भोपाल में ‘यंग थिंकर्स कॉनक्लेव्ह’ नामक युवा हिन्दुत्वनिष्ठ विचारकों के कार्यक्रम का किया साम्यवादियों ने विरोध !

  • प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ और अभ्यासक श्री. नीरज अत्री के भाषण पर उठाई आपत्ति !

  • विरोध की उपेक्षा कर हिन्दुत्वनिष्ठों ने सफलतापूर्वक संपन्न किया कार्यक्रम !

भोपाल (मध्य प्रदेश) – यहां कुछ दिन पहले ‘द यंग थिंकर्स फोरम’ नामक संगठन का पाचवां वार्षिक ‘यंग थिंकर्स कॉनक्लेव्ह’ नामक कार्यक्रम आयोजित किया गया था । यहां के प्रतिष्ठित ‘नैशनल लॉ इन्स्टिट्यूट युनिवर्सिटी’ में आयोजित कार्यक्रम का कुछ साम्यवादी प्राध्यापक और छात्रों ने बडी मात्रा में विरोध किया । कार्यक्रम में प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ और अभ्यासक श्री. नीरज अत्री संबोधित करनेवाले थे, जिस कारण यह विरोध हुआ । इस समय निमंत्रितों ने साम्यवादियों को उनका पक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक चर्चासत्र आयोजित करने की तैयारी भी दर्शाई; परंतु इसके लिए साम्यवादी तैयार नहीं हुए । परिणामस्वरुप विरोध की उपेक्षा कर यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ ।

नीरज अत्री

१. नीरज अत्री समेत प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ रश्मी सामंत, प्रा. राम शर्मा, पत्रकार स्वाती गोयल शर्मा और अन्य कुछ राष्ट्रनिष्ठों ने भी संबोधित किया । महाविद्यालय के साम्यवादी उनके विचारों पर ‘सभी व्याख्याता द्वेष फैलानेवाले हैं’, यह कहकर निराधार आरोप कर रहे थे ।

२. कार्यक्रम में कुल ६ सत्रों का आयोजन किया गया था । इनमें ‘कट्टरतावाद से धर्म तक : पैगंबरी एकेश्वरवाद के संदर्भ में हिन्दू दृष्टिकोण’ (फ्रॉम डॉगमा टू धर्मा : हिन्दू व्ह्यू ऑफ प्रोफेटिक मोनोथिजम्’ और ‘वोकिझम’ आंदोलन का भंडाफोड : सामाजिक सक्रियता का परीक्षण’ (अनरॅव्हेलिंग वोकिझम् : एक्जॅमिनिंग द डीएन्ए ऑफ सोशल एक्टिविजम्’ इन सत्रों का विशेषरुप से विरोध किया गया । ‘वोकिझम्’ यह एक विकृत आंदोलन है तथा इसका प्रचार करनेवाले लोग स्वयं ‘सामाजिक न्याय’ और ‘राजनीतिक समस्या’ इन विषयों के प्रति अत्यंत प्रगल्भ होने का नाटक करते हैं ! ये लोक दिखाते है कि, ‘सामाजिक अन्याय के विरुद्ध हम जागृत हुए हैं ।’

. महाविद्यालय के एक प्राध्यापक ने विरोध की इस समस्या को सुलझाने के लिए कहा कि, ‘साम्यवादियों को उनकी आपत्तियां प्रस्तुत करने के लिए ‘चर्चासत्र’ का आयोजन कर व्यासपीठ उपलब्ध करवाता हूं’; परंतु विरोधक इस बात पर अडे रहे कि, ‘अत्री को किसी भी स्थिति में विषय प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए ।’ अंत में उनके विरोध की उपेक्षा करते हुए कार्यक्रम संपन्न हुआ ।

. रश्मी सामंत ने इस संदर्भ में ‘एक्स’ पर पोस्ट किया कि कट्टरतावादियों का एक ‘छोटा गुट’ कार्यक्रम में संबोधन करनेवालों के नाम लिखे हुए भित्तिपत्रक (पोस्टर्स) एवं फलक (बैनर्स) फाड रहे थे । वास्तविकता के संदर्भ में चर्चा करने की अपेक्षा इस गुट को गुंडागर्दी, हिंसा और तोडफोड करने में रूचि थी । (अन्य समय ‘लोकतंत्र का गला घोंटा जाता है’, इस प्रकार हिन्दुओं पर निराधार आरोप करनेवाले साम्यवादी स्वयं लोकतंत्रविरोधी मार्ग का अवलंब करते हुए बार-बार दिखाई देते हैं । इसीलिए अब संसार को अब यह बताने की घडी आई है कि, ‘देखो, साम्यवादी ही किस प्रकार लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं ।’ – संपादक)

. कार्यक्रम के समय ‘जीजस क्राईस्ट : अ‍ॅन आर्टिफाईस फॉर अ‍ॅग्रेशन’, ‘टिपू सुल्तान : विलियन ऑर हीरो ?’, ‘हिन्दू राष्ट्र’ और ‘जिहाद’ नामक पुस्तकों की बिक्री चल रही । इसका भी उन्होंने विरोध किया ।

. इस कार्यक्रम का ‘एक्स’ द्वारा भी साम्यवादियों ने विरोध किया । साथही ‘द वायर’ और ‘द क्विंट’ इन हिन्दूद्वेषी जालस्थलों ने भी इस कार्यक्रम के विरोध में द्वेषपूर्ण लेख लिखे । (इससे ध्यान में आता है कि साम्यवादियों की ‘इकोसिस्टम’ (सभी स्तरों पर उनकी विचारधारा पर चलनेवाले लोगों/आस्थापनों का समूह) किस प्रकार सक्रिय रहता है ! – संपादक)

‘कैन्सिल कल्चर’ की उपेक्षा कर संपूर्ण निष्ठा से हिन्दू अपने विचार प्रस्तुत करते रहें ! – नीरज अत्री

(हिन्दुत्वनिष्ठों अथवा राष्ट्रनिष्ठों द्वारा आयोजित कार्यक्रम का विविध माध्यमों से विरोध कर उसे बंद करने के समाजविघातक आंदोलनों को ‘कैन्सिल कल्चर’ कहते है ।)

इस कार्यक्रम के संदर्भ में ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि ने श्री. नीरज अत्री से संपर्क किया । श्री. अत्री कार्यक्रम के परीक्षक थे । ‘ईसाई और इस्लाम धर्म के प्रति ‘हिन्दू’ दृष्टि’ इस विषय पर उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत किए । ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि से वार्तालाप करते समय उन्होंने कहा कि, ‘मैं इस्लामचा द्वेष करनेवाला हूं’, ऐसा कहते हुए साम्यवादी मेरा विरोध कर रहे थे । साम्यवादी और हिन्दूविरोधकों के ‘कैन्सिल कल्चर’ की उपेक्षा कर संपूर्ण निष्ठा से हिन्दू अपने विचार प्रस्तुत करते रहें । चर्चा करने की अपनी परंपरा ही रही है । संवाद के माध्यम से हमें इसलिए निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए और प्रखरता से अपने विचारों का प्रचार करना चाहिए ।’

संपादकीय भूमिका

हिन्दुत्वनिष्ठों के विचार अब बडी मात्रा में सार्वजनिक होने के कारण हिन्दू विरोधकों की पोल खुलती जा रही है । हिन्दुओं के समर्थन में वातावरण सकारात्मक हो रहा है, इसलिए साम्यवादी इस बात को पचा नहीं पा रहे है । यह विरोध भी उसी का फल है !