेद ३ के अनुसार राज्य के किसी प्रदेश को केंद्रशासित प्रदेश बनाने का अधिकार है; इसलिए लद्दाख को स्वतंत्र केंद्रशासित प्रदेश बनाने की कृति वैध सिद्ध होती है’, ऐसा न्यायालय ने कहा ।

न्यायाधीश कौल ने की ‘सत्य एवं सौहार्द समिति’ के गठन की अनुशंसा !

न्यायाधीश कौल

५ सदस्यीय खंडपीठ के दूसरे न्यायाधीश कौल ने कश्मीर की स्थिति में सुधार आने हेतु ‘जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विगत अनेक दशकों से झेलने पडे घाव भरना सौहार्द की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने से उसके लिए ‘सत्य एवं सौहार्द समिति’ का गठन किया जाए’, यह अनुशंसा की ।

न्यायाधीश कौल द्वारा रखे गए सूत्र

१. जम्मू-कश्मीर के विषय में यदि सुधार की दिशा में आगे बढता हो, तो वहां की जनता के मन पर हुए घावों का भर जाना आवश्यक है । वहां की भिन्न-भिन्न पीढीयों को बडे मानसिक आघात सहन करने पडे हैं । इन घावों को भरने की दिशा में बढाया गया पहला कदम है सरकारी अथवा गैरसरकारी घटकों से कश्मीरी जनता के अधिकारों का हुआ उल्लंघन स्वीकार करना तथा उसका संज्ञान लेना ! सत्य का स्वीकार करने से उससे सौहार्द की प्रक्रिया का मार्ग मिल सकता है ।

२. एक तटस्थ ‘सत्य एवं सौहार्द समिति’ का गठन किया जाए । इस समिति के माध्यम से सरकारी एवं गैरसरकारी घटकों से न्यूनतम १९८० के दशक से लेकर कश्मीर में मानवाधिकारों के किए गए उल्लंघन की जांच की जाए तथा इसका ब्योरा प्रस्तुत कर सौहार्द स्थापित करने हेतु अनुशंसाएं की जाएं ।

३. इन घावों की स्मृतियां धुंधली होने से पूर्व इस समिति का गठन किया जाए । यह संपूर्ण प्रक्रिया निर्धारित समय में ही पूर्ण की जाए । कश्मीर की एक संपूर्ण युवा पीढी मन में अविश्वास का भाव रखकर बडी हुई है, उस पीढी को उस भाव से बाहर निकालकर मुक्त जीवन जीना संभव हो; इसके लिए हम प्रतिबद्ध हैं ।

४. इस समिति का गठन अथवा रचना के विषय में सरकार निर्णय ले । ‘सत्य एवं सौहार्द समिति’ का गठन निश्चितरूप से कैसे किया जाए ?’, इसका निर्णय सरकार ले; परंतु यह समिति किसी आपराधिक न्यायालय की भांति काम न कर सभी को चर्चा करने के व्यासपीठ के रूप में काम करे ।

सर्वोच्च न्यायालयाच्या निर्णयावरील प्रतिक्रिया

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय ऐतिहासिक ! – प्रधानमंत्री मोदी

अनुच्छेद ३७० को रद्द करने को उचित प्रमाणित करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय ऐतिहासिक है । यह केवल कानूनी निर्णय नहीं है, अपितु यह आशा की किरण है, उज्ज्वल भविष्य का वचन है तथा एक मजबूत एवं अखंड भारत बनाने के हमारे सामूहिक संकल्प का प्रमाण है । मैं जम्मू, कश्मीर एवं लद्दाख के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि आपके स्वप्नों को साकार करने के लिए हमारी प्रतिबद्धता शाश्वत है ।

निर्णय सुनकर बहुत निराश हुआ ! – गुलाम नबी आजाद

यह निर्णय सुनकर मैं बहुत निराश हुआ । मैं पहले से ही बोल रहा था कि संसद एवं सर्वोच्च न्यायालय इस पर निर्णय ले सकते हैं । सरकार ने यदि स्वयं कानून बनाकर अनुच्छेद ३७० को हटाया हो, तो सरकार उसे वापस नहीं लाएगी, यह तो स्पष्ट है । सर्वोच्च न्यायालय उस पर सुनवाई करे, यह हमारी अपेक्षा थी । जम्मू-कश्मीर की जनता इस निर्णय पर आनंदित नहीं है ।

हमारा संघर्ष जारी रहेगा ! – ओमर अब्दुल्ला

यह निर्णय निराशाजनक है । हमारा संघर्ष जारी रहेगा । भाजपा को यहांतक पहुंचने में अनेक दशक लगे । अब हम भी लंबी लडाई के लिए तैयार हैं ।