श्रीकृष्ण के प्रति आस्था एवं भक्ति भाव में वृद्धि करनेवाला एक विद्वतापूर्ण ग्रंथ: ‘योगेश्वर श्रीकृष्ण’ ! – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

श्री. दुर्गेश पारुलकर द्वारा लिखित ग्रंथ ‘योगेश्वर श्रीकृष्ण’ का वाचन करें । धर्म के संबंध में श्री. पारुलकर की गहन साधना से साकार यह ग्रंथ, एक बार पढने के उपरांत आप इसे छोडना नहीं चाहेंगे, यह इतना मंत्रमुग्ध करनेवाला है ! इस ग्रंथ के कारण मुझे प्रथम ही भगवान श्रीकृष्ण के संबंध में इतनी विस्तृत जानकारी मिली एवं वाचन-मनन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ । श्रीकृष्ण के संदर्भ में अनेक कथाएं प्रचलित हैं, उनका भी बोध हुआ । कृष्ण के संबंध में अनेक कथाएं अन्य ग्रंथों में भी दी गई हैं; किंतु ‘कथाओऺ से क्या बोध लेना चाहिए, वह इस ग्रंथ से सहज ही ज्ञात होता है । इस ग्रंथ की विशेषता है कि यह विद्वत्तापूर्ण होते हुए भी सहज एवं सुलभ है । यह ग्रंथ पढते समय पारुलकर की श्रीकृष्ण भक्ति की सुगंध आती रहती है । ग्रंथ पढते समय प्राय: मैं भावुक हो गया । श्री. पारुलकर ने श्रीकृष्ण के प्रति आक्षेपों का भी बडी विद्वत्तापूर्ण खंडन किया है । मानो उन्होंने यह संदेश दिया हो कि श्रीकृष्ण भक्तों को केवल उपास्य देवता की आराधना करना ही पर्याप्त नहीं है, उन्हें अपनी धार्मिक श्रद्धा का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध प्रतिवाद करने में भी सक्षम होना चाहिए । इसके फलस्वरूप श्रीकृष्ण के चरित्र को पूर्णता प्राप्त हुई है । मुझे विश्वास है कि इस ग्रंथ को पढने से भगवान श्रीकृष्ण के प्रति साधकों एवं भक्तों की आस्था तथा भक्ति सुदृढ होगी ।

“यह ग्रंथ अवश्य पढना चाहिए”। ग्रंथ पढने के उपरांत पाठकों को प्रकाशक के पते पर डाक अथवा ई-मेल से अपनी प्रतिक्रिया भेजनी चाहिए ।

श्री. गुरुचरण कमलों में आर्त प्रार्थना है कि पारुलकर के हाथों इसी प्रकार धर्म जागरण एवं धर्म रक्षा की सेवा होती रहे ! –  सच्चिदानंद परब्रह्म जयंत आठवले (२४.१०.२०२३ )

दुर्गेश पारुलकर द्वारा लिखित ग्रंथ ‘योगेश्वर श्रीकृष्ण’ का लोकार्पण ! 

श्री. दुर्गेश पारुलकर लिखित  ‘योगेश्वर श्रीकृष्ण’  इस  ग्रंथ का प्रकाशन करते हुए पुरातत्त्व विभाग के उपसंचालक श्री. विलास वहाणे, श्री. प्रमोद कांबळे, श्री. दुर्गेश परुळकर और सनातन संस्था के प्रचारक सद्गुरु स्वाती खाड्येजी

ओझर (महाराष्ट्र) – द्वितीय राज्य स्तरीय मंदिर सम्मेलन पुणे जिले के ओझर में आयोजित किया गया था । उस समय सनातन संस्था के प्रचारक सद्गुरु स्वाती खाड्येजी के करकमलों से वरिष्ठ लेखक एवं व्याख्याता श्री. दुर्गेश पारुलकर लिखित ग्रंथ ‘योगेश्वर श्रीकृष्ण’ का लोकार्पण हुआ । इस अवसर पर सद्गुरु स्वाति खाड्येजी ने भगवान कृष्ण एवं अर्जुन का चित्र बनाकर पारुलकर को भेंट दिया । श्री. दुर्गेश पारुलकर ने कहा कि वे यह ग्रंथ भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर रहे हैं । इस अववसर पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठावले का इस ग्रंथ से संबंधित संदेश पढा गया ।

भगवद गीता उन लोगों के लिए मार्गदर्शिका है जो सामाजिक जीवन से त्रस्त हो गए हैं ! – दुर्गेश पारुलकर, वरिष्ठ लेखक एवं व्याख्याता

श्री. दुर्गेश पारुलकर

श्रीकृष्ण को ‘भगवान’ के रूप में जाना जाता है, जिनका हमारे मन में स्थायी स्थान है । श्रीकृष्ण ने अपना पूरा जीवन सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए न्योछावर कर दिया, तो क्या वे केवल भगवान थे ? स्वातंत्र्यवीर सावरकर के अनुसार श्रीराम एवं श्रीकृष्ण राष्ट्रनायक हैं । रामायण, महाभारत हमारे ऐतिहासिक ग्रंथ हैं । किसी भी संकट के सामने पराजय न स्वीकारें । भगवान कृष्ण से हम सीखते हैं कि हमें दृढ प्रयत्नवादी रहना चाहिए । लोकमान्य तिलक तथा स्वतंत्रता सेनानी सावरकर कहते हैं कि श्रीकृष्ण को समझने के लिए न्याय, नीति एवं सत्य की दृष्टि से योग्य एवं उपयोगी कार्य करना चाहिए । इस पर सूक्ष्म स्तर पर विचार किया जाना चाहिए । हमें सामने वाले व्यक्ति को समझ कर ही व्यवहार करना चाहिए । समर्थ रामदास स्वामी यही कहते हैं, ‘ठग को ठोकना ही योग्य ‘। असभ्य के साथ असभ्य तथा खल से खल जैसा व्यवहार ही अपेक्षित है । हमारे जीवन के दो पहलू हैं, व्यावहारिक एवं पारलौकिक । श्रीकृष्ण ने अपने जीवन से सिखाया कि व्यक्ति को व्यावहारिक एवं पारलौकिक दोनों जीवन जगतों का स्वर्णिम मध्य साधने में सक्षम होना चाहिए ।

कृष्ण ने अर्जुन को दर्शनशास्त्र का उपदेश दे कर युद्ध के लिए प्रेरित किया; किंतु ऐसा करते समय उनकी कोई आग्रही भूमिका नहीं थी । अर्जुन को वैचारिक, भावनात्मक एवं बौद्धिक स्तर पर आश्वस्त किया गया तथा उसके उपरांत ही अर्जुन ने उसके अनुरूप आचरण किया । जब हम जीवन में त्रस्त हो जाते हैं, तब भागवद्गीता हमारी मार्गदर्शिका बन जाती है ।