नामांतरण की आवश्यकता !

भारत के प्रत्‍येक नगर का प्राचीन इतिहास रहता है । उससे भी प्रचीन काल में कभी-कभी उस नगर में महाभारत अथवा रामायण काल के कुछ प्रसंग घटित होने का इतिहास भी होता है तथा उससे भी प्रचीन शंकर-पार्वती की कथाओं जैसे पौराणिक संदर्भ भी पारंपरिक रूप से उन नगरों से जुडे हुए बताए जाते हैं यह सब पूर्णतया सहज है; क्योंकि भारत का इतिहास सृष्टि तथा मानव की उत्पत्ति के उपरांत यहां के प्रत्‍येक नगर का कोई न कोई प्राचीन इतिहास होगा तथा उसका प्राचीन नाम भी होगा, जो स्वाभाविक है ।

२० नवंबर १९७० मे निकाला गया राजपत्र

यथा समय भाषा के परिवर्तन से नामों में भी परिवर्तन हो सकता है; किंतु वहां के भूमिपुत्रों को नष्‍ट कर, उन पर असीमित अत्याचार करके विदेशियों ने वहां स्वयं को स्थापित कर लिया है क्या ये उन नगरों पर अन्‍याय एवं अत्‍याचार के चिन्ह (जख्म) नहीं हैं ? इसके प्रति पूर्णतया संवेदनहीन बडा वर्ग भी हमारे यहां है । इसका भान कराने पर भी विदेशियों के चिह्नों को छाती से लगाकर स्‍वदेशी नामों का विरोध करनेवाले वर्ग भी हैं । किसी स्थान को ‘अत्यंत प्राचीन काल का इतिहास होना अथवा वहां वैसे चिह्न होना’, इसका केवल भान भी कितनी अस्मिता तथा भावसंवेदना जागृत करनेवाला होता है; किंतु उस जीवंत उज्जवल इतिहास की सूर्व किरणें तब तक नहीं पहुंचतीं, जब तक विदेशी विकृति की चादर ओढी न जाए । इसलिए अब ‘नगर के वर्तमान नाम में क्यों परिवर्तन करना? इसके पीछे राजनीति है’, ऐसा सोचनेवाले तथाकथित निधर्मी भी आगे आते रहते हैं । इतना ही नहीं, अपितु ‘देशभक्ति के नाम पर नगर के नाम में परिवर्तन नहीं किया जा सकता’, ऐसे अयोग्य विचार भी प्रसारित किए जाते हैं ।

वास्‍को के नामांतरण की मांग एवं इतिहास की वास्‍तविकता

अब गोवा के ‘वास्‍को’ नगर का नाम ‘संभाजी’ करने की मांग उभरकर सामने आई है । प्रत्‍यक्ष में ‘वास्‍को डी गामा’ कभी गोवा आया ही नहीं । वह कालिकत बंदरगाह पर उतरा था । गोवा पर शासन करनेवाले पुर्तगाली शासक इसका विस्तार करने के लिए उस क्षेत्र का नाम वास्को डी गामा रखा जहां कभी जनसंख्‍या अधिक थी । लुटेरे वास्‍को डी गामा ने भारत को यूरोप के लोगों के लिए नहीं ढूंढा, अपितु उससे भी पूर्व अर्थात दूसरी शताब्दी से ही भारत में ईसाई धर्म आया था । ‘वास्‍को डी डी गामा’ ने मलबार तट के अनेक गांव उद़्‍ध्‍वस्‍त कर, स्‍थानीय लोगों के हाथ, पैर तथा सिर तोडकर, अर्थात अपाहिज बनाकर भीषण लूटपाट किया ।

वर्ष १५१० में पुर्तगालियें ने गोमंतक पर आक्रमण कर छत्रपति संभाजी महाराज ने गोवा पर आक्रमण कर वर्ष १६८३ में उनके द्वारा निर्मित साम्राज्‍य लगभग मिटा दिया था । केवल ५ गढ (किले)तथा गोवा द्वीप ही उनके पास छोडा गया था । गोवा टापू पर निर्णायक आक्रमण करने के समय ही औरंगजेब का पुत्र शाह आलम १ लाख सैनिक लेकर गोवा के पास आने से छत्रपति संभाजी महाराज संभावित संकट पहचान कर ठीक समय पर वापस रायगढ पहुंच गए । इस घटना से छत्रपति संभाजी महाराज इस पूरे क्षेत्र के रक्षक बने रहे ।

गोवा के प्रथम मुख्‍यमंत्री तथा भविष्यवक्ता भाऊसाहेब बंदोडकर

क्या भाऊसाहेब का सपना पूरा होगा ?

उपरोक्त इतिहास पर ध्यान दें तो तत्कालीन प्रधानमंत्री के राजपत्र में इस बात का प्रमाण मिलता है कि भाऊसाहेब बंदोडकर, जो स्वयं गोवा के प्रथम मुख्‍यमंत्री बने तथा भविष्यवक्ता थे, ने वर्ष १९७० में वास्‍को नगर का नाम परिवर्तित कर ‘संभाजी’ करने का रखा था । स्‍व. बांदोडकरजी को विदेशी आक्रामकों से गोवा की संस्‍कृति की रक्षा करने की लगन थी । गोवा स्‍वतंत्र होने के पश्चात भी अनेक चर्चाें में घंटी बजाकर ‘पुर्तगाली वापस आएंगे’, प्रतिदिन ऐसा प्रचार किया जाता था । गोवा की संस्कृति को ऐसे पुर्तगाली लोगों से बचाने के लिए ‘उसे महाराष्‍ट्र में मिला देना चाहिए’, पहले से ही उनका ऐसा विचार था, इसीलिए उन्होंने उनके पक्ष का नाम भी ‘महाराष्‍ट्रवादी गोमंतक पक्ष’ रखा था । कुछ लोगों ने महाराष्‍ट्र में गोवा विलीन करने का विरोध किया, तो भी गोमंतकीय पहले मुख्‍यमंत्री के रूप में उन्हें ही चाहते थे, ऐसी उनकी क्षमता थी । उनकी ५० वीं पुण्‍यतिथि के अवसर पर यहां के हिन्दू महारक्षा आघाडी(संगठन) के संयोजक प्रो. सुभाष वेलिंगकरजी ने भाजपा सरकार से उपरोक्त स्‍मृति को जागृत कर ‘वास्‍को’ का नाम परिवर्तित करने की वास्तविक मांग की है ।

मोदी सरकार ने अबतक १६ नगरों का, १६ रेल स्‍थानकों का, ६ मार्गोें का तथा एक बंदरगाह का नामांतरण किया है । इसलिए इनक्विजिशन के नाम पर ‘वास्‍को डी गामा’ समुद्री डाकू तथा गोमंतकीय हिन्दुओं के चिन्ह (निशान) मिटाने के इस अवसर को ध्यान में रखते हुए अत्याचारी पुर्तगालियों को इसे सुअवसर मानकर भाजपा सरकार को भी यह बात गंभीरता से लेनी चाहिए । इस नामकरण से गोमंतकियों के मध्य ऐतिहासिक पहचान विकसित करने में सहायता होगी । स्‍व. बांदोडकरजी की दृष्टि में ‘वास्‍को’, नाम गोवा की पवित्र भूमि पर कलंक था । वर्ष १९७० में राजस्व विभाग के सचिव द्वारा हस्तांतरित संभाजी नाम करने का आदेश जारी किया गया परंतु उस पर आगे कोई कार्यवाही नहीं की गई । इसके पीछे क्या राजनीति है अथवा किसका षड्यंत्र है ?, यह नहीं जानते; किंतु अब राज्‍य एवं केंद्र में भाजपा की सरकार है तथा उनकी वैसी नीति होने से निश्चित ही यह असंभव नहीं । सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने ‘छत्रपति संभाजीनगर’ का नाम परिवर्तित करने के विरुद्ध न्‍यायालय में गए विरोधियों की याचिका भी अस्वीकृत करते हुए कहा कि इस निर्णय का अधिकार पूर्णत: सरकार का है’ । तो आशा करते हैं कि हिन्दू महारक्षा अघाडी द्वारा सामने रखा गया यह सूत्र देशभक्त गोमंतकीय तथा भाजपा सरकार द्वारा अपनाकर भारत के इस भाग से एक और विदेशी जुए को उखाड कर संस्‍कृति को विकसित करने का प्रयास करेगी !

सरकार तथा नागरिकों को विदेशी संस्‍कृति के चिह्न मिटाने का कोई भी अवसर नहीं छोडना चाहिए !