‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने स्वयं मेरे व्यवसाय का भार लेकर मुझे साधना करने हेतु समय दिया’, ऐसा भाव रखनेवाले सनातन संस्था के ७३ वें (समष्टि) संत पू. प्रदीप खेमकाजी 

सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्‍यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) ने ११.१०.२०२१ को कतरास (झारखंड) के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें संत (समष्टि) पू. प्रदीप खेमकाजी तथा उनके परिवार के साथ भेंटवार्ता की । इस भेंटवार्ता से उनकी साधनायात्रा के कुछ अंश यहां प्रस्तुत हैं… । १६ से ३१ अक्टूबर के पाक्षिक में हमने इस विषय में पहला भाग देखा । अभी उसके आगे का भाग देखेंगे ।

पू. प्रदीप खेमकाजी

१ ए. गुरुदेवजी की कृपा के कारण खेमका परिवार के सभी सदस्यों का साधना आरंभ करना

कु. तेजल : आप दोनों के समष्टि भाव के कारण ही पूरा परिवार साधना से जुड गया न ?

पू. खेमकाजी : प.पू. गुरुदेवजी ने पहले मुझसे साधना आरंभ करवाई । तत्पश्चात उन्होंने ही सभी को साधना से जोड लिया । पत्नी, मां तथा बच्चों को भी जोड दिया । साधना के लिए इतना पोषक वातावरण निर्माण कर दिया कि परिवार में किसी को भी विरोध करने का अवसर नहीं दिया । मुझे पता नहीं कि वे मुझपर इतनी असीम कृपा कैसे कर रहे हैं !

कु. तेजल : इसीलिए आपके परिवार की विशेषता है कि सभी लोग सात्त्विक हैं ।

पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी : आज भी उन सभी की प.पू. गुरुदेवजी पर १०० प्रतिशत श्रद्धा है । गुरुदेवजी जो कहेंगे, करना ही है ।

कु. तेजल : वास्तव में इतने लोगों में आपका परिवार एक इतना अच्छा परिवार है, जो साधना हेतु सब कुछ कर रहा है ।

पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी

२. साधना के कारण व्यवसाय में हुए सकारात्मक परिवर्तन !

‘साधना के लिए हमारी अष्टांग साधना आदि सब हैं ही । आप इतने बडे व्यवसायी हैं । इन सबके बीच आप साधना के लिए समय कैसे निकालते थे ? साधना के प्रयास आप किस प्रकार करते हैं ?

पू. खेमकाजी : ‘व्यवसाय में तो उतार-चढाव आते ही रहते हैं । गुरुदेवजी से (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी से) जुडने से पूर्व बाधाएं अथवा संघर्ष था । गुरुदेवजी ने मुझे साधना से जोड लिया । तत्पश्चात मुझे प्रतीत हुआ कि मुझ पर ईश्वर असीम कृपा की वर्षा कर रहे हैं । तदुपरांत मैंने पुनः पीछे मुडकर नहीं देखा । उन्होंने मुझे पीछे मुडकर देखने ही नहीं दिया ।

२ अ. अखंड नामजप के कारण प्रत्येक प्रसंग में गुरुदेवजी से मन ही मन प्रार्थना कर ‘क्या करूं ?’ पूछने पर तत्काल उत्तर मिलना प्रारंभ होना एवं वैसा करने से व्यवसाय में सफलता प्राप्त होना

पू. खेमकाजी : जब मैंने नामजप करना प्रारंभ किया, तब प्रार्थना, नामजप एवं सर्व अष्टांग साधना मेरे जीवन में आना प्रारंभ हुई । पहले गुरुदेवजी ने साधना के पांच अंग नाम, सत्संग, सत्सेवा, त्याग, प्रीति बताए थे । उन्होंने ही मुझसे साधना के वे चरण करवा लिए । नामजप बहुत हुआ । चलते-फिरते, उठते-बैठते, व्यवसाय के प्रत्येक निर्णय में तथा जब मैं बैठक में बोलता हूं, तब भी नामजप चलता ही रहता है । मेरे साथ जब मेरे अधिकारी रहते थे, तब वे कहते थे, ‘आपके साथ अधिक अच्छा लगता है ।’ वे मेरे साथ व्यवसाय से संबंधित कम और साधना से संबंधित अधिक बोलते थे । उस समय अनुभूति होती थी कि सर्व ओर गुरुदेवजी ही हैं । मेरे चारों ओर वे ही हैं, कोई निर्णय लेना है, कोई टेंडर भरना है, कोई कार्य करना है अथवा व्यवसाय में बहुत बाधाएं आ रही हैं, उस समय मैं प.पू. गुरुदेवजी से मन ही मन पूछकर करता हूं । उस समय निर्णय में मेरा कुछ नहीं होता । अर्थात प.पू. गुरुदेवजी ने वह निर्णय मुझे एक ही क्षण में बताया है और मैंने उस पर अमल कर लिया, तो व्यवसाय में बहुत बडा परिणाम दिखाई दिया ।

कु. तेजल : कितना सुंदर है । सामान्यतः इतना नहीं सूझता । हर बार उनसे पूछकर करते हैं और वे भी सदैव आपके साथ रहते हैं ।

२ आ. ‘व्यवसाय का संपूर्ण तनाव स्वयं पर लेकर गुरुदेवजी मुझे आनंद में रख रहे हैं, ऐसा भाव उत्पन्न होना

कु. तेजल : व्यवसाय में उतार-चढाव होते ही हैं, तो क्या मन पर उसका तनाव रहता है ?

पू. खेमकाजी : व्यवसाय करते समय कभी निर्णय लेना पडता है । कभी किसी बडे व्यवसायी से, कभी प्रतिष्ठित लोगों से तथा कभी सरकारी कर्मचारियों से बात करनी होती है । उनकी मांगें क्या हैं ? उन्हें कैसे पूर्ण कर सकते हैं ? यह सर्व व्यवसाय का एक भाग ही होता है, जिसके कारण तनाव उत्पन्न होता है; परंतु प.पू. गुरुदेवजी ने मुझसे साधना करवाई तथा वे मेरा सर्व तनाव स्वयं लेते हैं एवं मुझे तनावमुक्त रखकर आनंद में रखते हैं । मैं कुछ नहीं करता । मेरे कार्यालय की टेबल पर सनातन के ग्रंथ अथवा सनातन प्रभात ही मिलेगा । एक भी कागद नहीं मिलेगा । मैं कभी-कभी स्वयं से ही पूछता हूं, ‘मैं क्या कर रहा हूं ? प.पू. गुरुदेवजी तुम्हारे लिए इतना कर रहे हैं । तुम क्या कर रहे हो ? तुम्हें क्षमता दी है, तुम्हें इतना दिया है और तुम बैठे हो ?’, ऐसा अपराधी भाव भी आता है ।

२ इ. गुरुदेवजी द्वारा बताई साधना करने पर ‘व्यवसाय वे ही कर रहे हैं’, ऐसी अनुभूति प्रत्येक क्षण होना

पू. खेमकाजी : मुझे ऐसा लगता है, मैं साधना करता हूं और मेरा व्यवसाय वे ही कर रहे हैं । इसलिए मुझे साधना के लिए बहुत समय मिलता है । सामान्यतः व्यवसाय में सवेरे से रात तक मन उलझा रहता है, यह मैंने स्वयं अनुभव किया है । कभी-कभी तो मेरे व्यवसाय के स्थान पर मैं एक-एक वर्ष भी नहीं जाता । तब भी मेरा व्यवसाय चलता रहता है । मेरे मित्रों को उनके व्यवसाय के स्थान पर दिन में तीन बार जाना पडता है, वहां उपस्थित रहना पडता है । कभी-कभी गुरुदेवजी के प्रति इतनी कृतज्ञता लगती है, वास्तव में मैं कुछ नहीं करता, वे ही मेरे लिए सब कर रहे हैं ।

२ ई. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का आज्ञापालन करने से कोरोना महामारी के समय रक्षा होना

पू. खेमकाजी : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने कहा था, ‘जब कोरोना महामारी चल रही थी, तब घर से बाहर नहीं निकलना ।’ मैंने उनकी आज्ञा का १०० प्रतिशत पालन किया । मैंने ८ मास घर की देहलीज पार नहीं की । उस समय मुझे लगता था मानो प.पू. गुरुदेवजी ही चारों ओर खडे हैं । कोरोना से पहले मैं ८ मिनट भी घर में नहीं रुकता था । यह सब गुरुदेवजी ने ही मुझसे करवा लिया ।

पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी : घर के हम सब लोगों में आज्ञापालन का जो गुण है, वह गुरुदेवजी की ही कृपा से है ।

पू. खेमकाजी : उन ८ महीनों की अवधि में संपूर्ण भारत के उद्योग बंद थे तथा संपूर्ण संसार में भी बडे-बडे उद्योग बंद थे; परंतु मेरा व्यवसाय चल ही रहा था ।

(क्रमशः)      

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक