‘एन.सी.ई.आर.टी.’ के समिति की सिफारिश
नई देहली – किशोरावस्था से ही विद्यार्थियों में देशभक्ति बढे, इसके लिए रामायण और महाभारत का विद्यालय के इतिहास पाठ्यक्रम में समावेश करें, ऐसी सिफारिश ‘राष्ट्रीय शैक्षणिक संशोधन और प्रशिक्षण परिषद’ की (एन.सी.ई.आर.टी. की) समिति ने की है । इसके पहले समिति ने चंद्रयान मुहिम की जानकारी देने के लिए प्रकाशित की गई पुस्तकों में “पुराणकाल में हवाई जहाज उडाए जाते थे’, ऐसी जानकारी दी थी । परिषद की इसी समिति ने इसके पहले पाठ्यपुस्तकों में ‘इंडिया’ के स्थान पर ‘भारत’ उल्लेख करना चाहिए, साथ ही तृतीय से बारहवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में हिन्दू शासनकर्ताओं की यशोगाथा को समाविष्ट करना चाहिए’, ऐसी सिफारिशें भी की थीं ।
१. नई शिक्षानीति के अनुसार पाठ्यक्रम की पुनर्रचना करने के लिए परिषद ने पिछले वर्ष ७ सदस्यों की समिति बनाई थी । इस समिति ने सामाजिकशास्त्र के विषय में सिफारिश प्रस्तुत की है । इसके अनुसार इतिहास के कालखंड की नए रुप से रचना करनी चाहिए, इस आशय की सिफारिश की है ।
२. वर्तमान में प्राचीन, मध्ययुगीन और आधुनिक इतिहास ऐसे कालखंडानुसार विभाजित किया जाता है । इसके स्थान पर पारंपरिक, मध्ययुगीन, ब्रिटिश कालखंड और आधुनिक भारत ऐसे कालखंडों की पहचान करानी चाहिए । जिसमें पारंपरिक कालखंड में रामायण और महाभारत, यह महाकाव्य इतिहास के रूप में सिखाए जाने चाहिएं, ऐसी सिफारिश की गई है ।
३. किशोरावस्था में ही बच्चों में देशाभिमान जागृत होना आवश्यक है । प्रतिवर्ष सहस्रों विद्यार्थी विदेश जाते हैं और वहीं रहने लगते हैं; कारण उनमें देशाभिमान का अभाव है; इसीलिए रामायण और महाभारत का इतिहास के पाठ्यक्रम में समावेश होना आवश्यक है । कुछ शिक्षा मंडलों के पाठ्यक्रम में उनका समावेश है । इसको देशस्तर पर फैलाना आवश्यक है, ऐसा मत समिति के अध्यक्ष सी. आई. आयजेक ने विविध समाचार चैनलों से बोलते हुए व्यक्त किया ।
४. समिति द्वारा की सिफारिश अध्ययन साहित्य निर्मिति करने वाली समिति के पास भेजी जाएगी । इस समिति द्वारा इन सिफारिशों को सहमति देने पर इसके अनुसार पाठ्य पुस्तकों में इनका समावेश किया जाएगा ।
विद्यालयों की दीवारों पर संविधान का प्रस्तावना लिखने की भी सिफारिश
भारत के संविधान में लोकतंत्र और सार्वभौमिकता इन मूल्यों को दिखाया गया है । इस दृष्टि से विद्यालयों की दीवारों पर स्थानीय भाषा में संविधान की प्रस्तावना लिखी जाए, ऐसी सिफारिश भी की गई है ।
संपादकीय भूमिका
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